काठ का सपना -गजानन माधव मुक्तिबोध: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''काठ का सपना''' भारत के प्रसिद्धि प्रगतिशील कवि और ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
Line 1: Line 1:
{{सूचना बक्सा पुस्तक
|चित्र=Kath-Ka-Sapna.jpg
|चित्र का नाम='काठ का सपना' का आवरण पृष्ठ
|लेखक= [[गजानन माधव 'मुक्तिबोध']]
|कवि=
|मूल_शीर्षक = 'काठ का सपना'
|मुख्य पात्र =
|कथानक =
|अनुवादक =
|संपादक =
|प्रकाशक = [[भारतीय ज्ञानपीठ]]
|प्रकाशन_तिथि = [[1 जनवरी]], सन [[2003]]
|भाषा = [[हिन्दी]]
|देश = [[भारत]]
|विषय =
|शैली =
|मुखपृष्ठ_रचना =
|विधा = कहानी संग्रह
|प्रकार =
|पृष्ठ = 128
|ISBN = 81-263-0627-3
|भाग =
|शीर्षक 1=
|पाठ 1=
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|विशेष ='काठ का सपना' [[गजानन माधव 'मुक्तिबोध'|मुक्तिबोध]] के जीवन के अन्तिम समय तक उनके द्वारा लिखी गई कुछेक श्रेष्ठ [[कहानी|कहानियों]] का संग्रह है।
|टिप्पणियाँ =
}}
'''काठ का सपना''' [[भारत]] के प्रसिद्धि प्रगतिशील [[कवि]] और [[हिन्दी साहित्य]] की स्वातंत्र्योत्तर प्रगतिशील काव्यधारा के शीर्ष व्यक्तित्व [[गजानन माधव 'मुक्तिबोध']] द्वारा लिखी गई कहानियों का संग्रह है। यह पुस्तक '[[भारतीय ज्ञानपीठ]]' द्वारा [[1 जनवरी]], सन [[2003]] में प्रकाशित की गई थी। हिन्दी साहित्य में सर्वाधिक चर्चा के केन्द्र में रहने वाले मुक्तिबोध एक कहानीकार होने के साथ ही समीक्षक भी थे। उन्हें प्रगतिशील कविता और नयी कविता के बीच का एक सेतु भी माना जाता है।
'''काठ का सपना''' [[भारत]] के प्रसिद्धि प्रगतिशील [[कवि]] और [[हिन्दी साहित्य]] की स्वातंत्र्योत्तर प्रगतिशील काव्यधारा के शीर्ष व्यक्तित्व [[गजानन माधव 'मुक्तिबोध']] द्वारा लिखी गई कहानियों का संग्रह है। यह पुस्तक '[[भारतीय ज्ञानपीठ]]' द्वारा [[1 जनवरी]], सन [[2003]] में प्रकाशित की गई थी। हिन्दी साहित्य में सर्वाधिक चर्चा के केन्द्र में रहने वाले मुक्तिबोध एक कहानीकार होने के साथ ही समीक्षक भी थे। उन्हें प्रगतिशील कविता और नयी कविता के बीच का एक सेतु भी माना जाता है।
==पुस्तक अंश==
==पुस्तक अंश==

Revision as of 13:24, 21 December 2014

काठ का सपना -गजानन माधव मुक्तिबोध
लेखक गजानन माधव 'मुक्तिबोध'
मूल शीर्षक 'काठ का सपना'
प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ
प्रकाशन तिथि 1 जनवरी, सन 2003
ISBN 81-263-0627-3
देश भारत
पृष्ठ: 128
भाषा हिन्दी
विधा कहानी संग्रह
विशेष 'काठ का सपना' मुक्तिबोध के जीवन के अन्तिम समय तक उनके द्वारा लिखी गई कुछेक श्रेष्ठ कहानियों का संग्रह है।

काठ का सपना भारत के प्रसिद्धि प्रगतिशील कवि और हिन्दी साहित्य की स्वातंत्र्योत्तर प्रगतिशील काव्यधारा के शीर्ष व्यक्तित्व गजानन माधव 'मुक्तिबोध' द्वारा लिखी गई कहानियों का संग्रह है। यह पुस्तक 'भारतीय ज्ञानपीठ' द्वारा 1 जनवरी, सन 2003 में प्रकाशित की गई थी। हिन्दी साहित्य में सर्वाधिक चर्चा के केन्द्र में रहने वाले मुक्तिबोध एक कहानीकार होने के साथ ही समीक्षक भी थे। उन्हें प्रगतिशील कविता और नयी कविता के बीच का एक सेतु भी माना जाता है।

पुस्तक अंश

'काठ का सपना' मुक्तिबोध के जीवन के अन्तिम समय तक उनके द्वारा लिखी गई कुछेक श्रेष्ठ कहानियों का संग्रह है। अभिव्यक्ति के माध्यम के नाते जहाँ कविता हारी, वहाँ मुक्तिबोध ने डायरी विधा पकड़ी और जब यह भी पूरी न पड़ी, तब कहानी को अपनाया। सच तो यह है कि युग के ढँके-उघड़े वास्तविक स्वरूप का, स्वयं झेल-झेल कर, जितनी समग्रता के साथ उन्होंने अनुभव किया और उसे अभिव्यक्ति देने की जितनी बेचैनी उनमें थी, उसके आगे साहित्य की परिचित विधा-सीमाएँ टूट गयीं। मुक्तिबोध की कविता बढ़कर डायरी बन चलती है, डायरी में कहानी झाँक उठेगी और कहानी मानो किसी विषय विशेष का चिन्तन जो गहराई और विस्तार में उत्तरोत्तर बढ़ता जाए। मुक्तिबोध का सारा साहित्य वस्तुतः एक अभिशप्त जीवन जीने वाले अत्यन्त संवेदनशील सामाजिक व्यक्ति का चिन्तन विवेचन है; और यह भी कहीं निराले में या किसी अन्य के साथ बैठकर नहीं, अपने पीड़ा संघर्षों भरे परिवेश में रहते और अपने से ऊपर उठकर स्वयं अपने से जूझते हुए किया गया है। उनकी ये कहानियाँ इसी बात को रेखांकित करती हैं।[1]

रचनाकाल

मुक्तिबोध की कहानियों का रचनाकाल बीस वर्षों में फैला हुआ है। इसीलिए कहानियों के स्तर में फर्क है। इसी संग्रह की कुछ कहानियाँ 1943-1944 की हैं, जबकि कुछ उन्होंने अपनी बीमारी के पहले 1962-1963 में समाप्त की थीं। जमाने के साथ कहानी का कौशल भी बदल गया। इस बदले हुए कौशल की कहानियाँ हैं, 'काठ का सपना' तथा 'पक्षी और दीमक'। मुक्तिबोध की हर रचना साहित्य की सभी विधाओं को एक अजीब चुनौती है।

मुक्तिबोध ने साहित्य की हर विधा को इतना तोड़ दिया है कि रचना स्वयं अपने मूल्यों को ललकारने लगती है। कविता बढ़ते-बढ़ते डायरी हो जाती है और डायरी चलते-चलते कहानी हो जाती है। डायरी, कहानी और उपन्यास तीनों के गुण-दोषों से बेलाग ‘विपात्र’ की कल्पना मुक्तिबोध ने उपन्यास के रूप में की थी। वह उसे छपाना भी चाहते थे। लम्बे-लम्बे पृष्ठों पर बड़े बड़े हर्फों में लिखी हुई यह कहानी अपनी विशालकाय पाण्डुलिपि में उपन्यास ही लगती थी। मगर टाइप कराने पर मालूम हुआ कि उसे अधिक से अधिक एक लम्बी कहानी के बतौर ही छापा जा सकता है। सचाई यह है कि ‘विपात्र’ कहानी या उपन्यास दोनों में से कुछ भी न होने के बावजूद दोनों ही है। कहानी और उपन्यास दोनों की संकीर्ण परिभाषाएँ किस तरह टूट रही हैं और साहित्य की विधाएँ कैसे एक-दूसरे के नजदीक आती हुई गुमनाम होती जा रही हैं, इसे मुक्तिबोध जैसे द्रष्टा कलाकार ही पहचान सकते थे। 1959 से 1962 के बीच ‘विपात्र’ को मुक्तिबोध ने तीन बार लिखा था।

ब्रह्मराक्षस

‘ब्रह्मराक्षस’ मुक्तिबोध का प्रिय पात्र है; कविता, कहानी हर कहीं ब्रह्मराक्षस का जिक्र है ! ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ में ‘ब्रह्मराक्षस’ को सम्बोधित एक कविता है और इस संग्रह में ‘ब्रह्मराक्षस का शिष्य’ को लेकर एक कहानी है। मुक्तिबोध ने जिस तरह का अभिशप्त और निर्वासित जीवन जिया उसे, उसकी पीड़ा को, एक ब्रह्मराक्षस ही समझ सकता है। सच्चाई यह है कि मुक्तिबोध स्वयं ही ब्रह्मराक्षस थे और स्वयं ही ‘ब्रह्मराक्षस का शिष्य’ भी। कविता में जो काम अधूरा रह गया, उसे उन्होंने डायरी में पूरा करने का प्रयत्न किया और डायरी में जो रह गया, उसे शकल देने के लिए उन्होंने कहानी का माध्यम चुना-हालाँकि ये तीनों ही विधाएँ मुक्तिबोध के उस महानुभव की सम्पूर्ण अभिव्यक्ति के लिए जगह-जगह अपर्याप्त साबित हुई हैं, जिसे किसी युग का समग्र अनुभव कहा जा सकता है।[1]

मुक्तिबोध अकेले कलाकार हैं, जिनके अनुभव का आवेग अभिव्यक्ति की क्षमता से इतना बड़ा था कि सारा साहित्य टूट गया। मुक्तिबोध के साहित्य को कसौटी के रूप में स्वीकार करना खतरे से खाली नहीं। उसमें इतनी प्रचण्डता है कि उस पर परखने पर अपने अन्य गुणों के लिए महत्त्वपूर्ण दूसरों के साहित्य निश्चित ही टुच्चा नजर आएगा। बुद्धिमानी इसी में है कि मुक्तिबोध के साहित्य को उनके ही साहित्य की कसौटी के रूप में देखा जाए। मुक्तिबोध अभिव्यक्ति की जिस बेचैनी से पीड़ित थे, ‘ब्रह्मराक्षस का शिष्य’ उसी की कहानी है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 काठ का सपना (हिन्दी) पुस्तक.ओआरजी। अभिगमन तिथि: 21 दिसम्बर, 2014।

संबंधित लेख