राम नरेश यादव: Difference between revisions
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राम नरेश यादव
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पूरा नाम | राम नरेश यादव |
जन्म | 1 जुलाई, 1928 |
जन्म भूमि | आजमगढ़, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 22 नवंबर, 2016 (आयु- 88 वर्ष) |
मृत्यु स्थान | लखनऊ, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु कारण | लम्बी बीमारी के कारण |
अभिभावक | गया प्रसाद (पिता), भागवन्ती देवी (माता) |
पति/पत्नी | अनारी देवी ऊर्फ शांति देवी |
संतान | तीन पुत्र तथा पाँच पुत्रियाँ |
नागरिकता | भारतीय |
पार्टी | जनता पार्टी, कांग्रेस |
पद | राज्यपाल (मध्य प्रदेश), पूर्व मुख्यमंत्री (उत्तर प्रदेश) |
कार्य काल | मुख्यमंत्री- 23 जून, 1977 से 15 फरवरी, 1979 तक |
शिक्षा | बी.ए., एम.ए. और एल.एल.बी |
विद्यालय | 'वेस्ली हाई स्कूल', आजमगढ़; 'डी.ए.वी. कॉलेज', वाराणसी; 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय', वाराणसी |
विशेष योगदान | 'केन्द्रीय जन संसाधन मंत्रालय' के अंतर्गत गठित 'हिन्दी भाषा समिति' के सदस्य के रूप में और लखनऊ में 'अम्बेडकर विश्वविद्यालय' को 'केन्द्रीय विश्वविद्यालय' का दर्जा दिलाने में काफ़ी योगदान दिया। |
अन्य जानकारी | 12 अप्रैल, 1989 को राज्य सभा के अन्दर 'डिप्टी लीडरशिप', 'पार्टी के महामंत्री' एवं अन्य पदों से त्यागपत्र देकर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली। |
अद्यतन | 17:57, 22 नवम्बर 2016 (IST)
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राम नरेश यादव (अंग्रेज़ी:Ram Naresh Yadav, जन्म: 1 जुलाई, 1928 - मृत्यु: 22 नवंबर, 2016) भारतीय राजनीति में एक राजनेता के रूप में जाना-पहचाना नाम है। एक शिक्षक और एक अधिवक्ता के रूप में सामाजिक रूप से प्रगति करते हुए राम नरेश यादव आगे चलकर एक ईमानदार और मूल्यों की राजनीति करने वाले आम आदमी के मददगार और एक दिग्गज राजनीतिज्ञ कहलाए। पेशे से वकील राम नरेश यादव राजनारायण के विचारों से प्रभावित होकर 'जनता पार्टी' से जुड़े। 1977 में आजमगढ़ लोकसभा सीट से जीतकर वे छठवीं लोकसभा के सदस्य बने। इसी दौरान वह 23 जून, 1977 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और इस पद पर 15 फरवरी, 1979 तक रहे। बाद में ये कांग्रेस पार्टी से जुड़े और संगठन में विभिन्न पदों पर भी रहे।
जन्म तथा परिवार
राम नरेश यादव का जन्म 1 जुलाई, 1928 ई. को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़, ज़िले के गाँव आँधीपुर (अम्बारी) में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। इनका बचपन खेत-खलिहानों से होकर गुजरा। इनकी माता भागवन्ती देवी एक साधारण और धार्मिक विचारों वाली गृहिणी थीं और पिता गया प्रसाद जी महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू और डॉ. राममनोहर लोहिया के अनुयायी थे। राम नरेश यादव के पिता प्राइमरी पाठशाला में अध्यापक थे तथा सादगी और ईमानदारी की प्रतिमूर्ति थे। यादव को देशभक्ति, ईमानदारी और सादगी की शिक्षा अपने पिता से ही विरासत स्वरूप प्राप्त हुई थी। राम नरेश यादव का भारतीय राजनीति में अपना विशिष्ट स्थान है। स्वदेशी एवं स्वावलंबन आपके जीवन का आदर्श रहा है। इनके बहुमुखी कृतित्व एवं व्यक्तित्व के कारण ही ये 'बाबूजी' के नाम से भी जाने जाते हैं।[1]
शिक्षा
इनकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के विद्यालय में ही हुई और इन्होंने हाईस्कूल की शिक्षा आजमगढ़ के मशहूर 'वेस्ली हाई स्कूल' से प्राप्त की। इन्टरमीडिएट, 'डी.ए.वी. कॉलेज', वाराणसी से और बी.ए., एम.ए. और एल.एल.बी. की डिग्री 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय', वाराणसी से प्राप्त की। उस समय प्रसिद्ध समाजवादी चिन्तक एवं विचारक आचार्य नरेन्द्र देव 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय' के कुलपति थे। विश्वविद्यालय के संस्थापक एवं जनक पंडित मदनमोहन मालवीय के गीता पर उपदेश तथा भारत के पूर्व राष्ट्रपति एवं तत्कालीन प्रोफ़ेसर राधाकृष्णन के भारतीय दर्शन पर व्याख्यान की गहरी छाप राम नरेश यादव के विद्यार्थी जीवन में पड़ गई थी।
राम नरेश यादव ने अपनी स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात वाराणसी में 'चिन्तामणि एंग्लो बंगाली इन्टरमीडिएट कॉलेज' में प्रवक्ता के पद पर तीन वर्षों तक सफल शिक्षक के रूप में कार्य किया। इन्होंने 'पट्टी नरेन्द्रपुर इंटर कॉलेज, जौनपुर में भी कुछ समय तक प्रवक्ता पद पर कार्य किया। अपनी क़ानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद सन 1953 में उन्होंने आजमगढ़ में वकालत प्रारम्भ की और अपनी कर्मठता तथा ईमानदारी के बल पर अपने पेशे तथा आम जनता में अपना एक महत्त्वपूर्ण स्थान बनाया।
विवाह
राम नरेश यादव का विवाह सन 1949 में ग्राम करमिसिरपुर (मालीपुर), अम्बेडकर नगर ज़िला, उत्तर प्रदेश निवासी राजाराम यादव की पुत्री सुश्री अनारी देवी ऊर्फ शांति देवी के साथ सम्पन्न हुआ था। इस विवाह से राम नरेश यादव तीन पुत्र और पाँच पुत्रियों के पिता बनें।[1]
समाजवादी आन्दोलन
श्री यादव ने छात्र जीवन से ही समाजवादी आन्दोलन में शामिल होकर अपने राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन की शुरुआत की। "आजमगढ़ के गांधी" कहे जाने वाले बाबू विश्राम राय का आपको भरपूर सान्निध्य मिला। राम नरेश यादव ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और डॉ. राममनोहर लोहिया के विचारों को अपना आदर्श माना। उन्होंने समाजवादी विचारधारा के अन्तर्गत विशेष रूप से जाति तोड़ो, विशेष अवसर के सिद्धान्त, बढ़े नहर रेट, किसानों की लगान माफी, समान शिक्षा, आमदनी एवं खर्च की सीमा बांधने, वास्तविक रूप से ज़मीन जोतने वालों को उनका अधिकार दिलाने, अंग्रेज़ी हटाओ आदि आन्दोलनों को लेकर अनेकों बार अपनी गिरफ्तारियाँ दीं। आपात काल के दौरान ये मीसा और डी.आई.आर. के अधीन जून, 1975 से फरवरी, 1977 तक आजमगढ़ जेल और केन्द्रीय कारागार नैनी, इलाहाबाद में निरूद्ध रहे।
विभिन्न पदों पर कार्य
अपने राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन में राम नरेश यादव विभिन्न दलों एवं संगठनों तथा संस्थाओं से संबद्ध रहे। राज्य सभा सदस्य तथा संसदीय दल के उपनेता भी रहे। आप 'अखिल भारतीय राजीव ग्राम्य विकास मंच', 'अखिल भारतीय खादी ग्रामोद्योग कमीशन कर्मचारी यूनियन' और 'कोयला मज़दूर संगठन कांग्रेस' के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में ग्रामीणों और मज़दूर तबके के कल्याण के लिये लम्बे समय तक संघर्षरत रहे। 'बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय' में एक्सिक्यूटिव कॉसिंल के सदस्य भी थे। 'अखिल भारतीय अन्य पिछड़ा वर्ग' (ओ.बी.सी.) 'रेलवे कर्मचारी महासंघ' के आप राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बने और 'जनता इंटर कालेज', अम्बारी, आजमगढ़ के प्रबंधक तथा अनेकों शिक्षण संस्थाओं के संरक्षक भी बने। राम नरेश यादव 'गांधी गुरुकुल इन्टर कालेज', भंवरनाथ, आजमगढ़ के प्रबंध समिति के अध्यक्ष हैं।[1]
कांग्रेस के सदस्य
राम नरेश यादव 23 जून, 1977 को उत्तर प्रदेश राज्य के मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए थे। मुख्यमंत्रित्व काल में आपने सबसे अधिक ध्यान आर्थिक, शैक्षणिक तथा सामाजिक दृष्टि से पिछड़े लोगों के उत्थान के कार्यों पर दिया तथा गांवों के विकास के लिये समर्पित रहे। आपने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आदर्शों के अनुरूप उत्तर प्रदेश में 'अन्त्योदय योजना' का शुभारम्भ किया। श्री यादव सन 1988 में संसद के उच्च सदन राज्य सभा के सदस्य भी बने। इन्होंने 12 अप्रैल, 1989 को राज्य सभा के अन्दर डिप्टी लीडरशिप, पार्टी के महामंत्री एवं अन्य पदों से त्यागपत्र देकर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली।
योगदान
मानव संसाधन विकास संबंधी संसदीय स्थायी समिति के पहले अध्यक्ष के रूप में राम नरेश यादव ने स्वास्थ्य, शिक्षा और संस्कृति के चहुंमुखी विकास को दिशा देने संबंधी रिपोर्ट सदन में पेश की। केन्द्रीय जन संसाधन मंत्रालय के अंतर्गत गठित हिन्दी भाषा समिति के सदस्य के रूप में आपने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। वित्त मंत्रालय की महत्त्वपूर्ण नारकोटिक्स समिति के सदस्य के रूप में सीमावर्ती राज्यों में नशीले पदार्थों की खेती की रोकथाम की पहल इन्होंने की। 'प्रतिभूति घोटाले' की जांच के लिए बनी संयुक्त संसदीय समिति के सदस्य के रूप में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। 'पब्लिक एकाउंट कमेटी' (पी.ए.सी.), 'संसदीय सलाहकार समिति' (गृह विभाग), 'रेलवे परामर्शदात्री समिति' और 'दूरभाष सलाहकार समिति' के सदस्य के रूप में आप कार्यरत रहे। श्री यादव कुछ समय तक कृषि की स्थाई संसदीय समिति के सदस्य तथा 'इंडियन काँसिल ऑफ़ एग्रीकल्चरल रिसर्च' की जनरल बाडी तथा गवर्निंग बाडी के सदस्य भी रहे। इन्होंने लखनऊ में 'अम्बेडकर विश्वविद्यालय' को 'केन्द्रीय विश्वविद्यालय' का दर्जा दिलाने में काफ़ी योगदान दिया।[1]
राजनीतिक सफर
राम नरेश यादव ने अपनी लम्बी राजनीतिक पारी में कई महत्त्वपूर्ण पड़ावों को स्पर्श किया है-
- सन 1977 में उन्होंने आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) से छठी लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया।
- 23 जून, 1977 से 15 फरवरी, 1979 तक वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।
- 1977 से 1979 तक निधौली कलां (एटा) का विधान सभा में आपने प्रतिनिधित्व किया तथा 1985 से 1988 तक शिकोहाबाद (फ़िरोजाबाद) से विधायक रहे।
- राम नरेश यादव 1988 से 1994 तक (लगभग तीन माह छोड़कर) उत्तर प्रदेश से राज्य सभा सदस्य रहे और 1996 से 2007 तक फूलपुर, आजमगढ़ का विधान सभा में प्रतिनिधित्व किया।
- उन्होंने दिनांक 8 सितम्बर, 2011 को अपरान्ह सवा एक बजे मध्य प्रदेश के राज्यपाल पद की शपथ ग्रहण की।[1]
मृत्यु
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रामनरेश यादव का मंगलवार को लंबी बीमारी के बाद लखनऊ के संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) में निधन हो गया। वह 88 साल के थे। राज्य के वर्तमान राज्यपाल राम नाईक और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पूर्व मुख्यमंत्री के निधन पर दु:ख व्यक्त किया है। उन्होंने दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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