पूर्वोत्तर रेलवे: Difference between revisions

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'''पूर्वोत्तर रेलवे''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''North Eastern Railway'') [[भारतीय रेल]] की एक इकाई है। इसे लघु रूप में 'उपूरे' कहा जाता है। इसका मुख्यालय [[गोरखपुर]] में स्थित है। पूर्वोत्तर रेलवे का गठन [[14 अप्रॅल]], [[1952]] को मुख्यत: दो रेलवे प्रणालियों ([[अवध]] और [[तिरहुत]] रेलवे तथा [[असम]] रेलवे) और बी.बी एण्ड सी.आई. के [[कानपुर]] अछनेरा खण्ड को जोड़ कर हुआ। [[15 जनवरी]], [[1958]] को यह दो जोनों- 'पूर्वोत्तर' और 'पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे' में विभाजित हुआ। अपने वर्तमान स्वरूप में पूर्वोत्तर रेलवे सन [[2002]] के जोनों के पुनर्गठन के बाद आया। इस जोन में 3450 रूट किलोमीटर और 486 स्टेशन हैं। पुनर्गठन के बाद इस रेलवे में तीन मण्डल हैं- [[वाराणसी]], [[लखनऊ]] और इज्जतनगर। पूर्वोत्तर रेलवे मूलत: [[उत्तर प्रदेश]], [[उत्तराखण्ड]] और [[बिहार]] के पश्चिमी ज़िलों को यातायात सुविधायें देता है।
'''पूर्वोत्तर रेलवे''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''North Eastern Railway'') [[भारतीय रेल]] की एक इकाई है। इसे लघु रूप में 'उपूरे' कहा जाता है। इसका मुख्यालय [[गोरखपुर]] में स्थित है। पूर्वोत्तर रेलवे का गठन [[14 अप्रॅल]], [[1952]] को मुख्यत: दो रेलवे प्रणालियों (अवध तिरहुत रेलवे तथा असम रेलवे) और बी.बी एण्ड सी.आई. के [[कानपुर]] अछनेरा खण्ड को जोड़ कर हुआ। [[15 जनवरी]], [[1958]] को यह दो जोनों- 'पूर्वोत्तर' और 'पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे' में विभाजित हुआ। अपने वर्तमान स्वरूप में पूर्वोत्तर रेलवे सन [[2002]] के जोनों के पुनर्गठन के बाद आया। इस जोन में 3450 रूट किलोमीटर और 486 स्टेशन हैं। पुनर्गठन के बाद इस रेलवे में तीन मण्डल हैं- [[वाराणसी]], [[लखनऊ]] और इज्जतनगर। पूर्वोत्तर रेलवे मूलत: [[उत्तर प्रदेश]], [[उत्तराखण्ड]] और [[बिहार]] के पश्चिमी ज़िलों को यातायात सुविधायें देता है।
==इतिहास==
==इतिहास==
सन [[1875]] में दलसिंहसराय से [[दरभंगा]] तक की एक 45 मील की रेल लाइन अकालग्रस्त क्षेत्र में बिछायी गई और पूर्वोत्तर रेलवे के इतिहास में एक नींव का पत्थर बन गर्इ। पूर्वोत्तर रेलवे [[14 अप्रैल]], [[1952]] को उस समय अस्तित्व में आर्इ, जब अवध तिरहुत रेलवे, असम रेलवे और पुरानी बी.बी. एंड सी.आई. रेलवे के फतेहगढ़ ज़िले को एक प्रणाली में विलय कर दिया गया और [[भारत]] के प्रथम [[प्रधानमंत्री]] [[जवाहरलाल नेहरू]] द्वारा इसका उदघाटन किया गया। इसकी सीमायें पश्चिम में [[आगरा]] के निकट अछनेरा से लेकर पूर्व में [[पश्चिम बंगाल]] की सीमा-रेखा के निकट 'लीडो' तक फैली थीं। [[15 जनवरी]], [[1958]] को इसे दो जोनों में विभाजित कर दिया गया- 'उत्तर पूर्व सीमान्त रेलवे' तथा 'पूर्वोत्तर रेलवे', जिसका मुख्यालय [[गोरखपुर]] में है व जिसमें पांच मण्डल- इज़्ज़तनगर, [[लखनऊ]], [[वाराणसी]], समस्तीपुर एवं [[सोनपुर]] थे।
सन [[1875]] में दलसिंहसराय से [[दरभंगा]] तक की एक 45 मील की रेल लाइन अकालग्रस्त क्षेत्र में बिछायी गई और पूर्वोत्तर रेलवे के इतिहास में एक नींव का पत्थर बन गर्इ। पूर्वोत्तर रेलवे [[14 अप्रैल]], [[1952]] को उस समय अस्तित्व में आर्इ, जब अवध तिरहुत रेलवे, असम रेलवे और पुरानी बी.बी. एंड सी.आई. रेलवे के फतेहगढ़ ज़िले को एक प्रणाली में विलय कर दिया गया और [[भारत]] के प्रथम [[प्रधानमंत्री]] [[जवाहरलाल नेहरू]] द्वारा इसका उदघाटन किया गया। इसकी सीमायें पश्चिम में [[आगरा]] के निकट अछनेरा से लेकर पूर्व में [[पश्चिम बंगाल]] की सीमा-रेखा के निकट 'लीडो' तक फैली थीं। [[15 जनवरी]], [[1958]] को इसे दो जोनों में विभाजित कर दिया गया- 'उत्तर पूर्व सीमान्त रेलवे' तथा 'पूर्वोत्तर रेलवे', जिसका मुख्यालय [[गोरखपुर]] में है व जिसमें पांच मण्डल- इज़्ज़तनगर, [[लखनऊ]], [[वाराणसी]], समस्तीपुर एवं [[सोनपुर]] थे।

Revision as of 11:20, 18 May 2016

पूर्वोत्तर रेलवे (अंग्रेज़ी: North Eastern Railway) भारतीय रेल की एक इकाई है। इसे लघु रूप में 'उपूरे' कहा जाता है। इसका मुख्यालय गोरखपुर में स्थित है। पूर्वोत्तर रेलवे का गठन 14 अप्रॅल, 1952 को मुख्यत: दो रेलवे प्रणालियों (अवध तिरहुत रेलवे तथा असम रेलवे) और बी.बी एण्ड सी.आई. के कानपुर अछनेरा खण्ड को जोड़ कर हुआ। 15 जनवरी, 1958 को यह दो जोनों- 'पूर्वोत्तर' और 'पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे' में विभाजित हुआ। अपने वर्तमान स्वरूप में पूर्वोत्तर रेलवे सन 2002 के जोनों के पुनर्गठन के बाद आया। इस जोन में 3450 रूट किलोमीटर और 486 स्टेशन हैं। पुनर्गठन के बाद इस रेलवे में तीन मण्डल हैं- वाराणसी, लखनऊ और इज्जतनगर। पूर्वोत्तर रेलवे मूलत: उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड और बिहार के पश्चिमी ज़िलों को यातायात सुविधायें देता है।

इतिहास

सन 1875 में दलसिंहसराय से दरभंगा तक की एक 45 मील की रेल लाइन अकालग्रस्त क्षेत्र में बिछायी गई और पूर्वोत्तर रेलवे के इतिहास में एक नींव का पत्थर बन गर्इ। पूर्वोत्तर रेलवे 14 अप्रैल, 1952 को उस समय अस्तित्व में आर्इ, जब अवध तिरहुत रेलवे, असम रेलवे और पुरानी बी.बी. एंड सी.आई. रेलवे के फतेहगढ़ ज़िले को एक प्रणाली में विलय कर दिया गया और भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा इसका उदघाटन किया गया। इसकी सीमायें पश्चिम में आगरा के निकट अछनेरा से लेकर पूर्व में पश्चिम बंगाल की सीमा-रेखा के निकट 'लीडो' तक फैली थीं। 15 जनवरी, 1958 को इसे दो जोनों में विभाजित कर दिया गया- 'उत्तर पूर्व सीमान्त रेलवे' तथा 'पूर्वोत्तर रेलवे', जिसका मुख्यालय गोरखपुर में है व जिसमें पांच मण्डल- इज़्ज़तनगर, लखनऊ, वाराणसी, समस्तीपुर एवं सोनपुर थे।

मण्डल

1 अक्टूबर, 2002 को पूर्वोत्तर रेलवे के सोनपुर एवं समस्तीपुर मण्डलों का विलय, नव-सृजित पूर्व मध्य रेलवे में कर दिया गया, जिसका मुख्यालय हाजीपुर में स्थित है। वर्तमान में पूर्वोत्तर रेलवे में निम्न तीन मण्डल शामिल हैं-

  1. वाराणसी
  2. लखनऊ
  3. इज़्ज़तनगर

इनका मुख्यालय गोरखपुर में स्थित है। यह रेलवे यात्री उन्मुख प्रणाली होने के कारण उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल और पश्चिमी बिहार के लोगों को विश्वसनीय यातायात सेवा उपलब्ध कराती है और साथ ही इस क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास को भी प्रोत्साहित करती है। यह रेलवे पड़ोसी देश नेपाल की यातायात आवश्यकताओं की भी पूर्ति करती है।

प्रणाली

पूर्वोत्तर रेलवे प्रणाली उत्तर प्रदेश, उत्तरांखण्ड और बिहार राज्यों से होती हुर्इ पश्चिम से पूर्व की ओर जाती है। इस रेल प्रणाली का अधिकांश भाग गंगा नदी के उत्तर में स्थित है और गंगा के तट से गुज़रती हुई नेपाल सीमा के अनेक स्थानों जैसे नेपालगंज रोड, बढ़नी, नौतनवाआदि को छूती हुर्इ जाती है। नेपाल से आरम्भ होने वाली विभिन्न नदियाँ, जैसे- शारदा, घाघरा, राप्ती, गंडक और उनकी विभिन्न उप-धाराएं इस रेलवे द्वारा सेवित क्षेत्र से होकर गुजरती हैं। गंगा, गोमती, सरयू जैसी प्रमुख नदियां इस रेलवे प्रणाली को अनेक स्थानों पर काटती हुर्इ जाती हैं। इन नदियों में अचानक बाढ़ आने की संभावना रहती है, जिससे पूर्वोत्तर रेलवे के अनेक खण्ड खतरे में रहते हैं और वर्षा के दौरान इनमें कटाव की संभावना बनी रहती है। यह रेलवे विभिन्न नदियों पर बने अपने पुलों के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें से प्रत्येक पुल इंजीनियरी का उत्कृष्ट नमूना है।

पूर्वोत्तर रेलवे प्रथमत: एक यात्री उन्मुख प्रणाली है जो पश्चिमी बिहार, उत्तर प्रदेश, और उत्तराखण्ड में सेवा प्रदान करती है। यह वाराणसी, सारनाथ, लखनऊ, इलाहाबाद, कुशीनगर, गोरखपुर, लुम्बिनी, अयोध्या, मगहर, मथुरा आदि जैसे प्रमुख पर्यटन स्थलों और सांस्कृतिक केन्द्रों से होकर गुजरती है।

राज्य-वार रूट

राज्यवार रूट कि.मी.
राज्य बी.जी. एम.जी. योग
उत्तराखण्ड 150 42 192
उत्तर प्रदेश 1976 985 2961
बिहार 188 109 297
योग 2314 1136 3450

मण्डल-वार रूट

मण्डलवार रूट कि.मी.
मण्डल बी.जी. एम.जी. योग
इज़्ज़तनगर 640 390 1030
लखनऊ 567 601 1168
वाराणसी 1108 144 1252
योग 2315 1135 3450

31 मार्च, 2013 को इस रेलवे पर 493 स्टेशन, दो यांत्रिक कारखाने (गोरखपुर एवं इज़्ज़तनगर में एक-एक), दो डीजल शेड (गोण्डा एवं इज़्ज़तनगर में एक-एक), एक इंजीनियरी कारखाना गोरखपुर में और एक सिगनल कारखाना गोरखपुर में हैं।


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