रानी दुर्गावती: Difference between revisions

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==अकबर से संघर्ष और बलिदान==
==अकबर से संघर्ष और बलिदान==
अकबर के कडा मानिकपूर के सूबेदार ख्वाजा अब्दुल मजीद खां जो [[आसफ़ ख़ाँ (सूबेदार)|आसफ़ खां]] के नाम से जाना जाता था, ने रानी दुर्गावती के विरूद्ध अकबर को उकसाया, अकबर अन्य राजपूत घरानों की तरह दुर्गावती को भी रानवासे की शोभा बनाना चाहता था। रानी दुर्गावती ने अपने धर्म और देश की दृडता पूर्वक रक्षा की ओर रणक्षेत्र में अपना बलिदान 1564 में कर दिया, उनकी मृत्यु के पश्चात उनका देवर चंन्द्र शाह शासक बना व उसने मुगलों की आधीनता स्वीकार कर ली, जिसकी हत्या उन्हीं के पुत्र मधुकर शाह ने कर दी। अकबर को कर नहीं चुका पाने के कारण मधुकर शाह के दो पुत्र प्रेमनारायण और हदयेश शाह बंधक थे। मधुकरशाह की मृत्यु के पश्चात 1617 में  प्रेमनारायण शाह को राजा बनाया गया।
अकबर के कडा मानिकपुर का सूबेदार ख्वाजा अब्दुल मजीद खां जो [[आसफ़ ख़ाँ (सूबेदार)|आसफ़ खां]] के नाम से जाना जाता था, ने रानी दुर्गावती के विरूद्ध अकबर को उकसाया, अकबर अन्य [[राजपूत]] घरानों की तरह दुर्गावती को भी रनवासे की शोभा बनाना चाहता था। रानी दुर्गावती ने अपने [[धर्म]] और देश की दृढ़ता पूर्वक रक्षा की ओर रणक्षेत्र में अपना बलिदान 1564 में कर दिया, उनकी मृत्यु के पश्चात उनका देवर चन्द्रशाह शासक बना व उसने मुगलों की आधीनता स्वीकार कर ली, जिसकी हत्या उन्हीं के पुत्र मधुकरशाह ने कर दी। अकबर को कर नहीं चुका पाने के कारण मधुकर शाह के दो पुत्र प्रेमनारायण और हदयेश शाह बंधक थे। मधुकरशाह की मृत्यु के पश्चात 1617 में  प्रेमनारायणशाह को राजा बनाया गया।
<poem>थर-थर दुश्मन कांपे,
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थर-थर दुश्मन कांपे,
पग-पग भागे अत्याचार,
पग-पग भागे अत्याचार,
नरमुण्डो की झडी लगाई,
नरमुण्डों की झडी लगाई,
लाशें बिछाई कई हजार,
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जब विपदा घिर आई चहुंओर,
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सीने मे खंजर लिया उतार।<ref name="JJB"></poem>
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====चौरागढ का जौहर====
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आसफ़ ख़ाँ रानी की मृत्यु से बौखला गया, वह उन्हें अकबर के दरबार में पेश करना चाहता था, उसने राजधानी चौरागढ (हाल में जिला नरसिंहपुर में) पर आक्रमण किया, रानी के पुत्र राजा वीरनारायण ने वीरतापूर्वक युद्ध करते हुए वीरगति प्राप्त की, इसके साथ ही चौरागढ में पवित्रा को बचाये रखने का महान जौहर हुआ, जिसमें हिन्दुओं के साथ-साथ मुस्लिम महिलाओं ने भी अपने आप को जौहर के अग्नि कुंड में छलांग लगा दी थी। किंवदंतीयों में है कि आसफ़ ख़ाँ ने अकबर को खुश करने के लिये दो महिलाओं को यह कहते हुए भेंट किया कि एक राजा वीरनारायण की पत्नि है तथा दूसरी दुर्गावती की बहिन कलावती है। राजा वीरनायायण की पत्नि ने जौहर का नेतृत्व करते हुए बलिदान किया था और रानी दुर्गावती की कोई बहिन थी ही नहीं, वे एक मात्र संतान थीं। बाद में आसफ़ ख़ाँ से अकबर नराज भी रहा, मगर [[मेवाड़]] के युद्ध में वह मुस्लिम एकता नहीं तोड़ना चाहता था।<ref name="JJB"/>
आसफ़ ख़ाँ रानी की मृत्यु से बौखला गया, वह उन्हें अकबर के दरबार में पेश करना चाहता था, उसने राजधानी चौरागढ़ (हाल में जिला नरसिंहपुर में) पर आक्रमण किया, रानी के पुत्र राजा वीरनारायण ने वीरतापूर्वक युद्ध करते हुए वीरगति प्राप्त की, इसके साथ ही चौरागढ़ में पवित्रता को बचाये रखने का महान जौहर हुआ, जिसमें [[हिन्दु|हिन्दुओं]] के साथ-साथ [[मुस्लिम]] महिलाओं ने भी जौहर के अग्नि कुंड में छलांग लगा दी थी। किंवदंतियों में है कि आसफ़ ख़ाँ ने अकबर को खुश करने के लिये दो महिलाओं को यह कहते हुए भेंट किया कि एक राजा वीरनारायण की पत्नी है तथा दूसरी दुर्गावती की बहिन कलावती है। राजा वीरनारायण की पत्नी ने जौहर का नेतृत्व करते हुए बलिदान किया था और रानी दुर्गावती की कोई बहिन थी ही नहीं, वे एक मात्र संतान थीं। बाद में आसफ़ ख़ाँ से अकबर नराज़ भी रहा, मगर [[मेवाड़]] के युद्ध में वह मुस्लिम एकता नहीं तोड़ना चाहता था।<ref name="JJB"/>
 
==अकबर और दुर्गावती==
==अकबर और दुर्गावती==
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Revision as of 12:03, 24 June 2013

रानी दुर्गावती
पूरा नाम रानी दुर्गावती
जन्म 5 अक्टूबर, 1524
जन्म भूमि बांदा, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 24 जून, 1564
मृत्यु स्थान अचलपुर, महाराष्ट्र
पति/पत्नी राजा दलपतिशाह
कर्म भूमि भारत
प्रसिद्धि रानी, वीरांगना
विशेष योगदान रानी दुर्गावती ने अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं।
नागरिकता भारतीय
धर्म हिंदू
अन्य जानकारी जबलपुर में स्थित रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय भी इनके नाम पर बना है। रानी दुर्गावती ने अपनी दासी के नाम पर चेरीताल, अपने नाम पर रानीताल तथा अपने विश्वस्त दीवान आधारसिंह के नाम पर आधारताल बनवाया।

रानी दुर्गावती (अंग्रेज़ी: Rani Durgawati, जन्म: 5 अक्टूबर, 1524 - मृत्यु: 24 जून, 1564) गोंडवाना की शासक थीं, जो भारतीय इतिहास की सर्वाधिक प्रसिद्ध रानियों में गिनी जाती हैं।

जीवन परिचय

वीरांगना महारानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं। महोबा के राठ गांव में 1524 ई. की दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुन्दरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गयी। दुर्गावती के मायके और ससुराल पक्ष की जाति भिन्न थी लेकिन फिर भी दुर्गावती की प्रसिद्धि से प्रभावित होकर राजा संग्राम शाह ने अपने पुत्र दलपत शाह से विवाह करके, उसे अपनी पुत्रवधू बनाया था। दुर्भाग्यवश विवाह के चार वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया। उस समय दुर्गावती की गोद में तीन वर्षीय नारायण ही था। अतः रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया। उन्होंने अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाई। वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केन्द्र था। उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरीताल, अपने नाम पर रानीताल तथा अपने विश्वस्त दीवान आधारसिंह के नाम पर आधारताल बनवाया।[1]

शौर्य और पराक्रम की देवी

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से रानी दुर्गावती का शौर्य किसी भी प्रकार से कम नहीं रहा है, दुर्गावती के वीरतापूर्ण चरित्र को लम्बे समय तक इसलिए दबाये रखा कि उसने मुस्लिम शासकों के विरूद्ध संघर्ष किया और उन्हें अनेकों बार पराजित किया। देर से ही सही मगर आज वे तथ्य सम्पूर्ण विश्व के सामने हैं कि तथाकथित अकबर महान ने अपनी कामुक लिप्सा के लिए, एक विधवा पर किसी तरह के जुल्मों की कसर नहीं छोडी थी और धन्य है रानी का पराक्रम जिसने अपने मान सम्मान, धर्म की रक्षा और स्वतंत्रता के लिए युद्ध भूमि को चुना और अनेकों बार शत्रुओं को पराजित करते हुए बलिदान दे दिया।thumb|left|रानी दुर्गावती प्रतिमा

जन जन में रानी ही रानी
वह तीर थी,तलवार थी,
भालों और तोपों का वार थी,
फुफकार थी, हुंकार थी,
शत्रु का संहार थी![2]

दुर्गावती का शासन

दुर्गावती ने 16 वर्ष तक जिस कुशलता से राज संभाला, उसकी प्रशस्ति इतिहासकारों ने की। आइना-ए-अकबरी में अबुल फ़ज़ल ने लिखा है, दुर्गावती के शासनकाल में गोंडवाना इतना सुव्यवस्थित और समृद्ध था कि प्रजा लगान की अदायगी स्वर्णमुद्राओं और हाथियों से करती थीं। मंडला में दुर्गावती के हाथीखाने में उन दिनों 1400 हाथी थे। मालवांचल शांत और संपन्न क्षेत्र माना जाता रहा है, पर वहां का सूबेदार स्त्री लोलुप बाजबहादुर, जो कि सिर्फ रूपमती से आंख लड़ाने के कारण प्रसिद्ध हुआ है, दुर्गावती की संपदा पर आंखें गड़ा बैठा। पहले ही युद्ध में दुर्गावती ने उसके छक्के छुड़ा दिए और उसका चाचा फतेहा खां युद्ध में मारा गया, पर इस पर भी बाजबहादुर की छाती ठंडी नहीं हुयी और जब दुबारा उसने रानी दुर्गावती पर आक्रमण किया, तो रानी ने कटंगी-घाटी के युद्ध में उसकी सेना को ऐसा रौंदा कि बाजबहादुर की पूरी सेना का सफाया हो गया। फलत: दुर्गावती सम्राज्ञी के रूप में स्थापित हुईं।[1]

अकबर से संघर्ष और बलिदान

अकबर के कडा मानिकपुर का सूबेदार ख्वाजा अब्दुल मजीद खां जो आसफ़ खां के नाम से जाना जाता था, ने रानी दुर्गावती के विरूद्ध अकबर को उकसाया, अकबर अन्य राजपूत घरानों की तरह दुर्गावती को भी रनवासे की शोभा बनाना चाहता था। रानी दुर्गावती ने अपने धर्म और देश की दृढ़ता पूर्वक रक्षा की ओर रणक्षेत्र में अपना बलिदान 1564 में कर दिया, उनकी मृत्यु के पश्चात उनका देवर चन्द्रशाह शासक बना व उसने मुगलों की आधीनता स्वीकार कर ली, जिसकी हत्या उन्हीं के पुत्र मधुकरशाह ने कर दी। अकबर को कर नहीं चुका पाने के कारण मधुकर शाह के दो पुत्र प्रेमनारायण और हदयेश शाह बंधक थे। मधुकरशाह की मृत्यु के पश्चात 1617 में प्रेमनारायणशाह को राजा बनाया गया।

थर-थर दुश्मन कांपे,
पग-पग भागे अत्याचार,
नरमुण्डों की झडी लगाई,
लाशें बिछाई कई हजार,
जब विपदा घिर आई चहुंओर,
सीने मे खंजर लिया उतार।<ref name="JJB">

चौरागढ़ का जौहर

आसफ़ ख़ाँ रानी की मृत्यु से बौखला गया, वह उन्हें अकबर के दरबार में पेश करना चाहता था, उसने राजधानी चौरागढ़ (हाल में जिला नरसिंहपुर में) पर आक्रमण किया, रानी के पुत्र राजा वीरनारायण ने वीरतापूर्वक युद्ध करते हुए वीरगति प्राप्त की, इसके साथ ही चौरागढ़ में पवित्रता को बचाये रखने का महान जौहर हुआ, जिसमें हिन्दुओं के साथ-साथ मुस्लिम महिलाओं ने भी जौहर के अग्नि कुंड में छलांग लगा दी थी। किंवदंतियों में है कि आसफ़ ख़ाँ ने अकबर को खुश करने के लिये दो महिलाओं को यह कहते हुए भेंट किया कि एक राजा वीरनारायण की पत्नी है तथा दूसरी दुर्गावती की बहिन कलावती है। राजा वीरनारायण की पत्नी ने जौहर का नेतृत्व करते हुए बलिदान किया था और रानी दुर्गावती की कोई बहिन थी ही नहीं, वे एक मात्र संतान थीं। बाद में आसफ़ ख़ाँ से अकबर नराज़ भी रहा, मगर मेवाड़ के युद्ध में वह मुस्लिम एकता नहीं तोड़ना चाहता था।[2]

अकबर और दुर्गावती

thumb|रानी दुर्गावती तथाकथित महान मुगल शासक अकबर भी राज्य को जीतकर रानी को अपने हरम में डालना चाहता था। उसने विवाद प्रारम्भ करने हेतु रानी के प्रिय सफेद हाथी (सरमन) और उनके विश्वस्त वजीर आधारसिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा। रानी ने यह मांग ठुकरा दी। इस पर अकबर ने अपने एक रिश्तेदार आसफ़ ख़ाँ के नेतृत्व में गोंडवाना पर हमला कर दिया। एक बार तो आसफ़ ख़ाँ पराजित हुआ, पर अगली बार उसने दोगुनी सेना और तैयारी के साथ हमला बोला। दुर्गावती के पास उस समय बहुत कम सैनिक थे। उन्होंने जबलपुर के पास नरई नाले के किनारे मोर्चा लगाया तथा स्वयं पुरुष वेश में युद्ध का नेतृत्व किया। इस युद्ध में 3,000 मुगल सैनिक मारे गये लेकिन रानी की भी अपार क्षति हुई थी। अगले दिन 24 जून, 1564 को मुगल सेना ने फिर हमला बोला। आज रानी का पक्ष दुर्बल था, अतः रानी ने अपने पुत्र नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया। तभी एक तीर उनकी भुजा में लगा, रानी ने उसे निकाल फेंका। दूसरे तीर ने उनकी आंख को बेध दिया, रानी ने इसे भी निकाला पर उसकी नोक आंख में ही रह गयी। तभी तीसरा तीर उनकी गर्दन में आकर धंस गया। रानी ने अंत समय निकट जानकर वजीर आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे, पर वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ। अतः रानी अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में भोंककर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गयीं। महारानी दुर्गावती ने अकबर के सेनापति आसफ़ खान से लड़कर अपनी जान गंवाने से पहले पंद्रह वर्षों तक शासन किया था।[1]

सम्मान

रानी दुर्गावती कीर्ति स्तम्भ, रानी दुर्गावती पर डाकचित्र, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, रानी दुर्गावती अभ्यारण्य, रानी दुर्गावती सहायता योजन, रानी दुर्गावती संग्रहालय एवं मेमोरियल, रानी दुर्गावती महिला पुलिस बटालियन आदि न जाने कितनी र्कीती आज बुन्देलखण्ड से फैलते हुए सम्पूर्ण देश को प्रकाशित कर रही है।

चन्देलों की बेटी थी,
गौंडवाने की रानी थी,
चण्डी थी रणचण्डि थी,
वह दुर्गावती भवानी थी।

स्वतंत्रता संग्राम की महान महिला सेनानी व "खूब लडी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी" की शौर्यगाथा काव्य को लिखने वाली, वीररस की महान कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान के ये शब्द ही, अद्वितीय शौर्य का प्रदर्शन करते हुए अमर बलिदान करने वाली रानी दुर्गावती की सच्ची कहानी कहते हुए महसूस होते हैं।

नमन् कर रहा है।
सुनूगीं माता की आवाज,
रहूंगीं मरने को तैयार।
कभी भी इस वेदी पर देव,
न होने दूंगी अत्याचार।
मातृ मंदिर में हुई पुकार,
चलो में तो हो जाऊ बलिदान,
चढा दो मुझको हे भगवान!![2]


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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 208 |

  1. 1.0 1.1 1.2 महारानी दुर्गावती (हिंदी) Save Hinduism। अभिगमन तिथि: 24 जून, 2013।
  2. 2.0 2.1 2.2 शौर्य और पराक्रम की शौर्यगाथा रानी दुर्गावती (हिंदी) जय जय भारत। अभिगमन तिथि: 24 जून, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

  1. REDIRECT साँचा:रानियाँ और महारानियाँ