कोलेघाट: Difference between revisions
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*जिस समय वसुदेव जी यमुना पार करते समय बीच में उपस्थित हुए, उस समय यमुना [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] के चरणों को स्पर्श करने के लिए बढ़ने लगी। वसुदेव जी कृष्ण को ऊपर उठाने लगे। जब वसुदेव जी के गले तक पानी पहुँचा तो वे बालक की रक्षा करने की चिन्ता से घबड़ाकर कहने लगे इसे 'को लेवे' | *जिस समय वसुदेव जी यमुना पार करते समय बीच में उपस्थित हुए, उस समय यमुना [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] के चरणों को स्पर्श करने के लिए बढ़ने लगी। वसुदेव जी कृष्ण को ऊपर उठाने लगे। जब वसुदेव जी के गले तक पानी पहुँचा तो वे बालक की रक्षा करने की चिन्ता से घबड़ाकर कहने लगे इसे 'को लेवे' अर्थात् 'इसे कौन लेकर बचाये'। इसलिए [[वज्रनाभ]] ने यमुना के इस घाट का नाम कोलेघाट रखा। | ||
*यमुना के स्तर को बढ़ते देखकर बालकृष्ण ने पीछे से अपने पैरों को यमुना के 'कोल' में (गोदी में) स्पर्श करा दिया। यमुना कृष्ण के चरणों का स्पर्श पाकर झट नीचे उतर गईं। पीछे से वहाँ टापू हो गया और वहाँ कोलेगाँव बस गया। | *यमुना के स्तर को बढ़ते देखकर बालकृष्ण ने पीछे से अपने पैरों को यमुना के 'कोल' में (गोदी में) स्पर्श करा दिया। यमुना कृष्ण के चरणों का स्पर्श पाकर झट नीचे उतर गईं। पीछे से वहाँ टापू हो गया और वहाँ कोलेगाँव बस गया। | ||
*कोले घाट के तट पर 'उथलेश्वर' और 'पाण्डेश्वर महादेव जी' के दर्शन हैं। | *कोले घाट के तट पर 'उथलेश्वर' और 'पाण्डेश्वर महादेव जी' के दर्शन हैं। |
Latest revision as of 07:48, 7 November 2017
कोलेघाट भगवान श्रीकृष्ण से सम्बंधित प्रसिद्ध स्थान है, जो महावन में स्थित है। 'ब्रह्माण्ड घाट' से यमुना पार मथुरा की ओर कोलेघाट विराजमान है।
- श्री वसुदेव जी नवजात कृष्ण को लेकर इसी स्थान से यमुना पार होकर गोकुल नन्दभवन में पहुँचे थे।
- जिस समय वसुदेव जी यमुना पार करते समय बीच में उपस्थित हुए, उस समय यमुना श्रीकृष्ण के चरणों को स्पर्श करने के लिए बढ़ने लगी। वसुदेव जी कृष्ण को ऊपर उठाने लगे। जब वसुदेव जी के गले तक पानी पहुँचा तो वे बालक की रक्षा करने की चिन्ता से घबड़ाकर कहने लगे इसे 'को लेवे' अर्थात् 'इसे कौन लेकर बचाये'। इसलिए वज्रनाभ ने यमुना के इस घाट का नाम कोलेघाट रखा।
- यमुना के स्तर को बढ़ते देखकर बालकृष्ण ने पीछे से अपने पैरों को यमुना के 'कोल' में (गोदी में) स्पर्श करा दिया। यमुना कृष्ण के चरणों का स्पर्श पाकर झट नीचे उतर गईं। पीछे से वहाँ टापू हो गया और वहाँ कोलेगाँव बस गया।
- कोले घाट के तट पर 'उथलेश्वर' और 'पाण्डेश्वर महादेव जी' के दर्शन हैं।
- दाऊजी से पांच कोस उत्तर की ओर देवस्पति गोप का निवास स्थान देवनगर है। वहाँ 'रामसागरकुण्ड', प्राचीन बृहद कदम्ब वृक्ष और देवस्पति गोप के पूजन की गोवर्धन शिला दर्शनीय है। दाऊजी के पास ही हातौरा ग्राम है, वहाँ नन्दराय जी की बैठक है।
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें