बापू -रामधारी सिंह दिनकर: Difference between revisions

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उनका किरीट, जो कुहा-भंग
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करके प्रचण्ड हुंकारों से,
करके प्रचण्ड हुंकारों से,
रोशनी छिटकती है जग में
रोशनी छिटकती है जग में

Revision as of 14:02, 19 May 2014

बापू -रामधारी सिंह दिनकर
कवि रामधारी सिंह दिनकर
प्रकाशक 'लोकभारती प्रकाशन'
देश भारत
पृष्ठ: 73
भाषा हिन्दी
विधा कविता संग्रह
टिप्पणी जिस समय बापू नोआखाली की यात्रा पर थे, उसी समय 'बापू' कविता की रचना हुई थी।

बापू नामक कविता संग्रह के रचयिता भारत के प्रसिद्ध कवि और निबन्धकार रामधारी सिंह दिनकर हैं। यह छोटी-सी पुस्तक विराट् के चरणों में वामन का दिया हुआ क्षुद्र उपहार है। दिनकर जी की इस पुस्तक का प्रकाशन 'लोकभारती प्रकाशन' द्वारा किया गया था।

लेखक विचार

बापू के इर्द-गिर्द कल्पना बहुत दिनों से मँडरा रही थी। कई बार छिट-पुट स्पर्श भी हो गया, किन्तु तूलिका कुछ ज्यादा कर पाने में असमर्थ रही। तसवरी तो अधूरी अब भी है, किन्तु, इस बार जो-कुछ बन पड़ा, उसे पुस्तकाकार में प्रकाशित कर देना ही अच्छा जान पड़ा। अपनी असमर्थता का रोना रोते हुए कब तक निश्चेष्ट रहा जाय? कविता का एकाध अंश ऐसा है, जिसे स्वयं बापू, शायद पसन्द न करें। किन्तु, उनका एकमात्र वही रूप तो सत्य नहीं है, जिसे वे स्वयं मानते होंगे। हमारे जातीय जीवन के प्रसंग में वे जिस स्थान पर खड़े हैं, वह भी जो भुलाया नहीं जा सकता। यह छोटी-सी पुस्तक विराट् के चरणों में वामन का दिया हुआ क्षुद्र उपहार है। साहित्य-कला से परे, इसका एकमात्र महत्त्व भी इतना ही है। बापू के दर्शक, प्रशंसक और भक्त इस तुकबन्दी में अपने हृदय के भावों का कुछ प्रतिबिम्ब अवश्य पाएंगे।[1]

प्रकाशक का कथन

जिस समय बापू नोआखाली की यात्रा पर थे, उसी समय 'बापू' कविता की रचना हुई थी। लेकिन देश के दुर्भाग्य से इस कविता का भाव-क्षेत्र नोआखाली तक ही सीमित नहीं रहा। जब बापू बिहार आये थे, तब यह कविता उनके सम्पर्क में रहने वाले कई लोगों ने सुनी थी। "वह सुनो, सत्य चिल्लाता है" वाले अंश को सुनकर मृदुला बेने बोल उठीं कि बापू की ठीक यही मनोदशा थी। लेकिन कौन जानता था कि बापू कि भविष्याणी इतनी जल्द पूरी हो जायगी और पुस्तक के दूसरे संस्करण में ही बापू की मृत्यु पर रचित शोक-काव्य को भी सम्मिलित कर देना होगा?

संसार पूजता जिन्हें तिलक,
रोली, फूलों के हारों से,
मैं उन्हें पूजता आया हूँ
बापू ! अब तक अंगारों से।

अंगार, विभूषण यह उनका
विद्युत पीकर जो आते हैं,
ऊँघती शिखाओं की लौ में
चेतना नयी भर जाते हैं।

उनका किरीट, जो कुहा-भंग
करके प्रचण्ड हुंकारों से,
रोशनी छिटकती है जग में
जिनके शोणित की धारों से।

झेलते वह्नि के वारों को
जो तेजस्वी बन वह्नि प्रखर,
सहते ही नहीं, दिया करते
विष का प्रचण्ड विष से उत्तर।

अंगार हार उनका, जिनकी
सुन हाँक समय रुक जाता है,
आदेश जिधर का देते हैं,
इतिहास उधर झुक जाता है।


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आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बापू (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 24 सितम्बर, 2013।

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