कुजुल कडफ़ाइसिस: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "==टीका टिप्पणी और संदर्भ==" to "{{संदर्भ ग्रंथ}} ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==")
m (Text replace - "सिक़्क़े" to "सिक्के")
 
(6 intermediate revisions by 3 users not shown)
Line 1: Line 1:
'''शासन काल (30 ई. से 80 ई तक लगभग)'''
'''शासन काल (30 ई. से 80 ई तक लगभग)'''


*कुजुल कडफ़ाइसिस (Kujula Kadphises) [[कुषाण वंश]] का पहला शासक था जिसने प्रथम शताब्दी में यूची प्रदेश वासियों को एकीक्रत किया और साम्राज्य को बढ़ाया। कुजुल कडफ़ाइसिस के बाद इसका पुत्र [[विम तक्षम]] (वेम तॉख़्तो), विम तक्षम  के बाद उसका पुत्र [[विम कडफ़ाइसिस]], विम कडफ़ाइसिस के बाद उसका पुत्र [[कनिष्क]] गद्दी पर बैठे।
*कुजुल कडफ़ाइसिस (Kujula Kadphises) [[कुषाण वंश]] का पहला शासक था जिसने प्रथम शताब्दी में यूची प्रदेश वासियों को एकीक्रत किया और साम्राज्य को बढ़ाया। कुजुल कडफ़ाइसिस के बाद इसका पुत्र [[विम तक्षम]] (वेम तख्तो), विम तक्षम  के बाद उसका पुत्र [[विम कडफ़ाइसिस]], विम कडफ़ाइसिस के बाद उसका पुत्र [[कनिष्क]] गद्दी पर बैठे।
*चीनी इतिहासकार 'स्यू मा चियन' के अनुसार एक नेता [[कुजुल कडफ़ियस]] ने पाँच विभिन्न क़बायली समुदायों को अपने कुई शांग अथवा कुषाण समुदाय की अध्यक्षता में संगठित किया और वह [[भारत]] की ओर बढ़ा जहाँ उसने [[काबुल]] और कश्मीर में अपनी सत्ता स्थापित कर दी। उसके प्रारम्भिक सिक्कों पर मुख भाग पर अन्तिम यूनानी राजा हर्मियस की आकृति है और पृष्ठ भाग पर उसकी अपनी। इसका अर्थ यह हुआ कि वह पहले यूनानी राजा हर्मियस के अधीन था। बाद के सिक्कों में वह अपने को 'महाराजाधिराज' कहता है। उसकी मृत्यु लगभग 64 ई. में हुई। उसके सिक्के [[रोम]] के सम्राटों के सिक्कों से बहुत मिलते जुलते हैं।  
*चीनी इतिहासकार 'स्यू मा चियन' के अनुसार एक नेता कुजुल कडफ़ाइसिस ने पाँच विभिन्न क़बायली समुदायों को अपने कुई शांग अथवा कुषाण समुदाय की अध्यक्षता में संगठित किया और वह [[भारत]] की ओर बढ़ा जहाँ उसने [[क़ाबुल]] और [[कश्मीर]] में अपनी सत्ता स्थापित कर दी। उसके प्रारम्भिक सिक्कों पर मुख भाग पर अन्तिम यूनानी राजा हर्मियस की आकृति है और पृष्ठ भाग पर उसकी अपनी। इसका अर्थ यह हुआ कि वह पहले यूनानी राजा हर्मियस के अधीन था। बाद के सिक्कों में वह अपने को 'महाराजाधिराज' कहता है। उसकी मृत्यु लगभग 64 ई. में हुई। उसके सिक्के [[रोम]] के सम्राटों के सिक्कों से बहुत मिलते जुलते हैं।  
*कुजुल कडफ़ाइसिस के सिक़्क़े भी मिले हैं। कुजुल कडाइफ़स  के सिक़्क़े इन्डो ग्रीक राजा 'हरमेअस' के सिक्कों का परिवर्तित रूप में मिले हैं । हरमेअस (90-70 ई पू (Hermaeus Soter "the Saviour") ने क़ाबुल अफ़ग़ानिस्तान क्षेत्र में अपनी राजधानी रखी और [[हिन्दूकुश]] पर शासन किया । इसके सिक़्क़ों की नक़ल अनेक राजाओं ने की।  
*कुजुल कडफ़ाइसिस के सिक्के भी मिले हैं। कुजुल कडाइफ़स  के सिक्के इन्डो ग्रीक राजा 'हरमेअस' के सिक्कों का परिवर्तित रूप में मिले हैं । हरमेअस (90-70 ई पू (Hermaeus Soter "the Saviour") ने क़ाबुल अफ़ग़ानिस्तान क्षेत्र में अपनी राजधानी रखी और [[हिन्दूकुश]] पर शासन किया । इसके सिक़्क़ों की नक़ल अनेक राजाओं ने की।  
*राजा कुजुल कुषाण ने किस प्रकार धीरे-धीरे अपनी शक्ति का विकास किया, यह बात उसके उन सिक्कों के द्वारा भली-भाँति प्रगट हो जाती है, जो [[क़ाबुल]] व [[भारत]] के उत्तर-पश्चिमी कोने से अच्छी बड़ी संख्या में उपलब्ध हुए हैं। उसके कुछ सिक्के ऐसे हैं, जिनके एक ओर '''हेरमय''' अंकित है, और दूसरी ओर इस राजा का नाम। हेरमय या हरमाओस [[यवन]] राजा था, जो क़ाबुल के प्रदेश पर शासन करता था। एक ही सिक्के पर यवन राजा हेरमय और '''कुजुल कुषाण''' दोनों का नाम होने से इतिहासकारों ने यह परिणाम निकाला है कि प्रारम्भ में युइशि आक्रान्ताओं ने क़ाबुल के प्रदेश से से यवन राजवंश का अन्त ही नहीं किया था, वे केवल उनसे अधीनता स्वीकृत कराकर ही संतुष्ट हो गए थे। [[कुषाण साम्राज्य|कुषाण राज्य]] के क़ाबुल के प्रदेश से इस प्रकार के भी सिक्के मिले हैं, जिन पर केवल 'कुजुल' का नाम है, यवनराज हेरमय का नहीं। इससे सूचित होता है, कि बाद में इस प्रदेश से यवन शासन का अन्त हो गया था।
*राजा कुजुल कुषाण ने किस प्रकार धीरे-धीरे अपनी शक्ति का विकास किया, यह बात उसके उन सिक्कों के द्वारा भली-भाँति प्रगट हो जाती है, जो [[क़ाबुल]] व [[भारत]] के उत्तर-पश्चिमी कोने से अच्छी बड़ी संख्या में उपलब्ध हुए हैं। उसके कुछ सिक्के ऐसे हैं, जिनके एक ओर '''हेरमय''' अंकित है, और दूसरी ओर इस राजा का नाम। हेरमय या हरमाओस [[यवन]] राजा था, जो क़ाबुल के प्रदेश पर शासन करता था। एक ही सिक्के पर यवन राजा हेरमय और '''कुजुल कुषाण''' दोनों का नाम होने से इतिहासकारों ने यह परिणाम निकाला है कि प्रारम्भ में युइशि आक्रान्ताओं ने क़ाबुल के प्रदेश से से यवन राजवंश का अन्त ही नहीं किया था, वे केवल उनसे अधीनता स्वीकृत कराकर ही संतुष्ट हो गए थे। [[कुषाण साम्राज्य|कुषाण राज्य]] के क़ाबुल के प्रदेश से इस प्रकार के भी सिक्के मिले हैं, जिन पर केवल 'कुजुल' का नाम है, यवनराज हेरमय का नहीं। इससे सूचित होता है, कि बाद में इस प्रदेश से यवन शासन का अन्त हो गया था।
*इसी समय पार्थियन लोग भी उत्तर-पश्चिमी भारत में अपनी शक्ति का विस्तार कर रहे थे, और पूर्वी तथा पश्चिमी [[गान्धार]] में उन्होंने अपना शासन स्थापित कर लिया था। इस प्रदेश का पार्थियन राजा 'गुदफ़र' था, पर उसके उत्तराधिकारी पार्थियन राजा अधिक शक्तिशाली नहीं थे। उनकी निर्बलता से लाभ उठाकर राजा कुषाण ने [[भारत के पार्थियन राज्य|पार्थियन लोगों के भारतीय राज्य]] पर आक्रमण कर दिया, और उसके अनेक प्रदेशों को जीतकर अपने अधीन कर लिया। यद्यपि कुछ निर्बल पार्थियन राजा गुदफ़र के बाद भी पश्चिमी पंजाब के कतिपय प्रदेशो पर शासन करते रहे, पर इस समय उत्तर-पश्चिमी भारत की राजशक्ति कुषाणों के हाथ में चली गई थी।
*इसी समय पार्थियन लोग भी उत्तर-पश्चिमी भारत में अपनी शक्ति का विस्तार कर रहे थे, और पूर्वी तथा पश्चिमी [[गान्धार]] में उन्होंने अपना शासन स्थापित कर लिया था। इस प्रदेश का पार्थियन राजा '[[गोन्दोफ़ैरस|गुदफ़र]]' ([[गोन्दोफ़ैरस]])  था, पर उसके उत्तराधिकारी पार्थियन राजा अधिक शक्तिशाली नहीं थे। उनकी निर्बलता से लाभ उठाकर राजा कुषाण ने [[भारत के पार्थियन राज्य|पार्थियन लोगों के भारतीय राज्य]] पर आक्रमण कर दिया, और उसके अनेक प्रदेशों को जीतकर अपने अधीन कर लिया। यद्यपि कुछ निर्बल पार्थियन राजा गुदफ़र के बाद भी पश्चिमी पंजाब के कतिपय प्रदेशो पर शासन करते रहे, पर इस समय उत्तर-पश्चिमी भारत की राजशक्ति कुषाणों के हाथ में चली गई थी।
*राजा कुजुल कुषाण के शुरू के सिक्के जो क़ाबुल के प्रदेश में मिले हैं, उनमें उसके नाम के साथ न राजा विशेषण है, और न कोई ऐसा विशेषण जो उसकी प्रबल शक्ति का सूचक हो। पर बाद के जो सिक्के [[तक्षशिला]] में मिले हैं, उनमें उसका नाम इस प्रकार अंकित है -<br />
*राजा कुजुल कुषाण के शुरू के सिक्के जो क़ाबुल के प्रदेश में मिले हैं, उनमें उसके नाम के साथ न राजा विशेषण है, और न कोई ऐसा विशेषण जो उसकी प्रबल शक्ति का सूचक हो। पर बाद के जो सिक्के [[तक्षशिला]] में मिले हैं, उनमें उसका नाम इस प्रकार अंकित है -<br />


Line 11: Line 11:


*इन सिक्कों के अनुशीलन से इस बात में कोई सन्देह नहीं रह जाता कि [[क़ाबुल]], [[कन्धार]], उत्तर-पश्चिमी [[पंजाब]] आदि को पार्थियन राजाओं से जीत लेने पर कुषाण राजा की स्थिति बहुत ऊँची हो गई थी, और वह '''महाराज''', '''राजाधिराज''' आदि उपाधियों से विभूषित हो गया था। उसके नाम के साथ '''देवपुत्र''' विशेषण से यह भी सूचित होता है कि [[भारत]] के सम्पर्क में आकर उसने [[बौद्ध धर्म]] को स्वीकृत कर लिया था। उसके कुछ सिक्को पर उसके नाम के साथ '''ध्रमथिद''' विशेषण भी प्रयुक्त हुआ है, जो धर्मस्थल का अपभ्रंश है।
*इन सिक्कों के अनुशीलन से इस बात में कोई सन्देह नहीं रह जाता कि [[क़ाबुल]], [[कन्धार]], उत्तर-पश्चिमी [[पंजाब]] आदि को पार्थियन राजाओं से जीत लेने पर कुषाण राजा की स्थिति बहुत ऊँची हो गई थी, और वह '''महाराज''', '''राजाधिराज''' आदि उपाधियों से विभूषित हो गया था। उसके नाम के साथ '''देवपुत्र''' विशेषण से यह भी सूचित होता है कि [[भारत]] के सम्पर्क में आकर उसने [[बौद्ध धर्म]] को स्वीकृत कर लिया था। उसके कुछ सिक्को पर उसके नाम के साथ '''ध्रमथिद''' विशेषण भी प्रयुक्त हुआ है, जो धर्मस्थल का अपभ्रंश है।
*कुजुल कुषाण ने सुदीर्घ समय तक राज्य किया। उसकी मृत्यु अस्सी साल की आयु में हुई थी। इसीलिए वह अपने शासनकाल में एक छोटे से राजा से उन्नति करता हुआ एक विशाल साम्राज्य का स्वामी हो सका था। इस राजा के शासन के समय के सम्बन्ध में भी इतिहासकारों में अनेक मत हैं। स्थूल रूप से यह स्वीकार करना उचित होगा, कि कुजुल कुषाण का शासन काल पहली सदी ई. पू. के चतुर्थ चरण (25 ई. पू. के लगभग) में शुरू हुआ और पहली सदी ई. पू. के द्वितीय चरण (35 ई. पू. के लगभग) में उसका अन्त हुआ।
*कुजुल कुषाण ने सुदीर्घ समय तक राज्य किया। उसकी मृत्यु अस्सी साल की आयु में हुई थी। इसीलिए वह अपने शासनकाल में एक छोटे से राजा से उन्नति करता हुआ एक विशाल साम्राज्य का स्वामी हो सका था। इस राजा के शासन के समय के सम्बन्ध में भी इतिहासकारों में अनेक मत हैं।  


{{point}} देखें [[राबाटक लेख]]
{{point}} देखें [[राबाटक लेख]]
Line 29: Line 29:
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{कुषाण साम्राज्य}}
{{कुषाण साम्राज्य}}
{{भारत के राजवंश}}
{{प्राचीन विदेशी शासक}}
[[Category:इतिहास_कोश]]
[[Category:इतिहास_कोश]]
[[Category:शक एवं कुषाण काल]]
[[Category:शक एवं कुषाण काल]]
[[Category:कुषाण साम्राज्य]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 11:03, 3 March 2013

शासन काल (30 ई. से 80 ई तक लगभग)

  • कुजुल कडफ़ाइसिस (Kujula Kadphises) कुषाण वंश का पहला शासक था जिसने प्रथम शताब्दी में यूची प्रदेश वासियों को एकीक्रत किया और साम्राज्य को बढ़ाया। कुजुल कडफ़ाइसिस के बाद इसका पुत्र विम तक्षम (वेम तख्तो), विम तक्षम के बाद उसका पुत्र विम कडफ़ाइसिस, विम कडफ़ाइसिस के बाद उसका पुत्र कनिष्क गद्दी पर बैठे।
  • चीनी इतिहासकार 'स्यू मा चियन' के अनुसार एक नेता कुजुल कडफ़ाइसिस ने पाँच विभिन्न क़बायली समुदायों को अपने कुई शांग अथवा कुषाण समुदाय की अध्यक्षता में संगठित किया और वह भारत की ओर बढ़ा जहाँ उसने क़ाबुल और कश्मीर में अपनी सत्ता स्थापित कर दी। उसके प्रारम्भिक सिक्कों पर मुख भाग पर अन्तिम यूनानी राजा हर्मियस की आकृति है और पृष्ठ भाग पर उसकी अपनी। इसका अर्थ यह हुआ कि वह पहले यूनानी राजा हर्मियस के अधीन था। बाद के सिक्कों में वह अपने को 'महाराजाधिराज' कहता है। उसकी मृत्यु लगभग 64 ई. में हुई। उसके सिक्के रोम के सम्राटों के सिक्कों से बहुत मिलते जुलते हैं।
  • कुजुल कडफ़ाइसिस के सिक्के भी मिले हैं। कुजुल कडाइफ़स के सिक्के इन्डो ग्रीक राजा 'हरमेअस' के सिक्कों का परिवर्तित रूप में मिले हैं । हरमेअस (90-70 ई पू (Hermaeus Soter "the Saviour") ने क़ाबुल अफ़ग़ानिस्तान क्षेत्र में अपनी राजधानी रखी और हिन्दूकुश पर शासन किया । इसके सिक़्क़ों की नक़ल अनेक राजाओं ने की।
  • राजा कुजुल कुषाण ने किस प्रकार धीरे-धीरे अपनी शक्ति का विकास किया, यह बात उसके उन सिक्कों के द्वारा भली-भाँति प्रगट हो जाती है, जो क़ाबुलभारत के उत्तर-पश्चिमी कोने से अच्छी बड़ी संख्या में उपलब्ध हुए हैं। उसके कुछ सिक्के ऐसे हैं, जिनके एक ओर हेरमय अंकित है, और दूसरी ओर इस राजा का नाम। हेरमय या हरमाओस यवन राजा था, जो क़ाबुल के प्रदेश पर शासन करता था। एक ही सिक्के पर यवन राजा हेरमय और कुजुल कुषाण दोनों का नाम होने से इतिहासकारों ने यह परिणाम निकाला है कि प्रारम्भ में युइशि आक्रान्ताओं ने क़ाबुल के प्रदेश से से यवन राजवंश का अन्त ही नहीं किया था, वे केवल उनसे अधीनता स्वीकृत कराकर ही संतुष्ट हो गए थे। कुषाण राज्य के क़ाबुल के प्रदेश से इस प्रकार के भी सिक्के मिले हैं, जिन पर केवल 'कुजुल' का नाम है, यवनराज हेरमय का नहीं। इससे सूचित होता है, कि बाद में इस प्रदेश से यवन शासन का अन्त हो गया था।
  • इसी समय पार्थियन लोग भी उत्तर-पश्चिमी भारत में अपनी शक्ति का विस्तार कर रहे थे, और पूर्वी तथा पश्चिमी गान्धार में उन्होंने अपना शासन स्थापित कर लिया था। इस प्रदेश का पार्थियन राजा 'गुदफ़र' (गोन्दोफ़ैरस) था, पर उसके उत्तराधिकारी पार्थियन राजा अधिक शक्तिशाली नहीं थे। उनकी निर्बलता से लाभ उठाकर राजा कुषाण ने पार्थियन लोगों के भारतीय राज्य पर आक्रमण कर दिया, और उसके अनेक प्रदेशों को जीतकर अपने अधीन कर लिया। यद्यपि कुछ निर्बल पार्थियन राजा गुदफ़र के बाद भी पश्चिमी पंजाब के कतिपय प्रदेशो पर शासन करते रहे, पर इस समय उत्तर-पश्चिमी भारत की राजशक्ति कुषाणों के हाथ में चली गई थी।
  • राजा कुजुल कुषाण के शुरू के सिक्के जो क़ाबुल के प्रदेश में मिले हैं, उनमें उसके नाम के साथ न राजा विशेषण है, और न कोई ऐसा विशेषण जो उसकी प्रबल शक्ति का सूचक हो। पर बाद के जो सिक्के तक्षशिला में मिले हैं, उनमें उसका नाम इस प्रकार अंकित है -

महरजस रजतिरजस खुषणस यवुगस और महरयस रयरयस देवपुत्रस कयुल कर कफ़स आदि।

  • इन सिक्कों के अनुशीलन से इस बात में कोई सन्देह नहीं रह जाता कि क़ाबुल, कन्धार, उत्तर-पश्चिमी पंजाब आदि को पार्थियन राजाओं से जीत लेने पर कुषाण राजा की स्थिति बहुत ऊँची हो गई थी, और वह महाराज, राजाधिराज आदि उपाधियों से विभूषित हो गया था। उसके नाम के साथ देवपुत्र विशेषण से यह भी सूचित होता है कि भारत के सम्पर्क में आकर उसने बौद्ध धर्म को स्वीकृत कर लिया था। उसके कुछ सिक्को पर उसके नाम के साथ ध्रमथिद विशेषण भी प्रयुक्त हुआ है, जो धर्मस्थल का अपभ्रंश है।
  • कुजुल कुषाण ने सुदीर्घ समय तक राज्य किया। उसकी मृत्यु अस्सी साल की आयु में हुई थी। इसीलिए वह अपने शासनकाल में एक छोटे से राजा से उन्नति करता हुआ एक विशाल साम्राज्य का स्वामी हो सका था। इस राजा के शासन के समय के सम्बन्ध में भी इतिहासकारों में अनेक मत हैं।

{{#icon: Redirect-01.gif|ध्यान दें}} देखें राबाटक लेख


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख