मातामह श्राद्ध: Difference between revisions
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*इस श्राद्ध को सुख शांति का प्रतीक माना जाता है क्योंकि यह श्राद्ध करने के लिए कुछ आवश्यक शर्तें है अगर वो पूरी न हो तो यह श्राद्ध नहीं निकाला जाता। | *इस श्राद्ध को सुख शांति का प्रतीक माना जाता है क्योंकि यह श्राद्ध करने के लिए कुछ आवश्यक शर्तें है अगर वो पूरी न हो तो यह श्राद्ध नहीं निकाला जाता। | ||
*शर्त यह है कि मातामह श्राद्ध उसी औरत के पिता का निकाला जाता है जिसका पति व पुत्र | *शर्त यह है कि मातामह श्राद्ध उसी औरत के पिता का निकाला जाता है जिसका पति व पुत्र ज़िन्दा हो अगर ऐसा नहीं है और दोनों में से किसी एक का निधन हो चुका है या है ही नहीं तो मातामह श्राद्ध का तर्पण नहीं किया जाता। | ||
*इस प्रकार यह माना जाता है कि मातामह का श्राद्ध सुख व शांति व सम्पन्नता की निशानी है। | *इस प्रकार यह माना जाता है कि मातामह का श्राद्ध सुख व शांति व सम्पन्नता की निशानी है। | ||
*यहाँ यह बात गौर करने लायक़ है कि एक व्यक्ति अपने जीवनकाल में अपनी बेटी के घर का पानी भी नहीं पिता और इसे वर्जित माना गया है लेकिन उसके मरने के बाद उसका तर्पण उसका दोहित्र कर सकता है और इसे शास्त्रोक्त माना गया है। | *यहाँ यह बात गौर करने लायक़ है कि एक व्यक्ति अपने जीवनकाल में अपनी बेटी के घर का पानी भी नहीं पिता और इसे वर्जित माना गया है लेकिन उसके मरने के बाद उसका तर्पण उसका दोहित्र कर सकता है और इसे शास्त्रोक्त माना गया है। |
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30px यह लेख पौराणिक ग्रंथों अथवा मान्यताओं पर आधारित है अत: इसमें वर्णित सामग्री के वैज्ञानिक प्रमाण होने का आश्वासन नहीं दिया जा सकता। विस्तार में देखें अस्वीकरण |
[[चित्र:Pitra-paksh-Shradh.jpg|thumb|पितृ पक्ष श्राद्ध संस्कार करते श्रद्धालु]]
- मातामह श्राद्ध अपने आप में एक ऐसा श्राद्ध है जो एक पुत्री द्वारा अपने पिता को व एक नाती द्वारा अपने नाना को तर्पण किया जाता है।
- इस श्राद्ध को सुख शांति का प्रतीक माना जाता है क्योंकि यह श्राद्ध करने के लिए कुछ आवश्यक शर्तें है अगर वो पूरी न हो तो यह श्राद्ध नहीं निकाला जाता।
- शर्त यह है कि मातामह श्राद्ध उसी औरत के पिता का निकाला जाता है जिसका पति व पुत्र ज़िन्दा हो अगर ऐसा नहीं है और दोनों में से किसी एक का निधन हो चुका है या है ही नहीं तो मातामह श्राद्ध का तर्पण नहीं किया जाता।
- इस प्रकार यह माना जाता है कि मातामह का श्राद्ध सुख व शांति व सम्पन्नता की निशानी है।
- यहाँ यह बात गौर करने लायक़ है कि एक व्यक्ति अपने जीवनकाल में अपनी बेटी के घर का पानी भी नहीं पिता और इसे वर्जित माना गया है लेकिन उसके मरने के बाद उसका तर्पण उसका दोहित्र कर सकता है और इसे शास्त्रोक्त माना गया है।
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