श्राद्ध और ग्रहण: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('{{पुनरीक्षण}} आपस्तम्ब धर्मसूत्र<ref>आपस्तम्ब धर्मसूत...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
[[आपस्तम्ब धर्मसूत्र]]<ref>[[आपस्तम्ब धर्मसूत्र]] (7|17|23-25)</ref>, मनु<ref>मनु (3|280)</ref>, [[विष्णु धर्मसूत्]]र<ref>[[विष्णु धर्मसूत्र]] (77|8-9)</ref>, कूर्म पुराण<ref>कूर्म पुराण (2|16|3-4)</ref>, ब्रह्माण्ड पुराण<ref>ब्रह्माण्ड पुराण (3|14|3)</ref>, भविष्य पुराण<ref>भविष्य पुराण (1|185|1)</ref> ने रात्रि, सन्ध्या (गोधूलि काल) या जब सूर्य का तुरत उदय हुआ हो तब–ऐसे कालों में [[श्राद्ध]] सम्पादन मना किया है। किन्तु चन्द्रग्रहण के समय छूट दी है। आपस्तम्ब धर्मसूत्र ने इतना जोड़ दिया है कि यदि श्राद्ध सम्पादन अपरान्ह्न में आरम्भ हुआ हो और किसी कारण से देर हो जाए तथा सूर्य डूब जाए तो कर्ता को श्राद्ध सम्पादन के शेष कृत्य दूसरे दिन ही करने चाहिए और उसे दर्भों पर पिण्ड रखने तक उपवास करना चाहिए। विष्णु धर्मसूत्र का कथन है कि ग्रहण के समय किया गया श्राद्ध पितरों को तब तक संतुष्ट करता है जब तक कि चन्द्र व तारों का अस्तित्व है और कर्ता की सभी सुविधाओं एवं सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है। यही कूर्म पुराण का कथन है कि जो व्यक्ति ग्रहण के समय श्राद्ध नहीं करता है वह पंक में पडी हुई गाय के समान डूब जाता है (अर्थात् उसे पाप लगता है या उसका नाश हो जाता है)। मिताक्षरा<ref>याज्ञवल्क्य 1|217</ref> ने सावधानी के साथ निर्देशित किया है कि यद्यपि श्राद्धों के समय भोजन करना निषिद्ध है, तथापि यह निषिद्धता केवल भोजन करने वाले (उन ब्राह्मणों को जो ग्रहण काल में श्राद्ध भोजन करते हैं) को प्रभावित करती है, किन्तु कर्ता को नहीं, जो उससे अच्छे फलों की प्राप्ति करता है।<ref><poem>न च नक्तं श्राद्धं कुर्वीत। | |||
आपस्तम्ब धर्मसूत्र<ref>आपस्तम्ब धर्मसूत्र (7|17|23-25)</ref>, मनु<ref>मनु (3|280)</ref>, | |||
आरब्धे चाभोजनमा समापनात्। | आरब्धे चाभोजनमा समापनात्। | ||
अन्यत्र राहुदर्शनात्। | अन्यत्र राहुदर्शनात्। | ||
Line 8: | Line 7: | ||
कूर्म पुराण (2|16-3|4)। | कूर्म पुराण (2|16-3|4)। | ||
यद्यपि 'चन्द्रसूर्यग्रहे नाद्यात्' इति ग्रहणे भोजननिषेधस्तथापि भोक्तुर्दोषी दातुरभ्युदय:। मिता. (याज्ञ. 1|217-218)।</poem></ref> | यद्यपि 'चन्द्रसूर्यग्रहे नाद्यात्' इति ग्रहणे भोजननिषेधस्तथापि भोक्तुर्दोषी दातुरभ्युदय:। मिता. (याज्ञ. 1|217-218)।</poem></ref> | ||
{{प्रचार}} | {{प्रचार}} | ||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति | ||
|आधार= | |आधार= | ||
|प्रारम्भिक= | |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 | ||
|माध्यमिक= | |माध्यमिक= | ||
|पूर्णता= | |पूर्णता= | ||
|शोध= | |शोध= | ||
Line 25: | Line 19: | ||
{{संदर्भ ग्रंथ}} | {{संदर्भ ग्रंथ}} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{श्राद्ध}} | {{श्राद्ध}} | ||
[[Category:हिन्दू कर्मकाण्ड]] | [[Category:हिन्दू कर्मकाण्ड]] | ||
[[Category:संस्कृति कोश]] | [[Category:संस्कृति कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 07:39, 9 June 2011
आपस्तम्ब धर्मसूत्र[1], मनु[2], विष्णु धर्मसूत्र[3], कूर्म पुराण[4], ब्रह्माण्ड पुराण[5], भविष्य पुराण[6] ने रात्रि, सन्ध्या (गोधूलि काल) या जब सूर्य का तुरत उदय हुआ हो तब–ऐसे कालों में श्राद्ध सम्पादन मना किया है। किन्तु चन्द्रग्रहण के समय छूट दी है। आपस्तम्ब धर्मसूत्र ने इतना जोड़ दिया है कि यदि श्राद्ध सम्पादन अपरान्ह्न में आरम्भ हुआ हो और किसी कारण से देर हो जाए तथा सूर्य डूब जाए तो कर्ता को श्राद्ध सम्पादन के शेष कृत्य दूसरे दिन ही करने चाहिए और उसे दर्भों पर पिण्ड रखने तक उपवास करना चाहिए। विष्णु धर्मसूत्र का कथन है कि ग्रहण के समय किया गया श्राद्ध पितरों को तब तक संतुष्ट करता है जब तक कि चन्द्र व तारों का अस्तित्व है और कर्ता की सभी सुविधाओं एवं सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है। यही कूर्म पुराण का कथन है कि जो व्यक्ति ग्रहण के समय श्राद्ध नहीं करता है वह पंक में पडी हुई गाय के समान डूब जाता है (अर्थात् उसे पाप लगता है या उसका नाश हो जाता है)। मिताक्षरा[7] ने सावधानी के साथ निर्देशित किया है कि यद्यपि श्राद्धों के समय भोजन करना निषिद्ध है, तथापि यह निषिद्धता केवल भोजन करने वाले (उन ब्राह्मणों को जो ग्रहण काल में श्राद्ध भोजन करते हैं) को प्रभावित करती है, किन्तु कर्ता को नहीं, जो उससे अच्छे फलों की प्राप्ति करता है।[8]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आपस्तम्ब धर्मसूत्र (7|17|23-25)
- ↑ मनु (3|280)
- ↑ विष्णु धर्मसूत्र (77|8-9)
- ↑ कूर्म पुराण (2|16|3-4)
- ↑ ब्रह्माण्ड पुराण (3|14|3)
- ↑ भविष्य पुराण (1|185|1)
- ↑ याज्ञवल्क्य 1|217
- ↑
न च नक्तं श्राद्धं कुर्वीत।
आरब्धे चाभोजनमा समापनात्।
अन्यत्र राहुदर्शनात्।
आपस्तम्ब धर्मसूत्र (2|7|17|23-25); नक्तं तु वर्जयेच्छारद्धं राहोरन्यत्र दर्शनात्।
सर्वस्वेनापि कर्तव्यं क्षिप्रं वै राहुदर्शने।
उपरागे न कुर्याद्य: पडृंगौरिव सीदति।।
कूर्म पुराण (2|16-3|4)।
यद्यपि 'चन्द्रसूर्यग्रहे नाद्यात्' इति ग्रहणे भोजननिषेधस्तथापि भोक्तुर्दोषी दातुरभ्युदय:। मिता. (याज्ञ. 1|217-218)।