महाराणा प्रताप की मृत्यु: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
(2 intermediate revisions by the same user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
[[अकबर]] के युद्ध बन्द कर देने से महाराणा प्रताप को बड़ा दुःख हुआ। कठोर उद्यम और परिश्रम सहन कर उन्होंने हज़ारों कष्ट उठाये थे, परन्तु शत्रुओं से चित्तौड़ का उद्धार न कर सके। वे एकाग्रचित्त से चित्तौड़ के उस ऊँचे परकोटे और जयस्तम्भों को निहारा करते थे और अनेक विचार उठकर हृदय को डाँवाडोल कर देते थे। ऐसे में ही एक दिन प्रताप एक साधारण कुटी में लेटे हुए काल की कठोर आज्ञा की प्रतीक्षा कर रहे थे। उनके चारों तरफ़ उनके विश्वासी सरदार बैठे हुए थे। तभी प्रताप ने एक लम्बी साँस ली। सलूम्बर के सामंन्त ने कातर होकर पूछा | {{महाराणा प्रताप विषय सूची}} | ||
{{सूचना बक्सा ऐतिहासिक शासक | |||
|चित्र=Maharana-Pratap-1.png | |||
|चित्र का नाम=महाराणा प्रताप | |||
|पूरा नाम=महाराणा प्रताप | |||
|अन्य नाम= | |||
|जन्म=[[9 मई]], 1540 ई. | |||
|जन्म भूमि=[[कुम्भलगढ़]], [[राजस्थान]] | |||
|मृत्यु तिथि=[[29 जनवरी]], 1597 ई. | |||
|मृत्यु स्थान= | |||
|पिता/माता=[[पिता]]- [[महाराणा उदयसिंह]], [[माता]]- रानी जीवत कँवर | |||
|पति/पत्नी= | |||
|संतान= | |||
|उपाधि= | |||
|राज्य सीमा=[[मेवाड़]] | |||
|शासन काल=1568-1597 ई. | |||
|शासन अवधि=29 वर्ष | |||
|धार्मिक मान्यता=[[हिंदू धर्म]] | |||
|राज्याभिषेक= | |||
|युद्ध=[[हल्दीघाटी का युद्ध]] | |||
|प्रसिद्धि= | |||
|निर्माण= | |||
|सुधार-परिवर्तन= | |||
|राजधानी=[[उदयपुर]] | |||
|पूर्वाधिकारी=[[महाराणा उदयसिंह]] | |||
|उत्तराधिकारी=[[राणा अमर सिंह]] | |||
|राजघराना=[[राजपूताना]] | |||
|वंश= [[सिसोदिया राजवंश]] | |||
|स्मारक= | |||
|मक़बरा= | |||
|संबंधित लेख=[[राजस्थान का इतिहास]], [[राजपूत साम्राज्य]], [[राजपूत काल]], [[महाराणा उदयसिंह]], [[सिसोदिया राजवंश]], [[उदयपुर]], [[मेवाड़]], [[अकबर]], [[मानसिंह]]। | |||
|शीर्षक 1= | |||
|पाठ 1= | |||
|शीर्षक 2= | |||
|पाठ 2= | |||
|अन्य जानकारी= | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन= | |||
}} | |||
[[मुग़ल]] [[अकबर|बादशाह अकबर]] के युद्ध बन्द कर देने से [[महाराणा प्रताप]] को बड़ा दुःख हुआ। कठोर उद्यम और परिश्रम सहन कर उन्होंने हज़ारों कष्ट उठाये थे, परन्तु शत्रुओं से [[चित्तौड़]] का उद्धार न कर सके। वे एकाग्रचित्त से चित्तौड़ के उस ऊँचे परकोटे और जयस्तम्भों को निहारा करते थे और अनेक विचार उठकर हृदय को डाँवाडोल कर देते थे। | |||
==प्रताप का अपने सरदारों से कथन== | |||
ऐसे में ही एक दिन प्रताप एक साधारण कुटी में लेटे हुए काल की कठोर आज्ञा की प्रतीक्षा कर रहे थे। उनके चारों तरफ़ उनके विश्वासी सरदार बैठे हुए थे। तभी प्रताप ने एक लम्बी साँस ली। सलूम्बर के सामंन्त ने कातर होकर पूछा- "महाराज! ऐसे कौन से दारुण दुःख ने आपको दुःखित कर रखा है और अन्तिम समय में आपकी शान्ति को भंग कर रहा है।" प्रताप का उत्तर था- "सरदार जी! अभी तक प्राण अटके हुए हैं, केवल एक ही आश्वासन की वाणी सुनकर यह अभी सुखपूर्वक देह को छोड़ जायेगा। यह वाणी आप ही के पास है। आप सब लोग मेरे सम्मुख प्रतिज्ञा करें कि जीवित रहते अपनी मातृभूमि किसी भी भाँति तुर्कों के हाथों में नहीं सौंपेंगे। पुत्र [[राणा अमर सिंह]] हमारे पूर्वजों के गौरव की रक्षा नहीं कर सकेगा। वह मुग़लों के ग्रास से मातृभूमि को नहीं बचा सकेगा। वह विलासी है, वह कष्ट नहीं झेल सकेगा।" | |||
==राणा की मृत्यु== | ==राणा की मृत्यु== | ||
राणा प्रताप ने अपने सरदारों को | [[राणा प्रताप]] ने अपने सरदारों को अमर सिंह की बातें सुनाते हुए कहा- "एक दिन इस नीची कुटिया में प्रवेश करते समय अमर सिंह अपने सिर से पगड़ी उतारना भूल गया था। द्वार के एक [[बाँस]] से टकराकर उसकी पगड़ी नीचे गिर गई। दूसरे दिन उसने मुझसे कहा कि यहाँ पर बड़े-बड़े महल बनवा दीजिए।" कुछ क्षण चुप रहकर प्रताप ने कहा- "इन कुटियों के स्थान पर बड़े-बड़े रमणीक महल बनेंगे, [[मेवाड़]] की दुरावस्था भूलकर अमर सिंह यहाँ पर अनेक प्रकार के भोग-विलास करेगा। अमर के विलासी होने पर मातृभूमि की वह स्वाधीनता जाती रहेगी, जिसके लिए मैंने बराबर पच्चीस वर्ष तक कष्ट उठाए, सभी भाँति की सुख-सुविधाओं को छोड़ा। वह इस गौरव की रक्षा न कर सकेगा और तुम लोग-तुम सब उसके अनर्थकारी उदाहरण का अनुसरण करके [[मेवाड़]] के पवित्र यश में कलंक लगा लोगे।" | ||
====सरदारों का राणा से वचन==== | |||
प्रताप का वाक्य पूरा होते ही समस्त सरदारों ने उनसे कहा- "महाराज! हम लोग [[बप्पा रावल]] के पवित्र सिंहासन की शपथ करते हैं कि जब तक हम में से एक भी जीवित रहेगा, उस दिन तक कोई [[तुर्क]] मेवाड़ की भूमि पर अधिकार न कर सकेगा। जब तक मेवाड़ भूमि की पूर्व-स्वाधीनता का पूरी तरह उद्धार हो नहीं जायेगा, तब तक हम लोग इन्हीं कुटियों में निवास करेंगे।" | |||
इस प्रकार एक ऐसे [[राजपूत]] के जीवन का अवसान हो गया, जिसकी स्मृति आज भी प्रत्येक [[सिसोदिया वंश|सिसोदिया]] को प्रेरित कर रही है। इस संसार में जितने दिनों तक वीरता का आदर रहेगा, उतने ही दिन तक राणा प्रताप की वीरता, माहात्म्य और गौरव संसार के नेत्रों के सामने अचल भाव से विराजमान रहेगा। उतने दिन तक वह 'हल्दीघाट मेवाड़ की थर्मोपोली' और उसके अंतर्गत देवीर क्षेत्र 'मेवाड़ का मैराथन' नाम से पुकारा जाया करेगा। | अपने विश्वासी सरदारों से इस संतोषजनक वाणी को सुनते ही महाराणा प्रताप के प्राण निकल गए। यह [[29 जनवरी]], 1597 ई. का दिन था।<ref>कहीं-कहीं प्रताप के स्वर्गवास की [[तिथि]] [[19 जनवरी]], 1597 ई. कही गई है।</ref> | ||
इस प्रकार एक ऐसे [[राजपूत]] के जीवन का अवसान हो गया, जिसकी स्मृति आज भी प्रत्येक [[सिसोदिया वंश|सिसोदिया]] को प्रेरित कर रही है। इस संसार में जितने दिनों तक वीरता का आदर रहेगा, उतने ही दिन तक [[राणा प्रताप]] की वीरता, माहात्म्य और गौरव संसार के नेत्रों के सामने अचल भाव से विराजमान रहेगा। उतने दिन तक वह 'हल्दीघाट मेवाड़ की थर्मोपोली' और उसके अंतर्गत देवीर क्षेत्र 'मेवाड़ का मैराथन' नाम से पुकारा जाया करेगा। | |||
==पंडित नरेन्द्र मिश्र की कविता== | |||
<center> | |||
{| class="bharattable" border="1" | {| class="bharattable" border="1" | ||
|- | |- | ||
! महाराणा प्रताप पर एक कविता | ! महाराणा प्रताप पर एक कविता | ||
|- | |- | ||
| <poem>राणा प्रताप इस भरत भूमि के, मुक्ति मंत्र का गायक है। | |<poem>राणा प्रताप इस भरत भूमि के, मुक्ति मंत्र का गायक है। | ||
राणा प्रताप आज़ादी का, अपराजित काल विधायक है।। | राणा प्रताप आज़ादी का, अपराजित काल विधायक है।। | ||
वह अजर अमरता का गौरव, वह मानवता का विजय तूर्य। | वह अजर अमरता का गौरव, वह मानवता का विजय तूर्य। | ||
Line 29: | Line 75: | ||
</poem> | </poem> | ||
|} | |} | ||
</center> | |||
{{लेख क्रम2 |पिछला=महाराणा प्रताप | {{लेख क्रम2 |पिछला=महाराणा प्रताप द्वारा दुर्गों पर अधिकार|पिछला शीर्षक=महाराणा प्रताप द्वारा दुर्गों पर अधिकार|अगला शीर्षक= वीरता के परिचायक महाराणा प्रताप|अगला= वीरता के परिचायक महाराणा प्रताप}} | ||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक3|पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक3|पूर्णता= |शोध= }} |
Latest revision as of 13:35, 31 December 2016
महाराणा प्रताप की मृत्यु
| |
पूरा नाम | महाराणा प्रताप |
जन्म | 9 मई, 1540 ई. |
जन्म भूमि | कुम्भलगढ़, राजस्थान |
मृत्यु तिथि | 29 जनवरी, 1597 ई. |
पिता/माता | पिता- महाराणा उदयसिंह, माता- रानी जीवत कँवर |
राज्य सीमा | मेवाड़ |
शासन काल | 1568-1597 ई. |
शा. अवधि | 29 वर्ष |
धार्मिक मान्यता | हिंदू धर्म |
युद्ध | हल्दीघाटी का युद्ध |
राजधानी | उदयपुर |
पूर्वाधिकारी | महाराणा उदयसिंह |
उत्तराधिकारी | राणा अमर सिंह |
राजघराना | राजपूताना |
वंश | सिसोदिया राजवंश |
संबंधित लेख | राजस्थान का इतिहास, राजपूत साम्राज्य, राजपूत काल, महाराणा उदयसिंह, सिसोदिया राजवंश, उदयपुर, मेवाड़, अकबर, मानसिंह। |
मुग़ल बादशाह अकबर के युद्ध बन्द कर देने से महाराणा प्रताप को बड़ा दुःख हुआ। कठोर उद्यम और परिश्रम सहन कर उन्होंने हज़ारों कष्ट उठाये थे, परन्तु शत्रुओं से चित्तौड़ का उद्धार न कर सके। वे एकाग्रचित्त से चित्तौड़ के उस ऊँचे परकोटे और जयस्तम्भों को निहारा करते थे और अनेक विचार उठकर हृदय को डाँवाडोल कर देते थे।
प्रताप का अपने सरदारों से कथन
ऐसे में ही एक दिन प्रताप एक साधारण कुटी में लेटे हुए काल की कठोर आज्ञा की प्रतीक्षा कर रहे थे। उनके चारों तरफ़ उनके विश्वासी सरदार बैठे हुए थे। तभी प्रताप ने एक लम्बी साँस ली। सलूम्बर के सामंन्त ने कातर होकर पूछा- "महाराज! ऐसे कौन से दारुण दुःख ने आपको दुःखित कर रखा है और अन्तिम समय में आपकी शान्ति को भंग कर रहा है।" प्रताप का उत्तर था- "सरदार जी! अभी तक प्राण अटके हुए हैं, केवल एक ही आश्वासन की वाणी सुनकर यह अभी सुखपूर्वक देह को छोड़ जायेगा। यह वाणी आप ही के पास है। आप सब लोग मेरे सम्मुख प्रतिज्ञा करें कि जीवित रहते अपनी मातृभूमि किसी भी भाँति तुर्कों के हाथों में नहीं सौंपेंगे। पुत्र राणा अमर सिंह हमारे पूर्वजों के गौरव की रक्षा नहीं कर सकेगा। वह मुग़लों के ग्रास से मातृभूमि को नहीं बचा सकेगा। वह विलासी है, वह कष्ट नहीं झेल सकेगा।"
राणा की मृत्यु
राणा प्रताप ने अपने सरदारों को अमर सिंह की बातें सुनाते हुए कहा- "एक दिन इस नीची कुटिया में प्रवेश करते समय अमर सिंह अपने सिर से पगड़ी उतारना भूल गया था। द्वार के एक बाँस से टकराकर उसकी पगड़ी नीचे गिर गई। दूसरे दिन उसने मुझसे कहा कि यहाँ पर बड़े-बड़े महल बनवा दीजिए।" कुछ क्षण चुप रहकर प्रताप ने कहा- "इन कुटियों के स्थान पर बड़े-बड़े रमणीक महल बनेंगे, मेवाड़ की दुरावस्था भूलकर अमर सिंह यहाँ पर अनेक प्रकार के भोग-विलास करेगा। अमर के विलासी होने पर मातृभूमि की वह स्वाधीनता जाती रहेगी, जिसके लिए मैंने बराबर पच्चीस वर्ष तक कष्ट उठाए, सभी भाँति की सुख-सुविधाओं को छोड़ा। वह इस गौरव की रक्षा न कर सकेगा और तुम लोग-तुम सब उसके अनर्थकारी उदाहरण का अनुसरण करके मेवाड़ के पवित्र यश में कलंक लगा लोगे।"
सरदारों का राणा से वचन
प्रताप का वाक्य पूरा होते ही समस्त सरदारों ने उनसे कहा- "महाराज! हम लोग बप्पा रावल के पवित्र सिंहासन की शपथ करते हैं कि जब तक हम में से एक भी जीवित रहेगा, उस दिन तक कोई तुर्क मेवाड़ की भूमि पर अधिकार न कर सकेगा। जब तक मेवाड़ भूमि की पूर्व-स्वाधीनता का पूरी तरह उद्धार हो नहीं जायेगा, तब तक हम लोग इन्हीं कुटियों में निवास करेंगे।"
अपने विश्वासी सरदारों से इस संतोषजनक वाणी को सुनते ही महाराणा प्रताप के प्राण निकल गए। यह 29 जनवरी, 1597 ई. का दिन था।[1]
इस प्रकार एक ऐसे राजपूत के जीवन का अवसान हो गया, जिसकी स्मृति आज भी प्रत्येक सिसोदिया को प्रेरित कर रही है। इस संसार में जितने दिनों तक वीरता का आदर रहेगा, उतने ही दिन तक राणा प्रताप की वीरता, माहात्म्य और गौरव संसार के नेत्रों के सामने अचल भाव से विराजमान रहेगा। उतने दिन तक वह 'हल्दीघाट मेवाड़ की थर्मोपोली' और उसके अंतर्गत देवीर क्षेत्र 'मेवाड़ का मैराथन' नाम से पुकारा जाया करेगा।
पंडित नरेन्द्र मिश्र की कविता
महाराणा प्रताप पर एक कविता |
---|
राणा प्रताप इस भरत भूमि के, मुक्ति मंत्र का गायक है। |
left|30px|link=महाराणा प्रताप द्वारा दुर्गों पर अधिकार|पीछे जाएँ | महाराणा प्रताप की मृत्यु | right|30px|link=वीरता के परिचायक महाराणा प्रताप|आगे जाएँ |
|
|
|
|
|