जीवनमुक्त ब्रह्मपर चरित: Difference between revisions

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<h4 style="text-align:center;">रामचरितमानस सप्तम सोपान (उत्तर काण्ड) : श्रीरामजी का प्रजा को उपदेश </h4>
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Latest revision as of 14:49, 28 July 2016

रामचरितमानस सप्तम सोपान (उत्तर काण्ड) : श्रीरामजी का प्रजा को उपदेश

जीवनमुक्त ब्रह्मपर चरित
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड उत्तरकाण्ड
दोहा

जीवनमुक्त ब्रह्मपर चरित सुनहिं तजि ध्यान।
जे हरि कथाँ न करहिं रति तिन्ह के हिय पाषान॥42॥

भावार्थ

सनकादि मुनि जैसे जीवन्मुक्त और ब्रह्मनिष्ठ पुरुष भी ध्यान (ब्रह्म समाधि) छोड़कर श्री रामजी के चरित्र सुनते हैं। यह जानकर भी जो श्री हरि की कथा से प्रेम नहीं करते, उनके हृदय (सचमुच ही) पत्थर (के समान) हैं॥42॥


left|30px|link=सनकादिक नारदहि सराहहिं|पीछे जाएँ जीवनमुक्त ब्रह्मपर चरित right|30px|link=एक बार रघुनाथ बोलाए|आगे जाएँ

दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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