बिनती करि मुनि नाइ: Difference between revisions
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रामचरितमानस तृतीय सोपान (अरण्य काण्ड) : श्रीसीता-अनसूया मिलन
बिनती करि मुनि नाइ
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अरण्यकाण्ड |
बिनती करि मुनि नाइ सिरु कह कर जोरि बहोरि। |
- भावार्थ
मुनि ने (इस प्रकार) विनती करके और फिर सिर नवाकर, हाथ जोड़कर कहा- हे नाथ! मेरी बुद्धि आपके चरण कमलों को कभी न छोड़े॥4॥
left|30px|link=पठंति ये स्तवं इदं|पीछे जाएँ | बिनती करि मुनि नाइ | right|30px|link=अनुसुइया के पद गहि सीता|आगे जाएँ |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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