ग़दर पार्टी: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - " खिलाफ " to " ख़िलाफ़ ") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "कमजोर" to "कमज़ोर") |
||
Line 13: | Line 13: | ||
युगान्तर आश्रम गदर पार्टी का मुख्यालय था। यहीं से गदर पार्टी ने एक पोस्टर छापा था जिसे [[पंजाब]] में जगह जगह चिपकाया भी गया था। इस पोस्टर पर लिखा था -"जंग दा होका'' अर्थात युद्ध की घोषणा। | युगान्तर आश्रम गदर पार्टी का मुख्यालय था। यहीं से गदर पार्टी ने एक पोस्टर छापा था जिसे [[पंजाब]] में जगह जगह चिपकाया भी गया था। इस पोस्टर पर लिखा था -"जंग दा होका'' अर्थात युद्ध की घोषणा। | ||
गदर के नेताओं ने निर्णय लिया कि अब वह समय आ गया है कि हम ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ उसकी सेना में संगठित विद्रोह कर सकते हैं। क्योंकि तब प्रथम विश्वयुद्ध धीरे-धीरे करीब आ रहा था और ब्रिटिश हकुमत को भी सैनिकों की बहुत आवश्यकता थी। नेतृत्व ने भारत वापिस आने का निर्णय लिया। [[अगस्त]] 1914 में बड़ी रैलियों और जनसभाओं का आयोजन किया गया। जिसमें सभी [[हिन्दू|हिन्दुओं]] से कहा गया कि वे हिन्दुस्तान की ओर लौटें और ब्रिटिश हकुमत के विरूद्ध सशस्त्र विद्रोह में भाग लें। इस प्रकार गदर पार्टी के अध्यक्ष सोहन सिंह भकना जो कि [[जापान]] में थे ने भारत आने का निर्णय लिया। उन्होंने बड़ी सावधानी से अपनी योजना को तैयार किया। ब्रिटिश हकुमत के दुश्मनों से मदद प्राप्त करने के लिए गदर पार्टी ने बरकतुल्लाह को [[काबुल]] भेजा। कपूर सिंह मोही चीनी क्रान्तिकारियों से सहायता प्राप्त करने के लिए सुन-यत सेन से मिले। सोहन सिंह भकना भी टोकियो में जर्मन कांउसलर से मिले। तेजा सिंह स्वतंत्र ने तुर्कीश मिलिट्री अकादमी में जाना तय कर लिया ताकि प्रशिक्षण प्राप्त किया जा सके। गदर पार्टी के नेता पानी और जल के रास्ते भारत पहुंचना चाहते थे। इसके लिए [[कामागाटामारू प्रकरण|कामागाटामारू]], एस.एस. कोरिया और नैमसैंग नाम के जहाजों पर हजारों गदर नेता चढकर भारत की ओर आने लगे।<br /> | गदर के नेताओं ने निर्णय लिया कि अब वह समय आ गया है कि हम ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ उसकी सेना में संगठित विद्रोह कर सकते हैं। क्योंकि तब प्रथम विश्वयुद्ध धीरे-धीरे करीब आ रहा था और ब्रिटिश हकुमत को भी सैनिकों की बहुत आवश्यकता थी। नेतृत्व ने भारत वापिस आने का निर्णय लिया। [[अगस्त]] 1914 में बड़ी रैलियों और जनसभाओं का आयोजन किया गया। जिसमें सभी [[हिन्दू|हिन्दुओं]] से कहा गया कि वे हिन्दुस्तान की ओर लौटें और ब्रिटिश हकुमत के विरूद्ध सशस्त्र विद्रोह में भाग लें। इस प्रकार गदर पार्टी के अध्यक्ष सोहन सिंह भकना जो कि [[जापान]] में थे ने भारत आने का निर्णय लिया। उन्होंने बड़ी सावधानी से अपनी योजना को तैयार किया। ब्रिटिश हकुमत के दुश्मनों से मदद प्राप्त करने के लिए गदर पार्टी ने बरकतुल्लाह को [[काबुल]] भेजा। कपूर सिंह मोही चीनी क्रान्तिकारियों से सहायता प्राप्त करने के लिए सुन-यत सेन से मिले। सोहन सिंह भकना भी टोकियो में जर्मन कांउसलर से मिले। तेजा सिंह स्वतंत्र ने तुर्कीश मिलिट्री अकादमी में जाना तय कर लिया ताकि प्रशिक्षण प्राप्त किया जा सके। गदर पार्टी के नेता पानी और जल के रास्ते भारत पहुंचना चाहते थे। इसके लिए [[कामागाटामारू प्रकरण|कामागाटामारू]], एस.एस. कोरिया और नैमसैंग नाम के जहाजों पर हजारों गदर नेता चढकर भारत की ओर आने लगे।<br /> | ||
लगभग 8 हजार गदर सदस्य भारत विद्रोह के लिए लौट रहे थे और उनका पहुंचना 1916 तक तय था। [[देहरादून]] में [[भाई परमानन्द]] ने घोषणा की कि 5 हजार गदर सदस्य उनके साथ आयें। लेकिन बीच की किसी | लगभग 8 हजार गदर सदस्य भारत विद्रोह के लिए लौट रहे थे और उनका पहुंचना 1916 तक तय था। [[देहरादून]] में [[भाई परमानन्द]] ने घोषणा की कि 5 हजार गदर सदस्य उनके साथ आयें। लेकिन बीच की किसी कमज़ोर कड़ी के कारण यह सूचना ब्रिटिश हकुमत तक पहुंच गयी। उन्होंने युद्ध की घोषणा वाले पोस्टरों को गंभीरता से लिया। [[सितम्बर]] 1914 को सरकार ने एक अध्यादेश पारित किया जिसके तहत राज्य सरकारों को यह अधिकार दे दिया गया कि वे भारत में दाखिल होने वाले किसी भी व्यक्ति को हिरासत में लेकर पूछताछ कर सकेंगे भले ही वह भारतीय मूल का क्यों न हो। पहले [[बंगाल]] और [[पंजाब]] की राज्य सरकारों को यह अधिकार दिये गये और इसके लिए [[लुधियाना]] में एक पूछताछ केन्द्र भी स्थापित किया गया। कामागाटा मारू के यात्री इस अध्यादेश के पहले शिकार बने। सोहन सिंह भकना और अन्य लोगों को नैमसैंग जहाज से उतरते समय गिरफ्तार कर लिया गया और लुधियाना लाया गया। वे गदर सदस्य जो पोसामारू जहाज से आये थे वे भी पकड़े गये। उन्हें मिंटगुमरी और मुल्तान की जेलों में भेज दिया गया। जो जमानत पर छूट गए।<ref name="संगत संसार">{{cite web |url=http://www.sangatsansar.com/index3.asp?sslid=1004&subsublinkid=1603&langid=2 |title=गदर आन्दोलन 1912 |accessmonthday=7 मार्च |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= संगत संसार|language=हिंदी }}</ref> | ||
====विद्रोह और क्रान्ति का दिन==== | ====विद्रोह और क्रान्ति का दिन==== | ||
भारत में गदर के जवानों ने दूसरे क्रान्तिकारियों के साथ अच्छे रिश्ते कायम कर लिये। इनमें से कुछ ने बंगाल और [[उत्तर प्रदेश]] में रेव्यूलूश्नरी पार्टी ऑफ इण्डिया (1917) गठित की। विष्णु गणेश पिंगले, [[करतार सिंह सराभा]], [[रास बिहारी बोस]], [[भाई परमानन्द]], हाफिज अब्दुला आदि क्रान्तिकारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। [[अमृतसर]] को कन्ट्रोल सेन्टर के रूप में प्रयोग किया गया। उसे गदर पार्टी ने बाद में [[लाहौर]] स्थानान्तरित कर दिया। [[12 फरवरी]] [[1915]] को गदर पार्टी ने निर्णय लिया कि विद्रोह और क्रान्ति का दिन [[21 फरवरी]] [[1915]] होगा। पूरी रणनीति को मियां मीर, फिरोजपुर, [[मेरठ]], [[लाहौर]] और [[दिल्ली]] की फौजी छावनियों में लागू किया गया था। कोहाट, बन्नू और दीनापुर में भी विद्रोह उसी दिन होना था। करतार सिंह सराबा को फिरोजपुर को नियंत्रण में लेना था। पिंगले को मेरठ से दिल्ली की ओर बढना था। डाक्टर मथुरा सिंह को फ्रंटियर के क्षेत्रों में जाना था। निधान सिंह चुघ, गुरमुख सिंह और हरनाम सिंह को [[झेलम]], रावलपिंडी और होते हुए मर्दान जाना था। भाई परमानन्द जी को [[पेशावर]] का कार्य दिया गया था। दुर्भाग्य से ब्रिटिश हकुमत को अपने एजेंटों के माध्यम से क्रान्ति की खबर लग गयी। गदर के नायकों ने विद्रोह की तिथि में [[21 फरवरी]] के स्थान पर 19 फरवरी करके परिवर्तन कर दिया। परन्तु ब्रिटिश प्रशासन ने तीव्रता दिखाते हुए कार्य किया और [[भारतीय सेना]] को बिना हथियार का बना दिया। बारूद के गोदामों पर कब्जा कर दिया इसके बाद गदर पार्टी के बहुत से नेता और योजक गिरफ्तार हो गये। उन्हें लाहौर में कैद कर लिया गया। 82 गदर नेताओं के ऊपर मुकदमा चला जिसे लाहौर कांस्प्रेसी केस कहा गया। 17 गदर सदस्यों को भगोड़ा घोषित किया गया।<ref name="संगत संसार"/> | भारत में गदर के जवानों ने दूसरे क्रान्तिकारियों के साथ अच्छे रिश्ते कायम कर लिये। इनमें से कुछ ने बंगाल और [[उत्तर प्रदेश]] में रेव्यूलूश्नरी पार्टी ऑफ इण्डिया (1917) गठित की। विष्णु गणेश पिंगले, [[करतार सिंह सराभा]], [[रास बिहारी बोस]], [[भाई परमानन्द]], हाफिज अब्दुला आदि क्रान्तिकारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। [[अमृतसर]] को कन्ट्रोल सेन्टर के रूप में प्रयोग किया गया। उसे गदर पार्टी ने बाद में [[लाहौर]] स्थानान्तरित कर दिया। [[12 फरवरी]] [[1915]] को गदर पार्टी ने निर्णय लिया कि विद्रोह और क्रान्ति का दिन [[21 फरवरी]] [[1915]] होगा। पूरी रणनीति को मियां मीर, फिरोजपुर, [[मेरठ]], [[लाहौर]] और [[दिल्ली]] की फौजी छावनियों में लागू किया गया था। कोहाट, बन्नू और दीनापुर में भी विद्रोह उसी दिन होना था। करतार सिंह सराबा को फिरोजपुर को नियंत्रण में लेना था। पिंगले को मेरठ से दिल्ली की ओर बढना था। डाक्टर मथुरा सिंह को फ्रंटियर के क्षेत्रों में जाना था। निधान सिंह चुघ, गुरमुख सिंह और हरनाम सिंह को [[झेलम]], रावलपिंडी और होते हुए मर्दान जाना था। भाई परमानन्द जी को [[पेशावर]] का कार्य दिया गया था। दुर्भाग्य से ब्रिटिश हकुमत को अपने एजेंटों के माध्यम से क्रान्ति की खबर लग गयी। गदर के नायकों ने विद्रोह की तिथि में [[21 फरवरी]] के स्थान पर 19 फरवरी करके परिवर्तन कर दिया। परन्तु ब्रिटिश प्रशासन ने तीव्रता दिखाते हुए कार्य किया और [[भारतीय सेना]] को बिना हथियार का बना दिया। बारूद के गोदामों पर कब्जा कर दिया इसके बाद गदर पार्टी के बहुत से नेता और योजक गिरफ्तार हो गये। उन्हें लाहौर में कैद कर लिया गया। 82 गदर नेताओं के ऊपर मुकदमा चला जिसे लाहौर कांस्प्रेसी केस कहा गया। 17 गदर सदस्यों को भगोड़ा घोषित किया गया।<ref name="संगत संसार"/> |
Revision as of 13:00, 14 May 2013
thumb|ग़दर पार्टी का ध्वज ग़दर पार्टी पराधीन भारत को अंग्रेज़ों से स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से बना एक दल था। इसे अमेरिका और कनाडा के भारतीयों ने 25 जून 1913 में बनाया था। इसे प्रशान्त तट का हिन्दी संघ (Hindi Association of the Pacific Coast) भी कहा जाता था। यह पार्टी "ग़दर" नाम का पत्र भी निकालती थी जो उर्दू और पंजाबी में छपता था।
ग़दर का अर्थ
गदर शब्द का अर्थ है - विद्रोह। इसका मुख्य उद्देश्य भारत में क्रान्ति लाना था। जिसके लिए अंग्रेज़ी नियंत्रण से भारत को स्वतंत्र करना आवश्यक था। गदर पार्टी का हैड क्वार्टर सैन फ्रांसिस्को में स्थापित किया गया। इसने एक 'युगान्तर आश्रम' नाम से एक संस्था भी स्थापित की, जिसका कार्य युवा भारतीयों में देशभक्ति की भावना फैलाना है और उन्हें विद्रोह के लिए प्रशिक्षित करना है।
स्थापना
[[चित्र:Sohan-Singh-Bhakna.jpg|सोहन सिंह भकना|200px|thumb]] [[चित्र:Kartar-Singh-Sarabha.jpg|करतार सिंह सराभा|200px|thumb]] [[चित्र:Hardayal.jpg|thumb|लाला हरदयाल|150px]] ग़दर पार्टी की स्थापना 25 जून, 1913 ई. में की गई थी। पार्टी का जन्म अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को के 'एस्टोरिया' में अंग्रेज़ी साम्राज्य को जड़ से उखाड़ फेंकने के उद्देश्य से हुआ। ग़दर पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष सोहन सिंह भकना थे। इसके अतिरिक्त केसर सिंह थथगढ (उपाध्यक्ष), लाला हरदयाल (महामंत्री), लाला ठाकुरदास धुरी (संयुक्त सचिव) और पण्डित कांशीराम मदरोली (कोषाध्यक्ष) थे। ‘ग़दर’ नामक पत्र के आधार पर ही पार्टी का नाम भी ‘ग़दर पार्टी’ रखा गया था। ‘ग़दर’ पत्र ने संसार का ध्यान भारत में अंग्रेज़ों के द्वारा किए जा रहे अत्याचार की ओर दिलाया। नई पार्टी की कनाडा, चीन, जापान आदि में शाखाएँ खोली गईं। लाला हरदयाल इसके महासचिव थे।
ग़दर साप्ताहिक पत्र
इस संगठन ने 1 नवम्बर 1913 से एक साप्ताहिक पत्र ‘गदर’ का प्रकाशन भी शुरू किया। यह पत्र सेन फ्रांसिस्को के युगान्तर आश्रम से खुले आम प्रकाशित होता था। पहले इसे उर्दू और गुरुमुखी में प्रकाशित किया गया लेकिन बाद में कई अन्य भाषाओं में भी इसका प्रकाशन हुआ। इस पत्र को भारत और दुनिया के उन देशों में पहुंचाने की जबरदस्त कोशिशें की गयीं, जहां प्रवासी भारतीय रहते थे। इसकी सैकड़ों प्रतियां शंघाई, हांगकांग और कई दूसरे रास्तों से भारत पहुंचती थीं। गदर की लोकप्रियता काफ़ी बढ़ी और इसमें छपने वाली ग्रंथी भगवान सिंह की क्रांतिकारी कविताओं ने दुनिया भर में फैले भारतीयों के हृदय में स्वतंत्रता प्राप्ति की तीव्रता का भाव जगाने में खासी कामयाबी भी पायी। गदर पार्टी के तौर-तरीके और गदर की विचारधारा को देश में भी काफ़ी आलोचनाएं सहन करनी पड़ीं लेकिन इस बात में कोई संदेह की गुंजाइश नहीं कि गदर पार्टी ने देश की आजादी के लिए ईमानदार और साहसिक कोशिश की।[1]
ग़दर आंदोलन
युगान्तर आश्रम गदर पार्टी का मुख्यालय था। यहीं से गदर पार्टी ने एक पोस्टर छापा था जिसे पंजाब में जगह जगह चिपकाया भी गया था। इस पोस्टर पर लिखा था -"जंग दा होका अर्थात युद्ध की घोषणा।
गदर के नेताओं ने निर्णय लिया कि अब वह समय आ गया है कि हम ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ उसकी सेना में संगठित विद्रोह कर सकते हैं। क्योंकि तब प्रथम विश्वयुद्ध धीरे-धीरे करीब आ रहा था और ब्रिटिश हकुमत को भी सैनिकों की बहुत आवश्यकता थी। नेतृत्व ने भारत वापिस आने का निर्णय लिया। अगस्त 1914 में बड़ी रैलियों और जनसभाओं का आयोजन किया गया। जिसमें सभी हिन्दुओं से कहा गया कि वे हिन्दुस्तान की ओर लौटें और ब्रिटिश हकुमत के विरूद्ध सशस्त्र विद्रोह में भाग लें। इस प्रकार गदर पार्टी के अध्यक्ष सोहन सिंह भकना जो कि जापान में थे ने भारत आने का निर्णय लिया। उन्होंने बड़ी सावधानी से अपनी योजना को तैयार किया। ब्रिटिश हकुमत के दुश्मनों से मदद प्राप्त करने के लिए गदर पार्टी ने बरकतुल्लाह को काबुल भेजा। कपूर सिंह मोही चीनी क्रान्तिकारियों से सहायता प्राप्त करने के लिए सुन-यत सेन से मिले। सोहन सिंह भकना भी टोकियो में जर्मन कांउसलर से मिले। तेजा सिंह स्वतंत्र ने तुर्कीश मिलिट्री अकादमी में जाना तय कर लिया ताकि प्रशिक्षण प्राप्त किया जा सके। गदर पार्टी के नेता पानी और जल के रास्ते भारत पहुंचना चाहते थे। इसके लिए कामागाटामारू, एस.एस. कोरिया और नैमसैंग नाम के जहाजों पर हजारों गदर नेता चढकर भारत की ओर आने लगे।
लगभग 8 हजार गदर सदस्य भारत विद्रोह के लिए लौट रहे थे और उनका पहुंचना 1916 तक तय था। देहरादून में भाई परमानन्द ने घोषणा की कि 5 हजार गदर सदस्य उनके साथ आयें। लेकिन बीच की किसी कमज़ोर कड़ी के कारण यह सूचना ब्रिटिश हकुमत तक पहुंच गयी। उन्होंने युद्ध की घोषणा वाले पोस्टरों को गंभीरता से लिया। सितम्बर 1914 को सरकार ने एक अध्यादेश पारित किया जिसके तहत राज्य सरकारों को यह अधिकार दे दिया गया कि वे भारत में दाखिल होने वाले किसी भी व्यक्ति को हिरासत में लेकर पूछताछ कर सकेंगे भले ही वह भारतीय मूल का क्यों न हो। पहले बंगाल और पंजाब की राज्य सरकारों को यह अधिकार दिये गये और इसके लिए लुधियाना में एक पूछताछ केन्द्र भी स्थापित किया गया। कामागाटा मारू के यात्री इस अध्यादेश के पहले शिकार बने। सोहन सिंह भकना और अन्य लोगों को नैमसैंग जहाज से उतरते समय गिरफ्तार कर लिया गया और लुधियाना लाया गया। वे गदर सदस्य जो पोसामारू जहाज से आये थे वे भी पकड़े गये। उन्हें मिंटगुमरी और मुल्तान की जेलों में भेज दिया गया। जो जमानत पर छूट गए।[2]
विद्रोह और क्रान्ति का दिन
भारत में गदर के जवानों ने दूसरे क्रान्तिकारियों के साथ अच्छे रिश्ते कायम कर लिये। इनमें से कुछ ने बंगाल और उत्तर प्रदेश में रेव्यूलूश्नरी पार्टी ऑफ इण्डिया (1917) गठित की। विष्णु गणेश पिंगले, करतार सिंह सराभा, रास बिहारी बोस, भाई परमानन्द, हाफिज अब्दुला आदि क्रान्तिकारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। अमृतसर को कन्ट्रोल सेन्टर के रूप में प्रयोग किया गया। उसे गदर पार्टी ने बाद में लाहौर स्थानान्तरित कर दिया। 12 फरवरी 1915 को गदर पार्टी ने निर्णय लिया कि विद्रोह और क्रान्ति का दिन 21 फरवरी 1915 होगा। पूरी रणनीति को मियां मीर, फिरोजपुर, मेरठ, लाहौर और दिल्ली की फौजी छावनियों में लागू किया गया था। कोहाट, बन्नू और दीनापुर में भी विद्रोह उसी दिन होना था। करतार सिंह सराबा को फिरोजपुर को नियंत्रण में लेना था। पिंगले को मेरठ से दिल्ली की ओर बढना था। डाक्टर मथुरा सिंह को फ्रंटियर के क्षेत्रों में जाना था। निधान सिंह चुघ, गुरमुख सिंह और हरनाम सिंह को झेलम, रावलपिंडी और होते हुए मर्दान जाना था। भाई परमानन्द जी को पेशावर का कार्य दिया गया था। दुर्भाग्य से ब्रिटिश हकुमत को अपने एजेंटों के माध्यम से क्रान्ति की खबर लग गयी। गदर के नायकों ने विद्रोह की तिथि में 21 फरवरी के स्थान पर 19 फरवरी करके परिवर्तन कर दिया। परन्तु ब्रिटिश प्रशासन ने तीव्रता दिखाते हुए कार्य किया और भारतीय सेना को बिना हथियार का बना दिया। बारूद के गोदामों पर कब्जा कर दिया इसके बाद गदर पार्टी के बहुत से नेता और योजक गिरफ्तार हो गये। उन्हें लाहौर में कैद कर लिया गया। 82 गदर नेताओं के ऊपर मुकदमा चला जिसे लाहौर कांस्प्रेसी केस कहा गया। 17 गदर सदस्यों को भगोड़ा घोषित किया गया।[2]
प्रेरणा स्रोत
पंजाब के गवर्नर माइकल ओ डायर ने ब्रिटिश हकुमत से विशिष्ट कानूनी प्रावधानों की मांग की जिसके तहत कोर्ट में अपील की व्यवस्था न हो सके। अंग्रेज सरकार "डिफेन्स ऑफ इण्डिया रूल" का प्रावधान लेकर आयी जिसके तहत गदर नेताओं के विरूद्ध झटपट निर्णय हो सके। 13 सितम्बर 1915 को 24 गदर नेताओं को मौत की सजा सुनाई गई शेष को उम्र कैद दी गयी। 25 अक्टूबर 1915 को दूसरे लाहौर कांस्प्रेसी केस में 102 गदर नेताओं का मुकदमा प्रारम्भ हुआ, जिसका निर्णय 30 मार्च 1916 को हुआ, जिसके तहत 7 को फांसी की सजा दी गयी, 45 को उम्रकैद और अन्यों को 8 महीने से 4 वर्ष की कठोर सजा सुनाई गयी। गदर पार्टी के महान नेताओं सोहन सिंह भकना, करतार सिंह सराभा, लाला हरदयाल आदि ने जो कार्य किये, उसने भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव जैसे क्रान्तिकारियों को स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।[2]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ लड़ाई बाहर से भी लड़ी गई (हिंदी) भारतीय पक्ष। अभिगमन तिथि: 7 मार्च, 2013।
- ↑ 2.0 2.1 2.2 गदर आन्दोलन 1912 (हिंदी) संगत संसार। अभिगमन तिथि: 7 मार्च, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख