उदयगिरि गुफ़ाएँ: Difference between revisions
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[[चित्र:Udaygiri-Caves-Vidisha-1.jpg|[[वराह अवतार]] भित्ति मू्र्तिकला, उदयगिरि <br /> Massive rock carving depicting Vishnu, in his Varaha incarnation, Udaygiri | [[चित्र:Udaygiri-Caves-Vidisha-1.jpg|thumb|250px|[[वराह अवतार]] भित्ति मू्र्तिकला, उदयगिरि <br /> Massive rock carving depicting Vishnu, in his Varaha incarnation, Udaygiri]] | ||
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यह तीनों वैष्णव गुफ़ाएँ हैं, जिनमें सिर्फ़ विष्णु के अवशेष रह गये हैं। | यह तीनों वैष्णव गुफ़ाएँ हैं, जिनमें सिर्फ़ विष्णु के अवशेष रह गये हैं। |
Revision as of 10:15, 31 October 2010
[[चित्र:Udaygiri.jpg|उदयगिरि की गुफ़ा, विदिशा
Udaygiri Cave, Vidisha|thumb|250px]]
बेसनगर या प्राचीन विदिशा (भूतपूर्व ग्वालियर सियासत) के निकट उदयगिरि विदिशा नगरी ही का उपनगर था। एक अन्य गुफ़ा में गुप्त संवत् 425-426 ई. में उत्कीर्ण कुमार गुप्त प्रथम के शासन काल का एक अभिलेख है। इसमें शंकर नामक किसी व्यक्ति द्वारा गुफ़ा के प्रवेश-द्वार पर जैन तीर्थ कर पार्श्वनाथ की मूर्ति के प्रतिष्ठापित किए जाने का उल्लेख है- यह लेख इस प्रकार है-
'नमः सिद्धेभ्यः श्री संयुतानां गुणतोयधीनां गुप्तान्वयानां नृपसत्तमाना राज्ये कुलस्याधिविवर्धमाने षड्भिर्य्युतैः वर्षशतेथ मासे सुकार्तिके बहुल दिनेथ पंचमे गुहामुखे स्फटविकतोत्कटामिमां जितोद्विषो जिनवर पार्श्व-संज्ञिका जिनाकृर्ति शमदमवानचीकरत् आचार्य भद्रान्वय भूषणस्य शिष्योह्मसावार्य कुलोद्गतस्य आचार्य गोशर्म्ममुनेस्तुसुतस्तु पद्मावतावश्वपतेब्भटस्य परैरजयस्य सिपुघ्न मानिनस्य संघिल स्येत्यभि विश्रृतोभुवि स्वसंज्ञया शंकरनाम शब्दितो विधानयुक्तं यतिमार्गमास्थितः स उत्तराणां सदंशे कुरुणां उदग्दिशादेशवरे प्रसूतः क्षयाय कर्मारिगणस्य धीमान् यदत्र पुण्यं तद्पाससर्ज्ज।'
यह प्राचीन स्थल भिलसा से चार मील दूर बेतवा तथा बेश नदियों के बीच स्थित है। चन्द्रगुप्त द्वितीय के उदयगिरि गुहालेख में इस सुप्रसिद्ध पहाड़ी का वर्णन है। यहाँ पर बीस गुफाएँ है। जो हिन्दू और जैन मूर्तिकारी के लिए प्रसिद्ध हैं। मूर्तियाँ विभिन्न पौराणिक कथाओं से सम्बद्ध हैं और अधिकांश गुप्तकालीन हैं। मूर्तिकला की दृष्टि से पाँचवीं गुफा सबसे महत्वपूर्ण है। इसमें वराह अवतार का दृश्य अंकित वराह भगवान का बाँया पाँव नाग राजा के सिर पर दिखलाया गया है। जो सम्भवतः गुप्तकाल में सम्राटों द्धारा कि गये नाग शक्ति के परिहास का प्रतीक है। छठी गुफा में दो द्वारपालों, विष्णु, महिष-मर्दिनी एवं गणेश की मूर्तियाँ हैं। गुफा छः से प्राप्त लेख से ज्ञात होता है कि उस क्षेत्र पर सनकानियों का अधिकार था। उदयगिरि के द्वितीय गुफा लेख में चन्द्रगुप्त के सचिव पाटलिपुत्र निवासी वीरसेन उर्फ शाव द्वारा शिव मन्दिर के रूप में गुफा निर्माण कराने का उल्लेख है। वह वहाँ चन्द्रगुप्त के साथ किसी अभियान में आया था। तृतीय उदयगिरि गुफा लेख में कुमारगुप्त के शासन काल में शंकर नामक व्यक्ति द्वारा गुफा संख्या दस के द्वार पर जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ की मूर्ति को प्रतिष्ठित कराये जाने का उल्लेख है।
गुफ़ाएँ
पहाड़ियों से अन्दर बीस गुफ़ाएँ हैं जो हिंदू और जैन-मूर्तिकारी के लिए प्रख्यात हैं। मूर्तियाँ विभिन्न पौराणिक कथाओं से सम्बद्ध हैं और अधिकांश गुप्तकालीन (चौथी-पाँचवी शती ई.) हैं। यहाँ पाये जाने वाले स्थानीय पत्थर के कारण इन गुफ़ाओं में से अधिकांश गुफ़ाएँ मूर्ति- विहीन गुफ़ाएँ रह गई हैं। खुदाई का काम आसान था क्योंकि यह पत्थर नरम थे, लेकिन साथ- ही- साथ यह मौसमी प्रभावों को झेलने के लिए उपयुक्त नहीं हैं।
गुफ़ा सं. 1
इस गुफ़ा का नाम सूरज गुफ़ा है। इस गुफ़ा में अठखेलियाँ करती वेत्रवती, साँची स्तूप तथा रायसेन के क़िले की शिलाएँ स्पष्ट दिखाई पड़ती है। इस गुफ़ा में 7 फ़ीट लंबे और 6 फ़ीट चौड़े कक्ष हैं।
गुफ़ा सं. 2
यह गुफ़ा 7 फ़ीट 11 इंच लंबी और 6 फ़ीट 1.5 इंच चौड़ी एक कक्ष की भाँति है, जिसका अब केवल निशान रह गया है।
गुफ़ा सं. 3
यह गुफ़ा भीतर से 86 फ़ीट चौड़ी और 6 फ़ीट 3 इंच गहरी है। इसमें बची 5 मूर्तियों में से कुछ मूर्तियाँ चर्तुमुखी है व वनमाला धारण किये हुए हैं।
गुफ़ा सं. 4
इस गुफ़ा में शिवलिंग की प्रतिमा है। इसके प्रवेश द्वार पर एक मनुष्य वीणावादन में व्यस्त दिखाया गंया है जिसके करण इस गुफ़ा को 'बीन की गुफ़ा' कहते हैं। यह गुफ़ा 13 फ़ीट 11 इंच लंबी और 11 फ़ीट 8 इंच चौड़ी है।
गुफ़ा सं. 5
इस गुफ़ा को वराह गुफ़ा कहते है क्योंकि इसमे वराहवतार की सुन्दर झाँकी है। इसमें वराह भगवान को नर और वराह रूप में अंकित किया है। उनका बायाँ पाँव नागराजा के सिर पर दिखलाया गया है जो संभवतः गुप्तकाल में गुप्त-सम्राटों द्वारा किए गए नामशक्ति के परिह्रास का प्रतीक है। यह गुफ़ा 22 फ़ीट लंबी और 12 फ़ीट 8 इंच ऊँची है।
गुफ़ा सं. 6
इस गुफ़ा के दरवाजे के बाहर दो द्वारपाल, दो विष्णु, एक गणेश और एक महिषासुरमर्दिनी की मूर्ति बनाई हुई है। ये भव्य मूर्तियाँ भारतीय मूर्तिकला के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
गुफ़ा सं. 7
इस गुफ़ा में अब सिर्फ़ दो द्वारपालों के चिंह अवशिष्ट हैं, जो गुफ़ा स. 6 की तरह ही बनायी गयी है। प्राप्त शिलालेखों से पता चलता है कि यह एक शैव गुफ़ा है।
गुफ़ा सं. 8
इस गुफ़ा का कुछ भी नाम और निशान नहीं बचा है।
[[चित्र:Udaygiri-Caves-Vidisha-1.jpg|thumb|250px|वराह अवतार भित्ति मू्र्तिकला, उदयगिरि
Massive rock carving depicting Vishnu, in his Varaha incarnation, Udaygiri]]
गुफ़ा सं. 9, 10 और 11
यह तीनों वैष्णव गुफ़ाएँ हैं, जिनमें सिर्फ़ विष्णु के अवशेष रह गये हैं।
गुफ़ा सं. 12
यह गुफ़ा भी वैष्णव गुफ़ा है, इसमें भी विष्णु की मूर्ति बनाई गई थी और बाहर दो द्वारपाल भी बनाये गये थे। जिनका अब कोई नाम और निशान नहीं बचा है।
गुफ़ा सं. 13
इस दालाननुमा गुफ़ा का मुख उत्तर की ओर है। इसके सामने से उदयगिरि पहाड़ी के ऊपर जाने का प्रमुख़ मार्ग है। यह गुफा शेषशायी विष्णु की मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है। मूर्ति की लंबाई 12 फ़ीट है। मूर्ति के सिर पर फ़ारसी मुकुट, गले में हार, भुजबंध व हाथों में कंगन हैं। वैजयंतीमाला घुटनों तक लंबी है। गुफ़ा के आस- पास व सामने वाली चट्टान पर शंख लिपि खुदी हुई है, जो संसार की प्राचीनतम लिपियों में से एक मानी जाती है।
गुफ़ा सं. 14
इस गुफ़ा का भी कोई नाम और निशान नहीं बचा है।
गुफ़ा सं. 15 और 16
इन गुफ़ाओं की मूर्तियाँ नष्ट कर दी गई हैं इसलिए यह गुफ़ाएँ ख़ाली हैं।
गुफ़ा सं. 17
इसमें भी गुफ़ा सं. 6 की तरहा दोनों तरफ द्वारपाल हैं, परंतु गणेश की मूर्ति पर निखार आ गया है। मूर्ति के सिर पर मुकुट बना हुआ है। इसके अलावा इसमें महिषासुरमर्दिनी की भी एक मूर्ति स्थापित की गई है।
गुफ़ा सं. 18
यह गुफ़ा अब ख़ाली रह गई है क्योंकि इसकी सारी मूर्तियाँ तोड़ दी गई हैं।
गुफ़ा सं. 19
यह गुफ़ा उदयगिरि की गुफाओं में सबसे बड़ी है। इसके अन्दर एक शिवलिंग है, जिसकी पूजा स्थानीय लोग आज भी करते हैं। ऊपर भीतरी छत पर कमल की आकृति बनी हुई है। बाहर दोनों ओर द्वारपालों की दो बड़ी- बड़ी क्षरणयुक्त मूर्तियाँ हैं। ऊपर की तरफ एक सुंदर समुद्र मंथन का भी दृश्य है। बीच में मंदराचल को वासुकी नाग के साथ बाँधकर एक ओर देवगण व दूसरी ओर असुरगण मंथन कर रहे हैं। द्वार के चारों तरफ अनेक प्रकार की लताएँ, बेलें, कीर्तिमुख व आकृतियाँ खुदी हुई हैं।
गुफ़ा सं. 20
इस गुफ़ा में चार मूर्तियाँ हैं, जो कमलासनों पर विराजमान हैं। इसके चारों ओर आभामण्डल व ऊपर छत्र हैं। इसमें तीन मूर्तियों में नीचे की तरफ, जो चक्र है उनके दोनों ओर दो सिंह आमने- सामने मुँह करे हुए बैठे हैं।
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