लखिमा की आँखें -रांगेय राघव: Difference between revisions

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[[हिंदी]] के प्रख्यात साहित्यकार [[रांगेय राघव]] ने विशिष्ट कवियों, कलाकारों और चिंतकों के जीवन पर आधारित उपन्यासों की एक शृंखला लिखकर [[साहित्य]] की एक बड़ी आवश्यकता को पूरा किया है। प्रस्तुत उपन्यास '[[विद्यापति|महाकवि विद्यापति]]' के जीवन पर आधारित अत्यंत रोचक मौलिक रचना है।


'''विद्यापति''' का काव्य अपनी मधुरता, लालित्य तथा गेयता के कारण [[पूर्वोत्तर भारत]] में बहुत लोकप्रिय हुआ और आज भी लोकप्रिय है। लेखक ने स्वयं [[मिथिला]] जाकर कवि के गांव की यात्रा करके गहरे शोध के बाद यह उपन्यास लिखा है। मिथिला के राजकवि, विद्यापति ठाकुर कुछ समय मुसलमानों के बन्दी भी रहे। उन्होंने [[संस्कृत]] में भी बहुत कुछ लिखा परंतु अपनी [[मैथिली भाषा|मैथिल भाषा]] में जो लिखा वह अमर हो गया। आदि से अंत तक अत्यंत रोचक यह उपन्यास उस युग के समाज, राजनीति और धार्मिक जीवन का भी सजीव चित्रण करता है।
'''विद्यापति''' का काव्य अपनी मधुरता, लालित्य तथा गेयता के कारण [[पूर्वोत्तर भारत]] में बहुत लोकप्रिय हुआ और आज भी लोकप्रिय है। लेखक ने स्वयं [[मिथिला]] जाकर कवि के गांव की यात्रा करके गहरे शोध के बाद यह उपन्यास लिखा है। मिथिला के राजकवि, विद्यापति ठाकुर कुछ समय मुसलमानों के बन्दी भी रहे। उन्होंने [[संस्कृत]] में भी बहुत कुछ लिखा परंतु अपनी [[मैथिली भाषा|मैथिल भाषा]] में जो लिखा वह अमर हो गया। आदि से अंत तक अत्यंत रोचक यह उपन्यास उस युग के समाज, राजनीति और धार्मिक जीवन का भी सजीव चित्रण करता है।

Revision as of 10:40, 29 June 2013

लखिमा की आँखें -रांगेय राघव
लेखक रांगेय राघव
प्रकाशक किताबघर प्रकाशन
ISBN 9788170287544
देश भारत
भाषा हिन्दी
प्रकार उपन्यास
टिप्पणी पुस्तक क्रं = 1469

हिंदी के प्रख्यात साहित्यकार रांगेय राघव ने विशिष्ट कवियों, कलाकारों और चिंतकों के जीवन पर आधारित उपन्यासों की एक शृंखला लिखकर साहित्य की एक बड़ी आवश्यकता को पूरा किया है। प्रस्तुत उपन्यास 'महाकवि विद्यापति' के जीवन पर आधारित अत्यंत रोचक मौलिक रचना है।

विद्यापति का काव्य अपनी मधुरता, लालित्य तथा गेयता के कारण पूर्वोत्तर भारत में बहुत लोकप्रिय हुआ और आज भी लोकप्रिय है। लेखक ने स्वयं मिथिला जाकर कवि के गांव की यात्रा करके गहरे शोध के बाद यह उपन्यास लिखा है। मिथिला के राजकवि, विद्यापति ठाकुर कुछ समय मुसलमानों के बन्दी भी रहे। उन्होंने संस्कृत में भी बहुत कुछ लिखा परंतु अपनी मैथिल भाषा में जो लिखा वह अमर हो गया। आदि से अंत तक अत्यंत रोचक यह उपन्यास उस युग के समाज, राजनीति और धार्मिक जीवन का भी सजीव चित्रण करता है।

महाकवि विद्यापति पर बहुत कम लिखा गया है। ऐसी स्थिति में यह उपन्यास एक महत्त्वपूर्ण योगदान कहा जायेगा।[1]


डॉ. रांगेय राघव जी ने 1950 ई. के पश्चात् कई जीवनी प्रधान उपन्यास लिखे हैं, इनका पहला उपन्यास सन् 1951-1953 ई. के बीच प्रकाशित हुआ। 'भारती का सपूत' जो भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के जीवनी पर आधारित है। तत्पश्चात् विद्यापति के जीवन पर 'लखिमा के आंखें', बिहारी के जीवन पर 'मेरी भव बाधा हरो', तुलसी के जीवन पर 'रत्ना की बात', कबीर- जीवन पर 'लोई का ताना' और 'धूनी का धुंआं' गोरखनाथ के जीवन पर कृति है। 'यशोधरा जीत गई है', गौतम बुद्ध पर लिखा गया है। देवकी का बेटा कृष्ण के जीवन पर आधारित है।

  • इस उपन्यास में रानी लखिमा और विद्यापति के सात्विक-मानसिक प्रेम की कथा है। राजा शिवप्रसाद सिंह विद्यापति के आयदाता होने के साथ-साथ उनके मित्र भी थे। डॉ. रांगेय राघव ने विद्यापति के दोनों भक्त व शृंगारी कवि रूपों का संघर्ष दिखाया है।
  • विद्यापति के जीवन गाथा के साथ ही तत्कालीन परिस्थितियों का वर्णन भी उपन्यास में सशक्त ढंग से किया गया है। 'लखिमा आंखें' में रांगेय राघव ने राजा शिवसिंह और विद्यापति की मित्रता के साथ रानी लखिमा और विद्यापति के प्रति आकर्षण भी वर्णित किया है।
  • इसी उपन्यास में विद्यापति के संघर्षमय जीवन का भी वर्णन किया गया है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. लखिमा की आँखें (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 24 जनवरी, 2013।
  2. जीवनीपरक साहित्यकारों में डॉ. रांगेय राघव (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 24 जनवरी, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख