User:लक्ष्मी गोस्वामी/अभ्यास4: Difference between revisions
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{[[भारत]] से उत्तर की ओर के देशों में [[बौद्ध धर्म]] का जिस संप्रदाय का प्रचलन हुआ, उसका नाम है- | {[[भारत]] से उत्तर की ओर के देशों में [[बौद्ध धर्म]] का जिस संप्रदाय का प्रचलन हुआ, उसका नाम है- | ||
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-हीनयान | -[[हीनयान]] | ||
+महायान | +[[महायान]] | ||
-शून्यवाद | -[[शून्यवाद]] | ||
-इनमें से कोई नहीं | -इनमें से कोई नहीं | ||
{'कुमारसंभव' महाकाव्य किस स्थापना का युग है- | {'[[कुमारसंभव]]' महाकाव्य किस स्थापना का युग है- | ||
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-[[बाणभट्ट]] | -[[बाणभट्ट]] | ||
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+[[कालिदास]] | +[[कालिदास]] | ||
-हरिषेण | -हरिषेण | ||
||[[चित्र:Poet-Kalidasa.jpg|कालिदास|100px|right]]अपने कुमारसम्भव महाकाव्य में [[पार्वती देवी|पार्वती]] के रूप का वर्णन करते हुए महाकवि कालिदास ने लिखा है कि संसार में जितने भी सुन्दर उपमान हो सकते हैं उनका समुच्चय इकट्ठा करके, फिर उसे यथास्थान संयोजित करके विधाता ने बड़े जतन से उस पार्वती को गढा था, क्योंकि वे सृष्टि का सारा सौन्दर्य एक स्थान पर देखना चाहते थे।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कालिदास]] | |||
{सोने के सर्वाधिक सिक्के किस काल में जारी किये गये? | {[[सोना|सोने]] के सर्वाधिक सिक्के किस काल में जारी किये गये? | ||
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-कुषाण काल | -[[कुषाण काल]] | ||
+गुप्त काल | +[[गुप्त काल]] | ||
-मौर्य काल | -[मौर्य काल]] | ||
-हिन्द-यवन काल | -हिन्द-यवन काल | ||
||गुप्त साम्राज्य का उदय तीसरी सदी के अन्त में [[प्रयाग]] के निकट [[कौशाम्बी]] में हुआ। गुप्त [[कुषाण|कुषाणों]] के सामन्त थे। इस वंश का आरंभिक राज्य [[उत्तर प्रदेश]] और [[बिहार]] में था। लगता है कि गुप्त शासकों के लिए बिहार की उपेक्षा उत्तर प्रदेश अधिक महत्त्व वाला प्रान्त था, क्योंकि आरम्भिक अभिलेख मुख्यतः इसी राज्य में पाए गए हैं।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गुप्त काल]] | |||
{किस व्यक्ति को 'द्वितीय अशोक' कहा जाता है? | {किस व्यक्ति को 'द्वितीय [[अशोक]]' कहा जाता है? | ||
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-[[समुद्रगुप्त]] | -[[समुद्रगुप्त]] | ||
-[[चन्द्रगुप्त मौर्य]] | -[[चन्द्रगुप्त मौर्य]] | ||
+[[हर्षवर्धन]] | +[[हर्षवर्धन]] | ||
-स्कंदगुप्त | -[[स्कंदगुप्त]] | ||
||'''हर्ष एक प्रतिष्ठित नाटककार एवं कवि था'''। इसने 'नागानन्द', 'रत्नावली' एवं 'प्रियदर्शिका' नामक नाटकों की रचना की। इसके दरबार में [[बाणभट्ट]], [[हरिदत्त]] एवं [[जयसेन]] जैसे प्रसिद्ध कवि एवं लेखक शोभा बढ़ाते थे। हर्ष [[बौद्ध धर्म]] की [[महायान]] शाखा का समर्थक होने के साथ-साथ [[विष्णु]] एवं [[शिव]] की भी स्तुति करता था।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हर्षवर्धन]] | |||
{ | {[[हर्षवर्धन]] अपनी धार्मिक सभा कहाँ किया करता था? | ||
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-[[मथुरा]] | -[[मथुरा]] | ||
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-[[वाराणसी]] | -[[वाराणसी]] | ||
-[[पेशावर]] | -[[पेशावर]] | ||
||[[चित्र:Sangam-Allahabad.jpg|संगम, इलाहाबाद|100px|right]][[गंगा]]-[[यमुना]] के संगम स्थल प्रयाग को [[पुराण|पुराणों]] में 'तीर्थराज' ( तीर्थों का राजा ) नाम से अभिहित किया गया है। इस संगम के सम्बन्ध में [[ॠग्वेद]] में कहा गया है कि जहाँ [[कृष्ण]] (काले) और श्वेत (स्वच्छ) [[जल]] वाली दो सरिताओं का संगम है वहाँ स्नान करने से मनुष्य स्वर्गारोहण करता है।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[प्रयाग]] | |||
{शून्य की खोज किसने की? | {शून्य की खोज किसने की? | ||
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-वराहमिहिर | -[[वराहमिहिर]] | ||
-भास्कर | -[[भास्कर]] | ||
+[[आर्यभट्ट]] | +[[आर्यभट्ट]] | ||
-इनमें से कोई नहीं | -इनमें से कोई नहीं | ||
||विश्व गणित के इतिहास में भी आर्यभट्ट का नाम सुप्रसिद्ध है। खगोलशास्त्री होने के साथ साथ गणित के क्षेत्र में भी उनका योगदान बहुमूल्य है। बीजगणित में भी सबसे पुराना ग्रंथ आर्यभट्ट का है। उन्होंने सबसे पहले 'पाई' (p) की कीमत निश्चित की और उन्होंने ही सबसे पहले 'साइन' (SINE) के 'कोष्टक' दिए। गणित के जटिल प्रश्नों को सरलता से हल करने के लिए उन्होंने ही समीकरणों का आविष्कार किया, जो पूरे विश्व में प्रख्यात हुआ। एक के बाद ग्यारह शून्य जैसी संख्याओं को बोलने के लिए उन्होंने नई पद्ध्ति का आविष्कार किया।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[आर्यभट्ट]] | |||
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Revision as of 13:05, 7 July 2011
इतिहास
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