बस्ती ज़िला: Difference between revisions

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अन्य विशेष उल्लेख राजपूत कबीले में चौहान का था। यह कहा जाता है कि चित्तौङ से तीन प्रमुख मुकुंद भागे थे जिनका ज़िला बस्ती की अविभाजित हिस्से पर (अब यह ज़िला सिद्धार्थ नगर में है) शासन था। 14 वीं सदी की अंतिम तिमाही तक बस्ती ज़िले का एक भाग अमोढ़ा पर कायस्थ वंश का शासन था।
अन्य विशेष उल्लेख राजपूत कबीले में चौहान का था। यह कहा जाता है कि चित्तौङ से तीन प्रमुख मुकुंद भागे थे जिनका ज़िला बस्ती की अविभाजित हिस्से पर (अब यह ज़िला सिद्धार्थ नगर में है) शासन था। 14 वीं सदी की अंतिम तिमाही तक बस्ती ज़िले का एक भाग अमोढ़ा पर कायस्थ वंश का शासन था।
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[[अकबर]] और उनके उत्तराधिकारी के शासनकाल के दौरान ज़िला बस्ती, अवध सुबे के गोरखपुर सरकार का एक हिस्सा बना हुआ था। जौनपुर के गवर्नर के शासनकाल के शुरू के दिनों में यह ज़िला विद्रोही अफगानिस्तान के नेताओं जैसे अली कुली खान, खान जमान का शरणस्थली था । 1680 में [[मुग़ल काल]] के दौरान [[औरंगजेब]] ने एक दूत (पथ के धारक) काजी खलील-उर-रहमान को गोरखपुर भेजा था शायद स्थानीय प्रमुखों से राजस्व का नियमित भुगतान प्राप्त करने के लिए खलील-उर-रहमान ने ही गोरखपुर से सटे जिलो के सरदारों को मजबूर किया था कि वे राजस्व का भुगतान करे। इस क़दम का यह परिणाम हुआ कि अमोढ़ा और नगर के राजा, जो हाल ही में सत्ता हासिल की थी, राजस्व का भुगतान को तैयार हो गये और टकराव इस तरह टल गया। इसके बाद खलील-उर-रहमान ने मगहर के लिए रवाना हुआ जहाँ उसने अपनी चौकी बनाया तथा राप्ती के तट पर बने बांसी के राजा के किले पर कब्ज़ा कर लिया। नव निर्मित ज़िला [[संत कबीर नगर]] का मुख्यालय खलीलाबाद शहर का नाम खलील उर रहमान से पङा जिसका कब्र मगहर मे बना है। उसी समय एक प्रमुख सङक गोरखपुर से अयोध्या का निर्माण हुआ था 1690 फ़रवरी में, हिम्मत खान (शाहजहाँ खान बहादुर जफर जंग कोकल्ताश का पुत्र, इलाहाबाद का सूबेदार) को अवध का सूबेदार और गोरखपुर फौजदार बनाया गया, जिसके अधिकार में बस्ती और उसके आसपास का क्षेत्र बहुत समय तक था।
[[अकबर]] और उनके उत्तराधिकारी के शासनकाल के दौरान ज़िला बस्ती, अवध सुबे के गोरखपुर सरकार का एक हिस्सा बना हुआ था। जौनपुर के गवर्नर के शासनकाल के शुरू के दिनों में यह ज़िला विद्रोही अफगानिस्तान के नेताओं जैसे अली कुली खान, खान जमान का शरणस्थली था । 1680 में [[मुग़ल काल]] के दौरान [[औरंगजेब]] ने एक दूत (पथ के धारक) काजी खलील-उर-रहमान को गोरखपुर भेजा था शायद स्थानीय प्रमुखों से राजस्व का नियमित भुगतान प्राप्त करने के लिए खलील-उर-रहमान ने ही गोरखपुर से सटे जिलो के सरदारों को मजबूर किया था कि वे राजस्व का भुगतान करे। इस क़दम का यह परिणाम हुआ कि अमोढ़ा और नगर के राजा, जो हाल ही में सत्ता हासिल की थी, राजस्व का भुगतान को तैयार हो गये और टकराव इस तरह टल गया। इसके बाद खलील-उर-रहमान ने मगहर के लिए रवाना हुआ जहाँ उसने अपनी चौकी बनाया तथा राप्ती के तट पर बने बांसी के राजा के किले पर कब्ज़ा कर लिया। नव निर्मित ज़िला [[संत कबीर नगर]] का मुख्यालय खलीलाबाद शहर का नाम खलील उर रहमान से पङा जिसका क़ब्र मगहर मे बना है। उसी समय एक प्रमुख सङक गोरखपुर से अयोध्या का निर्माण हुआ था 1690 फ़रवरी में, हिम्मत खान (शाहजहाँ खान बहादुर जफर जंग कोकल्ताश का पुत्र, इलाहाबाद का सूबेदार) को अवध का सूबेदार और गोरखपुर फौजदार बनाया गया, जिसके अधिकार में बस्ती और उसके आसपास का क्षेत्र बहुत समय तक था।
====आधुनिक काल====
====आधुनिक काल====
एक महान और दूरगामी परिवर्तन तब आया जब [[9 सितम्बर]], 1772 मे सआदत खान को अवध सूबे का राज्यपाल नियुक्त किया गया जिसमे गोरखपुर का फौजदारी भी था। उसी समय बंसी और रसूलपुर पर सर्नेट राजा का, बिनायाकपुर पर बुटवल के चौहान का, बस्ती पर कल्हण शासक का, अमोढ़ा पर सूर्यवंश का, नगर पर गौतम का, महुली पर सूर्यवंश का शासन था। जबकि अकेला मगहर पर नवाब का शासन था, जो मुसलमान चौकी से मजबूत बनाया गया था।
एक महान और दूरगामी परिवर्तन तब आया जब [[9 सितम्बर]], 1772 मे सआदत खान को अवध सूबे का राज्यपाल नियुक्त किया गया जिसमे गोरखपुर का फौजदारी भी था। उसी समय बंसी और रसूलपुर पर सर्नेट राजा का, बिनायाकपुर पर बुटवल के चौहान का, बस्ती पर कल्हण शासक का, अमोढ़ा पर सूर्यवंश का, नगर पर गौतम का, महुली पर सूर्यवंश का शासन था। जबकि अकेला मगहर पर नवाब का शासन था, जो मुसलमान चौकी से मजबूत बनाया गया था।

Revision as of 13:26, 31 January 2011

बस्ती ज़िला
राज्य उत्तर प्रदेश
मुख्यालय बस्ती
स्थापना सन 1865 ई.
जनसंख्या 2068922 (2001)
क्षेत्रफल 7309 वर्ग किलोमीटर
भौगोलिक निर्देशांक 26° 23' और 27° 30' उत्तर अक्षांश तथा 82° 17' और 83° 20' पूर्वी देशांतर
तहसील 03
मंडल बस्ती
खण्डों की सँख्या 13
कुल ग्राम 3354
मुख्य ऐतिहासिक स्थल छावनी बाज़ार,
मुख्य पर्यटन स्थल संत रविदास वन विहार, गणेशपुर, मखौदा, नागर, चंदू तल, बराह, भद्रेश्‍वर नाथ, अगौना
लिंग अनुपात 1000/916 (2001) ♂/♀
साक्षरता 54.28 %
· स्त्री 39.00 %
· पुरुष 68.16 %
तापमान 26°C (औसत)
· ग्रीष्म 25°C से 44°C के बीच
· शरद 9°C से 23°C के बीच
वर्षा 1166mm मिमि
दूरभाष कोड 05542
वाहन पंजी. U.P.- 51
बाहरी कड़ियाँ अधिकारिक वेबसाइट
अद्यतन‎

यह भारत के उत्तर प्रदेश प्रान्त का एक शहर है |

नाम की उत्पत्ति

प्राचीन काल में बस्ती मूलतः वैशिश्थी के रूप में जाना जाता था। वैशिश्थी नाम महर्षि वसिष्ठ के नाम से बना हैं, जिनका ऋषि आश्रम यहां पर था। वर्तमान ज़िला बहुत पहले निर्जन और वन से ढका था लेकिन धीरे - धीरे क्षेत्र बसने योग्य बन गया था। वर्तमान नाम बस्ती राजा कल्हण द्वारा चयनित किया गया था, यह घटना जो शायद 16 वीं सदी में हुई थी। 1801 में बस्ती तहसील मुख्यालय बन गया था और 1865 में यह नव स्थापित ज़िले के मुख्यालय के रूप में चुना गया था ।

इतिहास

प्राचीन काल

बहुत प्राचीन काल में बस्ती के आसपास का जगह कौशल देश का हिस्सा था। शतपथ ब्राह्मण अपने सूत्र में कौशल का उल्लेख किया हैं, यह एक वैदिक आर्यों और वैयाकरण पाणिनी का देश था। राम चन्द्र राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र थे जिनकी महिमा कौशल देश मे फैली हुई थी, जिंहे एक आदर्श वैध राज्य, लौकिक राम राज्य की स्थापना का श्रेय जाता है। परंपरा के अनुसार, राम के बड़े बेटे कुश कौशल के सिंहासन पर बैठे, जबकि छोटे बेटे लव को राज्य के उत्तरी भाग का शासक बनाया गया राजधानी श्रावस्ती था। इक्ष्वाकु से 93वां पीढ़ी और राम से 30वां पीढ़ी बृहदबाला था, यह इक्ष्वाकु शासन का अंतिम प्रसिद्ध राजा था, जो महान महाभारत युद्ध में मारा गया था। छठी शताब्दी ई. में गुप्त शासन की गिरावट के साथ बस्ती भी धीरे - धीरे उजाड़ हो गया, इस समय एक नए राजवंश मौखरी हुआ, जिसकी राजधानी कन्नौज था, जो उत्तरी भारत के राजनैतिक नक्शे पर एक महत्त्वपूर्ण स्थान ग्रहण किया और इसी राज्य में मौजूद ज़िला बस्ती भी शामिल था ।

9वीं शताब्दी ई. की शुरुआत में, गुर्जर प्रतिहार राजा नागभट्ट द्वितीय ने अयोध्या से कन्नौज शासन को उखाड़ फेंका और यह शहर उनके नये बनते शासन का राजधानी बना, जो राजा महीरा भोज 1 (836 - 885 ई.) के समय मे बहुत ऊचाई पर था। राजा महिपाल के शासनकाल के दौरान, कन्नौज के सत्ता में गिरावट शुरू हो गई थी और अवध छोटा छोटे हिस्सों में विभाजित हो गया था लेकिन उन सभी को अंततः नये उभरते शक्ति कन्नौज के गढवाल राजा जयचंद्र (1170-1194 ई.) मिले। यह वंश के अंतिम महत्त्वपूर्ण शासक थे जो हमलावर सेना मुहम्मद गौरी के ख़िलाफ़ चँद॔वार की लड़ाई (इटावा के पास) में मारे गये थे उनकी मृत्यु के तुरंत बाद कन्नौज तुर्कों के कब्जे में चला गया। किंवदंतियों के अनुसार, सदियों से बस्ती एक जंगल था और अवध की अधिक से अधिक भाग पर भार लोगो का कब्जा था। भार के मूल और इतिहास के बारे में कोई निश्चित प्रमाण शीघ्र उपलब्ध नहीं है। ज़िला में एक व्यापक भार राज्य के सबूत के रूप मे प्राचीन ईंट इमारतों के खंडहर लोकप्रिय है जो ज़िले के कई गांवों मे बहुतायत संख्या में फैले है ।

मध्ययुगीन काल

13 वीं सदी की शुरुआत में, 1225 में इल्तुतमिश का बड़ा बेटा, नासिर-उद-दीन महमूद, अवध के गवर्नर बन गया और इसने भार लोगो के सभी प्रतिरोधो को पूरी तरह कुचल डाला। 1323 में, गयासुद्दीन तुगलक बंगाल जाने के लिए बेहराइच और गोंडा के रास्ते गया शायद वह ज़िला बस्ती के जंगल के खतरों से बचना चाहता था और वह आगे अयोध्या से नदी के रास्ते गया । 1479 में, बस्ती और आसपास के ज़िले, जौनपुर राज्य के शासक ख्वाजा जहान के उत्तराधिकरियो के नियंत्रण में था। बहलोल लोदी अपने भतीजे काला पहाड़ को इस क्षेत्र का शासन दे दिया था जिसका मुख्यालय बेहराइच को बनाया था जिसमे बस्ती सहित आसपास के क्षेत्र भी थे। इस समय के आसपास, महात्मा कबीर, प्रसिद्ध कवि और दार्शनिक इस ज़िले में मगहर में रहते थे।
यह कहा जाता है कि प्रमुख राजपूत कुलों के आगमन से पहले, इन ज़िलों में स्थानीय हिंदू और हिंदू राजा थे और कहा जाता है कि इन्हीं शासको द्वारा भार, थारू, दोमे और दोमेकातर जैसे आदिवासी जनजातियों और उनके सामान्य परम्पराओ को खत्म कर दिया गया, ये सब कम से कम प्राचीन राज्यों के पतन के बाद और बौद्ध धर्म के आने के बाद हुआ। इन हिंदुओं में भूमिहार ब्राह्मण, सर्वरिया ब्राह्मण और विसेन शामिल थे। पश्चिम से राजपूतों के आगमन से पहले इस ज़िले में हिंदू समाज का राज्य था। 13 वीं सदी के मध्य में श्रीनेत्र पहला नवागंतुक था जो इस क्षेत्र मे आ कर स्थापित हुआ। जिनका प्रमुख चंद्रसेन पूर्वी बस्ती से दोम्कातर को निष्कासित किया था। गोंडा प्रांत के कल्हण राजपूत स्वयं परगना बस्ती में स्थापित हुए थे। कल्हण प्रांत के दक्षिण में नगर प्रांत में गौतम राजा स्थापित थे। महुली में महसुइया नाम का कबीला था जो महसो के राजपूत थे। अन्य विशेष उल्लेख राजपूत कबीले में चौहान का था। यह कहा जाता है कि चित्तौङ से तीन प्रमुख मुकुंद भागे थे जिनका ज़िला बस्ती की अविभाजित हिस्से पर (अब यह ज़िला सिद्धार्थ नगर में है) शासन था। 14 वीं सदी की अंतिम तिमाही तक बस्ती ज़िले का एक भाग अमोढ़ा पर कायस्थ वंश का शासन था। thumb|बस्ती ज़िले का मानचित्र|250px अकबर और उनके उत्तराधिकारी के शासनकाल के दौरान ज़िला बस्ती, अवध सुबे के गोरखपुर सरकार का एक हिस्सा बना हुआ था। जौनपुर के गवर्नर के शासनकाल के शुरू के दिनों में यह ज़िला विद्रोही अफगानिस्तान के नेताओं जैसे अली कुली खान, खान जमान का शरणस्थली था । 1680 में मुग़ल काल के दौरान औरंगजेब ने एक दूत (पथ के धारक) काजी खलील-उर-रहमान को गोरखपुर भेजा था शायद स्थानीय प्रमुखों से राजस्व का नियमित भुगतान प्राप्त करने के लिए खलील-उर-रहमान ने ही गोरखपुर से सटे जिलो के सरदारों को मजबूर किया था कि वे राजस्व का भुगतान करे। इस क़दम का यह परिणाम हुआ कि अमोढ़ा और नगर के राजा, जो हाल ही में सत्ता हासिल की थी, राजस्व का भुगतान को तैयार हो गये और टकराव इस तरह टल गया। इसके बाद खलील-उर-रहमान ने मगहर के लिए रवाना हुआ जहाँ उसने अपनी चौकी बनाया तथा राप्ती के तट पर बने बांसी के राजा के किले पर कब्ज़ा कर लिया। नव निर्मित ज़िला संत कबीर नगर का मुख्यालय खलीलाबाद शहर का नाम खलील उर रहमान से पङा जिसका क़ब्र मगहर मे बना है। उसी समय एक प्रमुख सङक गोरखपुर से अयोध्या का निर्माण हुआ था 1690 फ़रवरी में, हिम्मत खान (शाहजहाँ खान बहादुर जफर जंग कोकल्ताश का पुत्र, इलाहाबाद का सूबेदार) को अवध का सूबेदार और गोरखपुर फौजदार बनाया गया, जिसके अधिकार में बस्ती और उसके आसपास का क्षेत्र बहुत समय तक था।

आधुनिक काल

एक महान और दूरगामी परिवर्तन तब आया जब 9 सितम्बर, 1772 मे सआदत खान को अवध सूबे का राज्यपाल नियुक्त किया गया जिसमे गोरखपुर का फौजदारी भी था। उसी समय बंसी और रसूलपुर पर सर्नेट राजा का, बिनायाकपुर पर बुटवल के चौहान का, बस्ती पर कल्हण शासक का, अमोढ़ा पर सूर्यवंश का, नगर पर गौतम का, महुली पर सूर्यवंश का शासन था। जबकि अकेला मगहर पर नवाब का शासन था, जो मुसलमान चौकी से मजबूत बनाया गया था।

भूगोल

स्थिति और सीमा

यह ज़िला 26° 23' और 27° 30' उत्तर अक्षांश तथा 82° 17' और 83° 20' पूर्वी देशांतर के बीच उत्तर भारत में स्थित है। इसका उत्तर से दक्षिण की अधिकतम लंबाई 75 किमी है और पूर्व से पश्चिम में लगभग 70 किमी की चौड़ाई है। बस्ती ज़िला पूर्वी में नव निर्मित ज़िला संत कबीर नगर और पश्चिम में गोंडा के बीच स्थित है, दक्षिण में घाघरा नदी इस ज़िले को फैजाबाद ज़िला और नव निर्मित अंबेडकर नगर ज़िला से अलग करती है, जबकि उत्तर में सिद्धार्थनगर ज़िला से घिरा है। ज़िला तलहटी - संबंधी मैदान में पूरी तरह से फैला है तथा कोई प्राकृतिक उन्नयन नहीं है जो इस पर असर डाले।

जनसांख्यिकी

2001 की जनगणना के रूप में बस्ती की आबादी 2068922 (1991 में 2750764) थी। जिनमें से 1079971 पुरुष (1991 में 1437727) और 988951 महिला (1991 में 1313037) (916 लिंग अनुपात) थी। पुरुषों और महिलाओं की जनसंख्या 48% से 52% थी। बस्ती 69 % की एक औसत साक्षरता दर 59.5% के राष्ट्रीय औसत से अधिक थी। पुरुष साक्षरता 74% और महिला साक्षरता 62% थी। बस्ती में, जनसंख्या का 13% उम्र के 6 साल के अंतर्गत थी।

यातायात

बस्ती अच्छी तरह से रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है।

रेल द्वारा

मुख्य रेल लाइन लखनऊ और गोरखपुर को जोङता है और बिहार से होते हुए पूर्व मे असम को जाता है, यह ज़िले के दक्षिण से होकर गुजरता है। मुख्य रेल लाइन मे ज़िला के भीतर पूर्व से पश्चिम की तरफ 6 मुख्य रेलवे स्टेशन मुंडेरवा, ओडवारा, बस्ती, गोविंद नगर, टिनीच और गौर पङता है।

सड़क मार्ग द्वारा

वर्तमान में उत्तर प्रदेश राज्य परिवहन निगम की (लगभग) 200 बसें ज़िले में 27 मार्गों पर चल रही है।

आदर्श स्थल

संत रविदास वन विहार, गणेशपुर, मखौदा, छावनी बाज़ार, नागर, चंदू तल, बराह, भद्रेश्‍वर नाथ, अगौना आदि यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से है। इसका ज़िला मुख्यालय बस्ती शहर है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह स्थान काफ़ी महत्त्वपूर्ण माना जाता है। बस्ती ज़िला संत कबीर नगर ज़िला के पूर्व और गोण्डा के पश्चिम में स्थित है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भी यह उत्तर प्रदेश का सातवां बड़ा ज़िला है। प्राचीन समय में बस्ती को कौशल के नाम से जाना जाता था ।

गनेशपुर

गनेशपुर बस्ती ज़िला का एक छोटा सा गांव है। यह पश्चिम में मुख्यालय से सिर्फ 4 किमी. दूर और कुवांना नदी के तट पर स्थित है। यह पुराने मूल के पिंडारियों के उत्पत्ति का स्थान है।

मखौदा

मखौदा ज़िला मुख्यालय के पश्चिम से लगभग 57 किलोमीटर की दूरी पर है। यह स्थान रामायण काल से ही काफ़ी प्रसिद्ध है। कहा जाता है राजा दशरथ ने इस जगह पर शासन किया था। मखौला कौशल महाजनपद का एक हिस्सा था।

छावनी बाज़ार

छावनी बाज़ार ज़िला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। छावनी बाज़ार 1857 ई. के दौरान स्वतंत्रता सेनानियों का प्रमुख शरण स्थान रहा है। यह स्थान पीपल के वृक्षों के लिए भी प्रसिद्ध है। इसी जगह पर ब्रिटिश सरकार ने जनरल फोर्ट की मृत्यु के पश्चात् कार्रवाई में 250 जवानों को फांसी पर लटका दिया था।

नगर

जिला मुख्यालय से लगभग आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित नागर एक छोटा सा गांव है। नागर गांव की पश्चिम दिशा में विशाल झील चंदू तल स्थित है। यह मछली पकड़ने और निशानेबाज़ी करने के लिए प्रसिद्ध है। इसके अलावा यह गांव गौतम बुद्ध के जन्म स्थल के रूप में भी जाना जाता है। चौदहवीं शताब्दी में यह स्थान गौतम राजाओं का ज़िला मुख्यालय बन गया था। उस समय का प्राचीन दुर्ग आज भी यहां देखा जा सकता है।

भादेश्वर नाथ

यह कुवाना नदी के तट पर, ज़िला मुख्यालय से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। भद्रेश्‍वर नाथ भगवान शिव को समर्पित मंदिर है। माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना रावण ने की थी। प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि के अवसर पर यहां मेले का आयोजन किया जाता है। काफ़ी संख्या में लोग इस मेले में सम्मिलित होते है।

अगौना

अगुना ज़िला मुख्यालय मार्ग में राम जानकी मार्ग पर बसा हुआ है । अगुना प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार श्री राम चन्द्र शुक्ल की जन्म भूमि है ।

बराह छतर

बराह छतर ज़िला मुख्यालय से पश्चिम में लगभग 15 किमी की दूरी पर कुवांना नदी के तट पर स्थित है। यह जगह मुख्य रूप से बराह मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। बराह छतर लोकप्रिय पौराणिक पुस्तकों में वियाग्रपुरी रूप में जाना जाता है। इसके अलावा बराह को भगवान शिव की नगरी के नाम से भी जाना जाता है।

संत रविदास वन विहार

संत रविदास वन विहार (राष्ट्रीय वन चेतना केन्द्र) कुवाना नदी के तट पर स्थित है। यह वन विहार ज़िला मुख्यालय से केवल एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित गणेशपुर गांव के मार्ग पर है। यहां पर एक आकर्षक बाल उद्यान और झील स्थित है। इस बाल उद्यान और झील की स्थापना सरकार द्वार पिकनिक स्थल के रूप में की गई है। वन विहार के दोनों तरफ से कुवाना नदी का स्पर्श इस जगह की ख़ूबसूरती को और अधिक बढ़ा देता है। संत रविदास वन विहार स्थित झील में बोटिंग का मजा भी लिया जा सकता है। सामान्यत: अवकाश के दौरान और रविवार के दिन अन्य दिनों की तुलना में काफ़ी भीड़ रहती है।

चंदू तल

चंदू तल ज़िला मुख्यालय से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। माना जाता है कि प्राचीन समय में इस जगह को चन्द्र नगर के नाम से जाना जाता था। कुछ समय पश्चात् यह जगह प्राकृतिक रूप से एक झील के रूप में बदल गई और इस जगह को चंदू तल के नाम से जाना जाने लगा। यह झील पांच किलोमीटर लम्बी और चार किलोमीटर चौड़ी है। माना जाता है कि इस झील के आस-पास की जगह से मछुवारों व कुछ अन्य लोगों को प्राचीन समय के धातु के बने आभूषण और ऐतिहासिक अवशेष प्राप्त हुए थे। इसके अलावा इस झील में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पक्षियों की अनेक प्रजातियां भी देखी जा सकती है।

साक्षरता

2001 के रूप में, साक्षरता दर 1991 में 35.36% से 54.28% की वृद्धि हुई है। साक्षरता दर पुरुषों के लिए 68.16% (1991 में 50.93% से बढ़ी हुई) और 39.00% प्रतिशत महिलाओं के लिए (1991 में 18.08% से बढ़ गया)। बस्ती शिक्षा और औद्योगिक में उत्तर प्रदेश के पिछड़े ज़िले में है।



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