चंबल नदी: Difference between revisions
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*चर्मण्वती नदी को वन पर्व के तीर्थ यात्रा अनु पर्व में पुण्य नदी माना गया है - | *चर्मण्वती नदी को वन पर्व के तीर्थ यात्रा अनु पर्व में पुण्य नदी माना गया है - | ||
'चर्मण्वती समासाद्य नियतों नियताशनः रंतिदेवाभ्यनुज्ञातमग्निष्टोमफलं लभेत्'। | 'चर्मण्वती समासाद्य नियतों नियताशनः रंतिदेवाभ्यनुज्ञातमग्निष्टोमफलं लभेत्'। |
Revision as of 07:50, 23 June 2017
thumb|250px|चंबल नदी चंबल नदी भारत में बहने वाली प्राचीन नदी है। इस नदी का प्राचीन नाम 'चर्मण्वती' है। कुछ स्थानों पर इसे 'कामधेनु' भी कहा जाता है। यह नदी मध्य प्रदेश के मऊ के दक्षिण में मानपुर के समीप 'जनापाव पहाड़ी', जो कि लगभग 616 मीटर ऊँची है, के विन्ध्यन कगारों के उत्तरी पार्श्व से निकलती है। अपने उदगम स्थल से चंबल नदी 325 किलोमीटर उत्तर दिशा की ओर एक लंबे संकीर्ण मार्ग से तीव्रगति से प्रवाहित होती हुई चौरासीगढ़ के समीप राजस्थान में प्रवेश करती है। यहाँ से कोटा तक लगभग 113 किलोमीटर की दूरी एक गार्ज से बहकर तय करती है।[1]
प्रवाह क्षेत्र
चंबल नदी पर भैंसरोड़गढ़ के पास प्रख्यात 'चूलिया' प्रपात है। यह नदी राजस्थान के कोटा, बूँदी, सवाई माधोपुर व धौलपुर ज़िलों में बहती हुई उत्तर प्रदेश के इटावा ज़िले के मुरादगंज स्थान में यमुना नदी में मिल जाती है। उत्तर प्रदेश में बहते हुए चंबल नदी 900 किलोमीटर की दूरी तय करती है। यह राजस्थान की एक मात्र ऐसी नदी है, जो वर्ष भर बहती है। इस नदी पर गांधी सागर, राणा प्रताप सागर, जवाहर सागर और कोटा बैराज बांध बने हैं।
- लम्बाई
चंबल नदी की कुल लंबाई 965 किलोमीटर है। यह राजस्थान में कुल 376 किलोमीटर तक बहती है।
सहायक नदियाँ
चंबल के निचले क्षेत्र में 16 किलोमीटर की लंबी पट्टी बीहड़ क्षेत्र है, जो त्वरित मृदा अपरदन का परिणाम है और मृदा संरक्षण का एक प्रमुख परियोजना स्थल है। ये बाँध सिंचाई तथा विद्युत ऊर्जा के प्रमुख स्रोत हैं। चंबल की प्रमुख सहायक नदियाँ इस प्रकार हैं- [[चित्र:Chambal-River.jpg|thumb|250px|चंबल नदी, (राजस्थान और मध्य प्रदेश की सीमा पर)]]
ग्रन्थों के अनुसार
- महाभारत के अनुसार राजा रंतिदेव के यज्ञों में जो आर्द्र चर्म राशि इकट्ठा हो गई थी उसी से यह नदी उदभुत हुई थी-
'महानदी चर्मराशेरूत्क्लेदात् ससृजेयतःततश्चर्मण्वतीत्येवं विख्याता स महानदी'[2]।
- कालिदास ने भी मेघदूत-पूर्वमेघ 47 में चर्मण्वती नदी को रंतिदेव की कीर्ति का मूर्त स्वरूप कहा गया है-
आराध्यैनं शदवनभवं देवमुल्लघिताध्वा,
सिद्धद्वन्द्वैर्जलकण भयाद्वीणिभिदैत्त मार्गः।
व्यालम्बेथास्सुरभितनयालंभजां मानयिष्यन्,
स्रोतो मूत्यभुवि परिणतां रंतिदेवस्य कीर्तिः'।
इन उल्लेखों से यह जान पड़ता है कि रंतिदेव ने चर्मवती के तट पर अनेक यज्ञ किए थे।
- महाभारत में भी चर्मवती का उल्लेख है -
'ततश्चर्मणवती कूले जंभकस्यात्मजं नृपं ददर्श वासुदेवेन शेषितं पूर्ववैरिणा'[3] अर्थात इसके पश्चात् सहदेव ने (दक्षिण दिशा की विजय यात्रा के प्रसंग में) चर्मण्वती के तट पर जंभक के पुत्र को देखा जिसे उसके पूर्व शत्रु वासुदेव ने जीवित छोड़ दिया था। सहदेव इसे युद्ध में हराकर दक्षिण की ओर अग्रसर हुए थे।
- चर्मण्वती नदी को वन पर्व के तीर्थ यात्रा अनु पर्व में पुण्य नदी माना गया है -
'चर्मण्वती समासाद्य नियतों नियताशनः रंतिदेवाभ्यनुज्ञातमग्निष्टोमफलं लभेत्'।
- श्रीमदभागवत में चर्मवती का नर्मदा के साथ उल्लेख है -
'सुरसानर्मदा चर्मण्वती सिंधुरंधः'[4]
- इस नदी का उदगम जनपव की पहाड़ियों से हुआ है। यहीं से गंभीरा नदी भी निकलती है। यह यमुना की सहायक नदी है।
- महाभारत में अश्वनदी का चर्मण्वती में, चर्मण्वती का यमुना में और यमुना का गंगा नदी में मिलने का उल्लेख है –
मंजूषात्वश्वनद्याः सा ययौ चर्मण्वती नदीम्,
चर्मण्वत्याश्व यमुना ततो गंगा जगामह।
गंगायाः सूतविषये चंपामनुययौपुरीम्'।[5]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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