एक बार हर मंदिर: Difference between revisions

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एक दिन मैं [[शिव|शिव जी]] के मंदिर में शिवनाम जप रहा था। उसी समय [[गुरु जी|गुरुजी]] वहाँ आए, पर अभिमान के मारे मैंने उठकर उनको प्रणाम नहीं किया॥106 (क)॥  
एक दिन मैं [[शिव|शिव जी]] के मंदिर में शिवनाम जप रहा था। उसी समय [[गुरु|गुरुजी]] वहाँ आए, पर अभिमान के मारे मैंने उठकर उनको प्रणाम नहीं किया॥106 (क)॥  
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'''दोहा'''- मात्रिक अर्द्धसम [[छंद]] है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।  
'''दोहा'''- मात्रिक अर्द्धसम [[छंद]] है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।  

Latest revision as of 06:07, 10 July 2016

एक बार हर मंदिर
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड उत्तरकाण्ड
सभी (7) काण्ड क्रमश: बालकाण्ड‎, अयोध्या काण्ड‎, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड‎, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड‎, उत्तरकाण्ड
दोहा

एक बार हर मंदिर जपत रहेउँ सिव नाम।
गुर आयउ अभिमान तें उठि नहिं कीन्ह प्रनाम॥106 क॥

भावार्थ

एक दिन मैं शिव जी के मंदिर में शिवनाम जप रहा था। उसी समय गुरुजी वहाँ आए, पर अभिमान के मारे मैंने उठकर उनको प्रणाम नहीं किया॥106 (क)॥


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दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-525

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