जहँ तहँ गईं सकल तब: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
प्रभा तिवारी (talk | contribs) ('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
प्रभा तिवारी (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 29: | Line 29: | ||
|टिप्पणियाँ = | |टिप्पणियाँ = | ||
}} | }} | ||
;श्री सीता-त्रिजटा संवाद | |||
{{poemopen}} | {{poemopen}} | ||
<poem> | <poem> |
Latest revision as of 12:32, 10 June 2016
जहँ तहँ गईं सकल तब
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, दोहा, छंद और सोरठा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | सुन्दरकाण्ड |
- श्री सीता-त्रिजटा संवाद
जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच। |
- भावार्थ
तब (इसके बाद) वे सब जहाँ-तहाँ चली गईं। सीताजी मन में सोच करने लगीं कि एक महीना बीत जाने पर नीच राक्षस रावण मुझे मारेगा॥11॥
left|30px|link=यह सपना मैं कहउँ पुकारी|पीछे जाएँ | जहँ तहँ गईं सकल तब | right|30px|link=त्रिजटा सन बोलीं कर जोरी|आगे जाएँ |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख