अति बिचित्र रघुपति: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
m (गोविन्द राम (Talk) के संपादनों को हटाकर [[User:सपना वर्मा|सपना व...) |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 29: | Line 29: | ||
|टिप्पणियाँ = | |टिप्पणियाँ = | ||
}} | }} | ||
{{poemopen}} | {{poemopen}} | ||
<poem> | <poem> |
Latest revision as of 07:06, 26 July 2016
अति बिचित्र रघुपति
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
अति बिचित्र रघुपति चरित जानहिं परम सुजान। |
- भावार्थ-
रघुनाथ का चरित्र बड़ा ही विचित्र है, उसको पहुँचे हुए ज्ञानीजन ही जानते हैं। जो मंदबुद्धि हैं, वे तो विशेष रूप से मोह के वश होकर हृदय में कुछ दूसरी ही बात समझ बैठते हैं॥ 49॥
left|30px|link=बिरह बिकल नर इव रघुराई|पीछे जाएँ | अति बिचित्र रघुपति | right|30px|link=संभु समय तेहि रामहि देखा|आगे जाएँ |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख