सिव बिरंचि कहुँ मोहइ को: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
No edit summary
 
(3 intermediate revisions by 2 users not shown)
Line 1: Line 1:
<h4 style="text-align:center;">रामचरितमानस सप्तम सोपान (उत्तर काण्ड) : गरुड़-भुशुण्डि संवाद</h4>
{{सूचना बक्सा पुस्तक
{{सूचना बक्सा पुस्तक
|चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg
|चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg
Line 40: Line 41:
;भावार्थ
;भावार्थ
यह माया जब [[शिव |शिव जी]] और [[ब्रह्मा|ब्रह्मा जी]] को भी मोह लेती है, तब दूसरा बेचारा क्या चीज है? जी में ऐसा जानकर ही [[मुनि]] लोग उस माया के स्वामी भगवान का भजन करते हैं॥62 (ख)॥  
यह माया जब [[शिव |शिव जी]] और [[ब्रह्मा|ब्रह्मा जी]] को भी मोह लेती है, तब दूसरा बेचारा क्या चीज है? जी में ऐसा जानकर ही [[मुनि]] लोग उस माया के स्वामी भगवान का भजन करते हैं॥62 (ख)॥  
{{लेख क्रम4| पिछला=ग्यानी भगत सिरोमनि |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=सिव बिरंचि कहुँ मोहइ को}}
{{लेख क्रम4| पिछला=ग्यानी भगत सिरोमनि |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=गयउ गरुड़ जहँ बसइ भुसुण्डा}}
   
   
'''दोहा'''- मात्रिक अर्द्धसम [[छंद]] है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।  
'''दोहा'''- मात्रिक अर्द्धसम [[छंद]] है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।  
Line 46: Line 47:
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==   
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==   
पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-502                                                    
पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-503                                                    
<references/>  
<references/>  
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==

Latest revision as of 14:50, 28 July 2016

रामचरितमानस सप्तम सोपान (उत्तर काण्ड) : गरुड़-भुशुण्डि संवाद

सिव बिरंचि कहुँ मोहइ को
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड उत्तरकाण्ड
सभी (7) काण्ड क्रमश: बालकाण्ड‎, अयोध्या काण्ड‎, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड‎, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड‎, उत्तरकाण्ड
दोहा

सिव बिरंचि कहुँ मोहइ को है बपुरा आन।
अस जियँ जानि भजहिं मुनि माया पति भगवान॥62 ख॥

भावार्थ

यह माया जब शिव जी और ब्रह्मा जी को भी मोह लेती है, तब दूसरा बेचारा क्या चीज है? जी में ऐसा जानकर ही मुनि लोग उस माया के स्वामी भगवान का भजन करते हैं॥62 (ख)॥


left|30px|link=ग्यानी भगत सिरोमनि|पीछे जाएँ सिव बिरंचि कहुँ मोहइ को right|30px|link=गयउ गरुड़ जहँ बसइ भुसुण्डा|आगे जाएँ

दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-503

संबंधित लेख