कश्मीर (आज़ादी से पूर्व): Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
Line 1: Line 1:
'''सुहादेव नामक एक''' [[हिन्दू]] ने 1301 ई. में [[कश्मीर]] में हिन्दू राज्य की स्थापना की। सुहादेव के शासन काल में 1320 ई. में [[मंगोल]] नेता ने कश्मीर पर आक्रमण कर लूट-पाट की। 1320 ई. में ही [[तिब्बत|तिब्बती]] सरदार 'रिनचन' ने सुहादेव से कश्मीर को छीन लिया। रिनचन ने शाहमीर नामक एक [[मुसलमान]] को अपने पुत्र एवं पत्नी की शिक्षा के लिए नियुक्त किया। रिनचन के बाद 1323 ई. में उदयनदेव सिंहासन पर बैठा, परन्तु 1338 में उदयनदेव के मरने के बाद उसकी विधवा पत्नी 'कोटा' ने शासन सत्ता को अपने क़ब्ज़े में कर लिया। उचित अवसर प्राप्त कर शाहमीर ने कोटा को उसके अल्पायु बच्चों के साथ क़ैद कर सिंहासन पर अधिकार कर लिया तथा 1339 ई. में शम्सुद्दीन शाह ने कोटा से विवाह कर इन्द्रकोट में शाहमीर राज्य की स्थापना की।
'''सुहादेव नामक एक''' [[हिन्दू]] ने 1301 ई. में [[कश्मीर]] में हिन्दू राज्य की स्थापना की। कश्मीर की सुन्दर घाटी काफ़ी समय तक बाहरी व्यक्तियों के लिए निषिद्ध रही थी। [[अलबेरूनी]] के अनुसार किसी को भी कश्मीर में तब तक प्रवेश नहीं करने दिया जाता था, जब तक की उसका परिचय वहाँ के किसी सामंत से नहीं होता था। इस काल में कश्मीर [[शैवमत]] का केन्द्र माना जाता था। लेकिन चौदहवीं शताब्दी के मध्य में हिन्दू शासन की समाप्ति के साथ ही यह स्थिति भी समाप्त हो गई।
==मुस्लिम आधिपत्य==
[[मंगोल]] सरदार दलूचा का 1320 में कश्मीर पर भयंकर आक्रमण इसकी भूमिका थी। कहा जाता है कि दलूचा ने पुरुषों के क़त्लेआम का हुक़्म जारी कर दिया था, जबकि स्त्रियों और बच्चों को ग़ुलाम बनाकर मध्य [[एशिया]] के व्यापारियों को बेच दिया। शहर और गाँव नष्ट करके जला दिए गए। कश्मीर का असहाय शासन इसके विरुद्ध कुछ न कर सका और परिणामतः जनता की सहानुभूति और सहायता उसे फिर न मिल सकी। रिनचन ने शाहमीर नामक एक [[मुसलमान]] को अपने पुत्र एवं पत्नी की शिक्षा के लिए नियुक्त किया। रिनचन के बाद 1323 ई. में उदयनदेव सिंहासन पर बैठा, परन्तु 1338 में उदयनदेव के मरने के बाद उसकी विधवा पत्नी 'कोटा' ने शासन सत्ता को अपने क़ब्ज़े में कर लिया। उचित अवसर प्राप्त कर शाहमीर ने कोटा को उसके अल्पायु बच्चों के साथ क़ैद कर सिंहासन पर अधिकार कर लिया तथा 1339 ई. में शम्सुद्दीन शाह ने कोटा से [[विवाह]] कर इन्द्रकोट में 'शाहमीर' राज्य की स्थापना की।


1342 ई. में शम्सुद्दीन शाह की मृत्यु के उपरान्त उसका पुत्र जमशेद सिंहासन पर आरूढ़ हुआ, जिसकी हत्या उसके भाई अलाउद्दीन ने कर दी और सत्ता अपने क़ब्ज़े में कर ली। उसने लगभग 12 वर्ष तक शासन किया। उसने अपने शासन काल में राजधानी को इन्द्रकोट से हटाकर ‘अलाउद्दीन’ ([[श्रीनगर]]) में स्थापित की। अलाउद्दीन के बाद उसका भाई शिहाबुद्दीन गद्दी पर बैठा, उसने लगभग 19 वर्ष शासन किया। यह शाहमीर वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। उसकी मृत्यु के बाद कुतुबुद्दीन सिंहासन पर बैठा। 1389 ई. में कुतुबुद्दीन की मृत्यु के बाद उसका लड़का गद्दी पर बैठा।
1342 ई. में शम्सुद्दीन शाह की मृत्यु के उपरान्त उसका पुत्र जमशेद सिंहासन पर आरूढ़ हुआ, जिसकी हत्या उसके भाई अलाउद्दीन ने कर दी और सत्ता अपने क़ब्ज़े में कर ली। उसने लगभग 12 वर्ष तक शासन किया। उसने अपने शासन काल में राजधानी को इन्द्रकोट से हटाकर ‘अलाउद्दीन’ ([[श्रीनगर]]) में स्थापित की। अलाउद्दीन के बाद उसका भाई शिहाबुद्दीन गद्दी पर बैठा, उसने लगभग 19 वर्ष शासन किया। यह शाहमीर वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। उसकी मृत्यु के बाद कुतुबुद्दीन सिंहासन पर बैठा। 1389 ई. में कुतुबुद्दीन की मृत्यु के बाद उसका लड़का गद्दी पर बैठा।
====सुल्तान सिकन्दर====
====सुल्तान सिकन्दर====
सिकन्दर के शासन काल 1398 ई. में [[तैमूर]] का आक्रमण [[भारत]] पर हुआ। सिकन्दर ने तैमूर के कश्मीर आक्रमण को असफल किया। धार्मिक दृष्टि से सिकन्दर असहिष्णु था। उसने अपने शासन काल में हिन्दुओं पर बहुत अत्याचार किया और सर्वाधिक [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] को सताया। उसने ‘[[जज़िया]]’ कर लगाया। हिन्दू मंदिर एवं मूर्तियों को तोड़ने के कारण उसे ‘बुतशिकन’ भी कहा गया है। इतिहासकार जॉन राज ने लिखा है, “सुल्तान अपने सुल्तान के कर्तव्यों को भूल गया और दिन-रात उसे मूर्तियों को नष्ट करने में आनन्द आने लगा। उसने मार्तण्ड, विश्य, इसाना, चक्रवत एवं त्रिपुरेश्वर की मूर्तियों को तोड़ दिया। ऐसा कोई शहर, नहर, गाँव या जंगल शेष न रहा, जहाँ ‘तुरुष्क सूहा’ (सिकन्दर) ने ईश्वर के मंदिर को न तोड़ा हो।” 1413 ई. में सिकन्दर की मृत्यु के उपरान्त अलीशाह सिंहासन पर बैठा। उसके वज़ीर साहूभट्ट ने सिकन्दर की धार्मिक कट्टरता को आगे बढ़ाया।
सिकन्दर के शासन काल 1398 ई. में [[तैमूर]] का आक्रमण [[भारत]] पर हुआ। सिकन्दर ने तैमूर के कश्मीर आक्रमण को असफल किया। धार्मिक दृष्टि से सिकन्दर असहिष्णु था। उसने अपने शासन काल में हिन्दुओं पर बहुत अत्याचार किया और सर्वाधिक [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] को सताया। उसने ‘[[जज़िया]]’ कर लगाया। हिन्दू मंदिर एवं मूर्तियों को तोड़ने के कारण उसे ‘बुतशिकन’ भी कहा गया है। इतिहासकार जॉन राज ने लिखा है, “सुल्तान अपने सुल्तान के कर्तव्यों को भूल गया और दिन-रात उसे मूर्तियों को नष्ट करने में आनन्द आने लगा। उसने मार्तण्ड, विश्य, इसाना, चक्रवत एवं त्रिपुरेश्वर की मूर्तियों को तोड़ दिया। ऐसा कोई शहर, नहर, गाँव या जंगल शेष न रहा, जहाँ ‘तुरुष्क सूहा’ (सिकन्दर) ने ईश्वर के मंदिर को न तोड़ा हो।” 1413 ई. में सिकन्दर की मृत्यु के उपरान्त अलीशाह सिंहासन पर बैठा। उसके वज़ीर साहूभट्ट ने सिकन्दर की धार्मिक कट्टरता को आगे बढ़ाया।
====जैनुल अबादीन====
====जैनुल अबादीन====
{{मुख्य|जैनुल अबादीन}}
{{मुख्य|जैनुल अबादीन}}
Line 13: Line 14:
'''कश्मीरी स्थापत्य कला के अन्तर्गत''' स्थानीय शासकों ने हिन्दुओं के प्राचीन परम्परागत पत्थर एवं लकड़ी के प्रयोग को महत्व दिया। यहाँ की वास्तुकला शैली में भी [[हिन्दू]]-[[मुसलमान|मुस्लिम]] स्थापत्य कला शैली का समन्वय हुआ है। मार्शल के अनुसार, ‘[[कश्मीर]] के भवन हिन्दू-मुस्लिम कला के सम्मिश्रण के परिचायक हैं।’’ यहाँ के महत्त्वपूर्ण निर्माण कार्य हैं- [[श्रीनगर]] का ‘मन्दानी का मक़बरा’ जामा मस्जिद, जिसे बुतशिकन सिकन्दर ने बनवाया था। कालान्तर में इसका विस्तार [[जैनुल अबादीन]] ने किया। इस मस्जिद को पूर्व [[मुग़ल]] शैली का शिक्षाप्रद उदाहरण माना जाता है। शाह हमदानी की मस्जिद पूर्णतः इमारती लकड़ी से निर्मित है।
'''कश्मीरी स्थापत्य कला के अन्तर्गत''' स्थानीय शासकों ने हिन्दुओं के प्राचीन परम्परागत पत्थर एवं लकड़ी के प्रयोग को महत्व दिया। यहाँ की वास्तुकला शैली में भी [[हिन्दू]]-[[मुसलमान|मुस्लिम]] स्थापत्य कला शैली का समन्वय हुआ है। मार्शल के अनुसार, ‘[[कश्मीर]] के भवन हिन्दू-मुस्लिम कला के सम्मिश्रण के परिचायक हैं।’’ यहाँ के महत्त्वपूर्ण निर्माण कार्य हैं- [[श्रीनगर]] का ‘मन्दानी का मक़बरा’ जामा मस्जिद, जिसे बुतशिकन सिकन्दर ने बनवाया था। कालान्तर में इसका विस्तार [[जैनुल अबादीन]] ने किया। इस मस्जिद को पूर्व [[मुग़ल]] शैली का शिक्षाप्रद उदाहरण माना जाता है। शाह हमदानी की मस्जिद पूर्णतः इमारती लकड़ी से निर्मित है।


 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}


==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{स्वतन्त्र प्रान्तीय राज्य}}
{{स्वतन्त्र प्रान्तीय राज्य}}
[[Category:स्वतन्त्र प्रान्तीय राज्य]][[Category:जम्मू और कश्मीर]][[Category:जम्मू और कश्मीर का इतिहास]][[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:स्वतन्त्र प्रान्तीय राज्य]][[Category:जम्मू और कश्मीर]][[Category:जम्मू और कश्मीर का इतिहास]][[Category:इतिहास कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Revision as of 09:41, 9 April 2012

सुहादेव नामक एक हिन्दू ने 1301 ई. में कश्मीर में हिन्दू राज्य की स्थापना की। कश्मीर की सुन्दर घाटी काफ़ी समय तक बाहरी व्यक्तियों के लिए निषिद्ध रही थी। अलबेरूनी के अनुसार किसी को भी कश्मीर में तब तक प्रवेश नहीं करने दिया जाता था, जब तक की उसका परिचय वहाँ के किसी सामंत से नहीं होता था। इस काल में कश्मीर शैवमत का केन्द्र माना जाता था। लेकिन चौदहवीं शताब्दी के मध्य में हिन्दू शासन की समाप्ति के साथ ही यह स्थिति भी समाप्त हो गई।

मुस्लिम आधिपत्य

मंगोल सरदार दलूचा का 1320 में कश्मीर पर भयंकर आक्रमण इसकी भूमिका थी। कहा जाता है कि दलूचा ने पुरुषों के क़त्लेआम का हुक़्म जारी कर दिया था, जबकि स्त्रियों और बच्चों को ग़ुलाम बनाकर मध्य एशिया के व्यापारियों को बेच दिया। शहर और गाँव नष्ट करके जला दिए गए। कश्मीर का असहाय शासन इसके विरुद्ध कुछ न कर सका और परिणामतः जनता की सहानुभूति और सहायता उसे फिर न मिल सकी। रिनचन ने शाहमीर नामक एक मुसलमान को अपने पुत्र एवं पत्नी की शिक्षा के लिए नियुक्त किया। रिनचन के बाद 1323 ई. में उदयनदेव सिंहासन पर बैठा, परन्तु 1338 में उदयनदेव के मरने के बाद उसकी विधवा पत्नी 'कोटा' ने शासन सत्ता को अपने क़ब्ज़े में कर लिया। उचित अवसर प्राप्त कर शाहमीर ने कोटा को उसके अल्पायु बच्चों के साथ क़ैद कर सिंहासन पर अधिकार कर लिया तथा 1339 ई. में शम्सुद्दीन शाह ने कोटा से विवाह कर इन्द्रकोट में 'शाहमीर' राज्य की स्थापना की।

1342 ई. में शम्सुद्दीन शाह की मृत्यु के उपरान्त उसका पुत्र जमशेद सिंहासन पर आरूढ़ हुआ, जिसकी हत्या उसके भाई अलाउद्दीन ने कर दी और सत्ता अपने क़ब्ज़े में कर ली। उसने लगभग 12 वर्ष तक शासन किया। उसने अपने शासन काल में राजधानी को इन्द्रकोट से हटाकर ‘अलाउद्दीन’ (श्रीनगर) में स्थापित की। अलाउद्दीन के बाद उसका भाई शिहाबुद्दीन गद्दी पर बैठा, उसने लगभग 19 वर्ष शासन किया। यह शाहमीर वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। उसकी मृत्यु के बाद कुतुबुद्दीन सिंहासन पर बैठा। 1389 ई. में कुतुबुद्दीन की मृत्यु के बाद उसका लड़का गद्दी पर बैठा।

सुल्तान सिकन्दर

सिकन्दर के शासन काल 1398 ई. में तैमूर का आक्रमण भारत पर हुआ। सिकन्दर ने तैमूर के कश्मीर आक्रमण को असफल किया। धार्मिक दृष्टि से सिकन्दर असहिष्णु था। उसने अपने शासन काल में हिन्दुओं पर बहुत अत्याचार किया और सर्वाधिक ब्राह्मणों को सताया। उसने ‘जज़िया’ कर लगाया। हिन्दू मंदिर एवं मूर्तियों को तोड़ने के कारण उसे ‘बुतशिकन’ भी कहा गया है। इतिहासकार जॉन राज ने लिखा है, “सुल्तान अपने सुल्तान के कर्तव्यों को भूल गया और दिन-रात उसे मूर्तियों को नष्ट करने में आनन्द आने लगा। उसने मार्तण्ड, विश्य, इसाना, चक्रवत एवं त्रिपुरेश्वर की मूर्तियों को तोड़ दिया। ऐसा कोई शहर, नहर, गाँव या जंगल शेष न रहा, जहाँ ‘तुरुष्क सूहा’ (सिकन्दर) ने ईश्वर के मंदिर को न तोड़ा हो।” 1413 ई. में सिकन्दर की मृत्यु के उपरान्त अलीशाह सिंहासन पर बैठा। उसके वज़ीर साहूभट्ट ने सिकन्दर की धार्मिक कट्टरता को आगे बढ़ाया।

जैनुल अबादीन

1420 ई. में अलीशाह का भाई ख़ाँ जैन-उल-अबादी सिंहासन पर बैठा। उसे ‘बुदशाह’ व 'महान सुल्तान' भी कहा जाता था। धार्मिक रूप से आबादीन सिकन्दर के विपरीत सहिष्णु था। इसकी धर्मिक सहिष्णुता के कारण ही इसे ‘कश्मीर का अकबर’ कहा गया।

अबादीन के बाद हाजीख़ाँ ‘हैदरशाह’ की उपाधि से सिंहासन पर बैठा, पर उसके समय में कश्मीर में इस वंश का पतन हो गया। 1540 ई. में मुग़ल बादशाह बाबर का रिश्तेदार 'मिर्ज़ा हैदर दोगलत' गद्दी पर बैठा। उसने 'नाज़ुकशाह' की उपाधि धारण की। 1561 में कश्मीर में चक्कों का शासन हो गया, जिसका अन्त 1588 ई. में अकबर ने किया। इसके बाद कश्मीर मुग़ल साम्राज्य का अंग बन गया।

स्थापत्य कला में योगदान

कश्मीरी स्थापत्य कला के अन्तर्गत स्थानीय शासकों ने हिन्दुओं के प्राचीन परम्परागत पत्थर एवं लकड़ी के प्रयोग को महत्व दिया। यहाँ की वास्तुकला शैली में भी हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य कला शैली का समन्वय हुआ है। मार्शल के अनुसार, ‘कश्मीर के भवन हिन्दू-मुस्लिम कला के सम्मिश्रण के परिचायक हैं।’’ यहाँ के महत्त्वपूर्ण निर्माण कार्य हैं- श्रीनगर का ‘मन्दानी का मक़बरा’ जामा मस्जिद, जिसे बुतशिकन सिकन्दर ने बनवाया था। कालान्तर में इसका विस्तार जैनुल अबादीन ने किया। इस मस्जिद को पूर्व मुग़ल शैली का शिक्षाप्रद उदाहरण माना जाता है। शाह हमदानी की मस्जिद पूर्णतः इमारती लकड़ी से निर्मित है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख