ज्वर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 14:20, 2 February 2015 by गोविन्द राम (talk | contribs) (''''ज्वर''' अथवा बुख़ार (अंग्रेज़ी: ''Fever'') शरीर का ताप साम...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

ज्वर अथवा बुख़ार (अंग्रेज़ी: Fever) शरीर का ताप सामान्य से अधिक हो जाने की अवस्था को कहते हैं। ज्‍वर कोई रोग नहीं है। यह केवल रोग का एक लक्षण है। किसी भी प्रकार के संक्रमण की यह शरीर द्वारा दी गई प्रतिक्रिया है। बढ़ता हुआ ज्‍वर रोग की गंभीरता के स्‍तर की ओर संकेत करता है। मनुष्य के शरीर का सामान्‍य तापमान 37°सेल्सियस या 98.6° फारेनहाइट होता है। जब शरीर का तापमान इस सामान्‍य स्‍तर से ऊपर हो जाता है तो यह स्थिति ज्‍वर या बुख़ार कहलाती है।

ज्वर का कारण

उष्मानियमन की अव्यवस्था से होने वाली तापवृद्धि, ज्वर है। तापवृद्धि के निम्नांकित कारण हैं-

तांत्रिकातंत्र कार्य में बाधा

मनुष्यों में इस प्रकार का ज्वर विरल है। आधारगंडिका (basal ganglia) और पौंस (Pons) के रक्तस्राव के कारण इस प्रकार का ज्वर होता है। निम्नश्रेणी के प्राणियों में रेखी पिंडाग्र (anterior portion of corpusstriatum) को उत्तेजित करने से तापोत्पादन बढ़कर ज्वर आता है। तंत्रिका तंत्र को आघात पहुँचने से उत्पन्न होने वाला तीव्रज्वर बहुधा इसी प्रकार का होता है; परंतु उसमें वाहिका संकोचन (vasoconstriction) से होने वाली उष्णतानाशन की कमी भी कारण हो सकती है।

उष्णतानाशन में बाधा

मलाशय के ताप से कुछ कम ताप पर प्राणियों को रखने से यह बाधा होती है। मनुष्यों में लू लगने से उत्पन्न ज्वर बहुधा इसी कारण से होता है।

जैवाणुक जीवविष और रासायनिक द्रव्य

अल्पमात्रा में इनका इंजेक्शन तापवृद्धि करता है और अधिक मात्रा में ताप को घटाता है।

शरीर पर प्रभाव

कारण कोई हो, तापवृद्धि से शरीर गत प्रोटीनों का नाश होता है, जिसका परिमापन मूत्र में उत्सर्जित नाइट्रोजन, गंधक, फॉस्फोरस, ऐसीटोन, ऐसीटोऐसीटिक तथा बी-ऑक्सीब्यूटिरिक अम्ल की मात्रा से होता है। ज्वर में अनेक अंगों की कार्यहानि होती है। पाचकग्रंथियों की कार्यहानि से भूख घटकर, अन्नसेवन कम मात्रा में होने से रोगी अपनी चर्बी और प्रोटीनों पर जीवित रहकर शीघ्रता से कृश होता है। यकृत में ग्लाइकोजन का संचय तथा यूरिया का उत्पादन ठीक न होने से पित्तसंघटन बदलकर कभी कभी उसमें सारभूत संघटकों का अभाव हो जाता है और मूत्र में यूरिया घटाकर ऐमिनो नाइट्रोजन और ऐमोनिया बढ़ते हैं। यकृत् में कणीदार (granular) और वसामय अपकर्ष (degeneration) भी होता है। वृक्क की कार्यहानि से मूत्र में ऐल्ब्यूमिन, ग्लोब्यूलिन, प्रोटिओज इत्यादि उत्सर्जित होते हैं। तांत्रिका कोशिकाओं में रचना और कार्य की विकृतियाँ होती है। रक्त क्षारीयता तथा श्वेत कणिकाओं की, विशेषतया बह्वाकृतियों (पॉलीमॉर्फ़्स polymorphs) की, संख्या आंत्रज्वर जैसे कुछ ज्वरों में घटती है और न्यूमोनिया जैसे कुछ ज्वरों में दुगुनी तक बढ़ती है।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ज्वर (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 2 फ़रवरी, 2015।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः