देवदार: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "अफगान" to "अफ़ग़ान") |
गोविन्द राम (talk | contribs) m (Adding category Category:हिन्दी विश्वकोश (को हटा दिया गया हैं।)) |
||
Line 24: | Line 24: | ||
{{वृक्ष}} | {{वृक्ष}} | ||
[[Category:वनस्पति]][[Category:वनस्पति_कोश]][[Category:वनस्पति_विज्ञान]][[Category:वृक्ष]] | [[Category:वनस्पति]][[Category:वनस्पति_कोश]][[Category:वनस्पति_विज्ञान]][[Category:वृक्ष]] | ||
[[Category:हिन्दी विश्वकोश]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
Revision as of 11:07, 23 November 2013
thumb|250px|देवदार के वृक्ष देवदार पिनाएसिई वंश का बहुत ऊँचा, शोभायमान, बड़ा फैलावदार, सदा हरा-भरा और बहुत वर्षों तक जीवित रहने वाला वृक्ष है। देवदार साधारणत: ढाई से पौने चार मीटर के घेरे वाले पेड़ है, जो वनों में बहुतायत से मिलते हैं, पर 14 मीटर के घेरे वाले तथा 75 से 80 मीटर तक ऊँचे पेड़ भी पाए जाए हैं।
लक्षण
देवदार एक बहुत बड़ा लंबा और सीधा पेड़ है। देवदार का तना बहुत मोटा और पत्ते हल्के हरे रंग के मुलायम और लंबे होते हैं। लकड़ी पीले रंग की सघन, सुगंधित, हल्की, मजबूत और रालयुक्त होती है। राल के कारण कीड़े और फफूँद नहीं लगते और जल का भी प्रभाव नहीं पड़ता, लकड़ी उत्कृष्ट कोटि की इमारती होती है।
उत्पत्ति
thumb|देवदार के वृक्ष पश्चिमी हिमालय, उत्तरी बलूचिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, उत्तर भारत के कश्मीर से गढ़वाल तक के वनों में 1,700 से लेकर 3,500 फुट तक की ऊँचाई पर यह वृक्ष मिलते हैं। शोभा के लिए यह इंग्लैंड और अफ्रीका में भी उगाया जाता है। बीजों से पौधों को उगाकर वनों में रोपा जाता है। अफ्रीका में कलमों से भी उगाया जाता है।
उपयोग
- रेल की पटरियाँ, फर्नीचर, मकान के दरवाज़े और खिड़कियाँ, अलमारियाँ इत्यादि भी बनती हैं।
- इस पर रोगन और पालिश अच्छी चढ़ती है।
- इसकी लकड़ी से पेंसिल भी बनती है।
- इसकी छीलन और बुरादे से, ढाई से लेकर चार प्रतिशत तक, वाष्पशील तेल प्राप्त होता है, जो सुगंध के रूप में 'हिमालयी सेडारवुड तेल' के नाम से व्यवहृत होता है।
- तेल निकाल लेने पर छीलन और बुरादा जलावन के रूप में व्यवहृत हो सकते हैं।
- देवदार की लकड़ी का उपयोग आयुर्वेदीय ओषधियों में भी होता है।
- भंजक आसवन से प्राप्त तेल त्वचा रोगों में तथा भेड़ और घोड़ों के बालों के रोगों में प्रयुक्त होता है।
- इसके पत्तों में अल्प वाष्पशील तेल के साथ साथ ऐस्कौर्बिक अम्ल भी पाया जाता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
मूल पाठ स्रोत: देवदार (हिन्दी) (पी.एच.पी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 4 जून, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख