नेहरू-लियाक़त समझौता

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नेहरू-लियाक़त समझौता (अंग्रेज़ी: Nehru-Liaquat Pact) भारत विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच हुई एक द्विपक्षीय संधि थी। संधि पर नई दिल्ली में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाक़त अली ख़ान के द्वारा 8 अप्रैल, 1950 को हस्ताक्षर किए गए। यह संधि भारत के विभाजन के बाद दोनों देशों में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की गारंटी देने और उनके बीच एक और युद्ध को रोकने के लिए की गई छह दिनों की वार्ता का परिणाम थी। इसके अलावा जो इस पैक्ट का सबसे बड़ा मकसद था, वह दोनों देशों के बीच युद्ध को टालना था।

विभाजन और दंगे

1947 में भारत का विभाजन इतिहास के सबसे दु:खद और रक्तरंजित अध्यायों में से एक है। दोनों तरफ बड़े पैमाने पर दंगे हुए, जिसमें लाखों लोग मारे गए, हजारों महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ, नाबालिग लड़कियों का अपहरण किया गया और उनका जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया। बड़े पैमाने पर कत्लेआम से दोनों देशों में रहने वाले अल्पसंख्यक समुदाय असुरक्षित हो गए। दिसंबर 1949 में दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध भी बंद हो गए। अपनी जान बचाने के लिए दोनों देशों के अल्पसंख्यक अपना घर-बार सब कुछ छोड़कर चले गए। पाकिस्तान से हिन्दू और सिक्ख भारत आए तो भारत से मुस्लिम पाकिस्तान चले गए। भारत आने और पाकिस्तान जाने वाले उन हिन्दू-मुसलमानों की संख्या करीब 10 लाख थी। जो लोग अपना देश छोड़कर कहीं नहीं गए, उनको संदेह की नजरों से देखा जाने लगा।[1]

समझौता

लोगों के बीच डर का माहौल था। इस समस्या के समाधान के लिए दोनों देशों के तत्कालीन प्रधानमंत्री यानी भारत की ओर से जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान की ओर से लियाक़त अली खान ने कदम उठाया। उनके बीच 2 अप्रैल, 1950 को बातचीत हुई। उन्होंने दोनों देशों में रहने वाले अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किया। इस समझौते का मुख्य उद्देश्य धार्मिक अल्पसंख्यकों का भय कम करना, सांप्रदायिक दंगों को समाप्त करना और शांति का माहौल तैयार करना था।

समझौते की शर्तें

  1. इस समझौते के अनुसार सभी अल्पसंख्यकों को मूलभूत अधिकार देने की गारंटी दी गई।
  2. सभी अल्पसंख्यकों को अपने देशों के राजनीतिक पदों पर चुने जाने और अपने देश की सिविल और सेना में हिस्सा लेने का पूरा अधिकार दिया जाएगा।
  3. दोनों सरकारें ये सुनिश्चित करेंगी कि अपने देश के अल्पसंख्यकों को वह अपने-अपने देश की सीमा में पूर्ण सुरक्षा का भरोसा दिलाएंगी। जीवन, संस्कृति, संपत्ति और व्यक्तिगत सम्मान को लेकर। धर्म को परे रखते हुए, उन्हें बिना शर्त पूर्ण नागरिकता की गारंटी देंगी।
  4. दोनों देशों में 'माइनॉरिटी कमीशन' (अल्पसंख्यक आयोग) बनाए जाएंगे जो इस समझौते के लागू होने की प्रक्रिया पर कड़ी नज़र रखेंगे। इसके लागू करने में कोई कमी आ रही हो तो उसकी रिपोर्ट करेंगे। इसमें कोई सुधार आवश्यक जान पड़े तो उसकी बाबत जानकारी देंगे। कोई इस समझौते की शर्तों का उल्लंघन न करे, इस बात का ध्यान रखेंगे।
  5. जो लोग भी अपनी चल संपत्ति अपने साथ सीमा के पार ले जाना चाहते हैं, उन्हें कोई रोक नहीं होगी। इनमें गहने भी शामिल थे। 31 दिसंबर, 1950 के पहले जो भी प्रवासी वापस आना चाहते, वह आ सकते हैं। उन्हें उनकी अचल संपत्ति (घर-बार) लौटाई आएगी। खेत हुए, तो खेत भी लौटाए जाएंगे। अगर वह उन्हें बेचकर वापस जाना चाहते, तो ये भी विकल्प उनके पास होगा। जबरन किए गए धर्म परिवर्तनों की कोई वैधता नहीं होगी। जिन महिलाओं को जबरन कैद कर ले जाया गया, उन्हें भी वापस आने की पूर्ण स्वतंत्रता होगी।
  6. दोनों सरकारों से एक-एक मंत्री प्रभावित क्षेत्रों में मौजूद रहेंगे। वहां पर ये सुनिश्चित करेंगे कि समझौते की शर्तों का सही ढंग से पालन हो।
  7. दोनों ही देशों के अल्पसंख्यकों की वफादारी उनके उसी देश के साथ होगी, जिसमें वह रह रहे हैं। उनको कोई भी दुःख या तकलीफ हो तो वह अपने उसी देश की सरकार से उम्मीद रखेंगे कि वह उनकी समस्याएं सुलझाए।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. क्या है नेहरू लियाकत समझौता (हिंदी) navbharattimes.indiatimes.com। अभिगमन तिथि: 08 अप्रॅल, 2020।
  2. क्या है ये नेहरू-लियाकत पैक्ट (हिंदी) thelallantop.com। अभिगमन तिथि: 08 अप्रॅल, 2020।

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