नितीश कुमार: Difference between revisions
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Revision as of 12:43, 18 March 2018
नितीश कुमार
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पूरा नाम | नितीश कुमार |
जन्म | 1 मार्च, 1951 |
जन्म भूमि | हरनौत पटना, बिहार |
पति/पत्नी | (स्वर्गीय) मंजू कुमारी सिन्हा |
संतान | निशांत कुमार (पुत्र) |
नागरिकता | भारतीय |
पार्टी | जनता दल (यूनाइटेड) |
पद | बिहार के 22वें मुख्यमंत्री |
कार्य काल | 24 नवंबर 2005 – 17 मई 2014; 22 फ़रवरी 2015 – 26 जुलाई 2017; 27 जुलाई 2017 से अब तक |
शिक्षा | स्नातक (मैकेनिकल इंजीनियरिंग) |
विद्यालय | राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, पटना |
भाषा | हिन्दी |
अन्य जानकारी | बिहार के मुख्यमंत्री पद संभालने से पहले नीतीश कुमार को वाजपेयी सरकार में रेल मंत्री, भूतल परिवहन मंत्री और कृषि मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद मिले। |
अद्यतन | 16:46, 31 दिसम्बर 2017 (IST)
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नीतीश कुमार (अंग्रेज़ी: Nitish Kumar, जन्म: 1 मार्च 1951) एक प्रसिद्ध भारतीय राजनीतिज्ञ एवं बिहार के मुख्यमंत्री हैं। इससे पहले उन्होंने 2005 से 2014 तक बिहार के मुख्यमंत्री और 2015 से 2017, उन्होंने भारत सरकार के रेल मंत्री के रूप में भी सेवा की। वह जनता दल यूनाइटेड राजनीतिक दल के प्रमुख नेताओं में से हैं। बेहद गंभीर और नपी तुली बातें करने वाले नीतीश कुमार अपने साधारण और ईमानदार व्यक्तित्व के लिए जाने जाते हैं। बिहार की जनता के बीच सुशासन बाबू की छवि वाले नीतीश कुमार का जीवन काफी संघर्ष भरा रहा है लेकिन उन्होंने कभी भी अमर्यादित और अनैतिक भाषा का प्रयोग नहीं किया।
जीवन परिचय
नीतीश कुमार का जन्म बिहार के पटना जिले के बख्तियारपुर में 1 मार्च 1951 को हुआ। इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में उपाधि लेने के बावजूद उन्होंने राजनीति में जाने का फैसला लिया। लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव और शरद यादव की तरह ही नीतीश कुमार को भी उस समाजवादी आंदोलन से आगे बढ़ने का मौका मिला, जो भारत में लगी एकमात्र इमरजेंसी की वजह से पैदा हुआ था। कांग्रेस के विरोध में खड़ी जनता पार्टी के युवा नेताओं में नीतीश कुमार का नाम भी प्रमुखता से लिया जा सकता है। नीतीश ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत जनता पार्टी के कार्यकर्ता के तौर पर ही की। उनका शुरूआती सफर ढेरों मुश्किलों से भरा रहा। 1977 में जब जनता दल अपने पूरे परवान पर थी, नीतीश बाबू को विधानसभा चुनाव में हार का मुँह देखना पड़ा। बिहार के कुर्मी समुदाय के प्रमुख नेता होने की वजह से उन्हें एक बार फिर 1980 में विधानसभा चुनाव में भाग्य आजमाने का मौका दिया गया, लेकिन इस बार भी हार ही उनके हिस्से में आई। लगातार दो बार हारने के बाद उनका आत्मविश्वास नहीं टूटा। परिवार के दबाव के बावजूद वे राजनीति के मैदान में डटे रहे। लगातार काम करते रहे और इन प्रयासों के कारण एक बार फिर 1985 में उन्हें एक बार फिर अपना भाग्य आजमाया और इस बार विजयश्री उनके साथ रही। 1987 में नेतृत्व क्षमता के कारण उन्हें युवा लोकदल का अध्यक्ष चुना गया। यह पहली बार था कि वे किसी महत्वपूर्ण पद का जिम्मा उठा रहे थे। इस जीत के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और राजनीति में लगातार उनका कद बढ़ता गया। 1989 में उन्हें जनता दल का प्रदेश सचिव चुना गया और पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ने का मौका मिला। इस चुनाव में उन्हें जीत भी मिली और सांसद के साथ केन्द्र में मंत्री बनने का मौका मिला। 1990 के केन्द्रीय मंत्रीमण्डल में उन्हें कृषि राज्य मंत्री के तौर पर काम करने का मौका मिला। जनता पार्टी की टूट से पूरे देश के समाजवादियों को झटका लगा और हरेक राज्य में ढेर सारे छोटे दलों का गठन होने लगा। लालू प्रसाद यादव ने राष्ट्रीय जनता दल बनाया तो नितिश कुमार ने समता पार्टी का दामन थामा। 1995 में बिहार में हुए चुनावों में नितिश की समता पार्टी को बुरी तरह नकार दिया गया, लेकिन इस बड़ी हार के बावजूद पहले की तरह नितिश एक बार फिर फील्ड में काम करते रहे। नितिश कुमार ने केन्द्रीय मंत्रीमंडल में बतौर रेल मंत्री काम किया और राष्ट्रीय स्तर पर उनकी पहचान स्थापित हुई, लेकिन गैसल में एक दुखद रेल दुर्घटना घटित हो गई। नीतीश कुमार ने घटना की जिम्मेदारी लेते हुए पद से इस्तीफा दे दिया। इससे राजनीति में उनका कद बढ़ा।[1] अनुशासन और ईमानदारी के लिए जाने वाले नीतीश कुमार की पत्नी अब इस दुनिया में नहीं हैं। वो कभी मुख्यमंत्री सदन में कदम नहीं रख पाईं। नीतीश कुमार का एक बेटा भी है, जिनका नाम निशांत कुमार है। निशांत की अपने पिता नीतीश कुमार से बहुत अच्छी नहीं बनती।
राजनीतिक परिचय
नीतीश कुमार ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत जनता पार्टी के साथ शुरु की। 1977 में जब देश में जनता पार्टी की सरकार थी उस वक्त पार्टी से विधानसभा का चुनाव लड़ने के बाद नीतीश चुनाव हार गए थे फिर 1980 में भी विधानसभा चुनाव में एक बार फिर उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस हार ने उन्हें काफी कुछ सिखाया। घर की आर्थिक स्थिति के कारण राजनीति छोड़कर उन्हें नौकरी करने का पारिवारिक दबाव भी झेलने पड़े इसके बावजूद उन्होंने नौकरी न करने काे अपने दृढ़संकल्प पर कायम रहे। उसके बाद का उनका जीवन बेहद संघर्षपूर्ण रहा। नौकरी नही कोई पूछने वाला नहीं। अपने घर से वे ट्रेन से पटना आते थे और पैदल ही घूमते थे। नीतीश कुमार के पिता जी जो सत्येन्द्र नारायण सिन्हा के बेहद करीबी थे लेकिन उन्होंने यह कभी नहीं बताया कि उनका बेटा भी राजनीति में हैं। जब सत्येंद्र नारायण सिन्हा 1985 में नीतीश के प्रचार के लिए इलाके में पहुंचे तब उन्हें यह बात पता चली। नीतीश कुमार फिर से 1985 में विधानसभा चुनाव लड़े और विजयी रहे और 1987 में वे युवा लोकदल के अध्यक्ष बने। फिर नीतीश कुमार 1989 जनता दल के प्रदेश सचिव बने और इसी दौरान उन्होंने लोकसभा चुनाव मे जीत दर्ज की। 1995 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की समता पार्टी चुनाव लड़ी लेकिन बुरी तरह हार गई। नीतीश की पार्टी के लोग इधर-उधर चले गए लेकिन नीतीश के हौसले में कोई कमी नही आई। अगस्त 1999 में गैसल में हुई रेल दुर्घटना के बाद नीतीश कुमार ने रेल मंत्री पद छोड़ दिया। इसके बाद 2014 में लोकसभा चुनाव में हार के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। नीतीश कुमार ने 2000 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली लेकिन सात दिनों के भीतर ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।[2]
बिहार के मुख्यमंत्री
2000 में नीतीश कुमार पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने लेकिन उनका कार्यकाल महज सात दिन तक चल पाया और सरकार गिर गई। नीतीश कुमार को इस्तीफा देना पड़ा। उसी साल उन्हें केन्द्रीय मंत्रीमंडल में पिछले अनुभवों को देखते हुए कृषि मंत्री बना दिया गया। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में उन्हें एक बार फिर 2001 में रेल मंत्री बना दिया गया। इस बीच उनकी नजर बिहार की राजनीति पर रही। नवम्बर 2005 में उन्हें एक बार फिर पूर्ण बहुमत के साथ बिहार के मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला। उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर बिहार में गठबंधन की सरकार बनाई। 2010 में एक बार फिर उन्होंने अपने बेहतरीन काम की वजह से जनता का समर्थन मिला और वे तीसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री चुने गए। इस गठबंधन सरकार में शामिल भाजपा के साथ उनके मतभेद लगातार बढ़ते गए, जिसका एक प्रमुख कारण भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी का प्रखर विरोध था। गठबंधन टूट गया लेकिन सरकार चलती रही। 2014 में हुए लोकसभा के चुनावों में पार्टी की बुरी हार की वजह से उन्होंने एक बार फिर अपने पद से इस्तीफा दे दिया और जीतनराम मांझी बिहार के मुख्यमंत्री बने। जीतनराम मांझी के साथ नीतीश कुमार के मतभेद शुरूआत में ही सामने आने लगे और मतभेद इस कदर बढ़ गए कि पार्टी अपने ही मुख्यमंत्री के खिलाफ हो गई। बिहार में हुए चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल के साथ गठबंधन करके उन्होंने हमेशा की तरह एक बार फिर अपने प्रतिद्वंद्वीयों का चौकाया। जनता ने एक बार फिर सुशासन बाबू को चुना। उनके द्वारा किया गया नारा 'बिहार में बहार है, नीतीश कुमार है' काफी मशहूर हुआ है तब से लेकर अब तक बिहार की कमान नीतीश कुमार के हाथ में है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 नीतीश कुमार का जीवन परिचय (हिंदी) दीपावली डॉट को डॉ. इन। अभिगमन तिथि: 31 दिसंबर, 2017।
- ↑ दृढ इच्छा शक्ति और धैर्य की बदौलत नीतीश ने बनाये नए मुकाम (हिंदी) जागरण डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 31 दिसंबर, 2017।
बाहरी कड़ियाँ
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क्रमांक | राज्य | मुख्यमंत्री | तस्वीर | पार्टी | पदभार ग्रहण |