कुंभकरन अस बंधु मम: Difference between revisions

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(वह बोला - अरे मूर्ख!) [[कुंभकर्ण]]-जैसा मेरा भाई है, [[इंद्र]] का शत्रु सुप्रसिद्ध [[मेघनाद]] मेरा पुत्र है! और मेरा पराक्रम तो तूने सुना ही नहीं कि मैंने संपूर्ण जड़-चेतन जगत् को जीत लिया है!॥ 27॥





Latest revision as of 13:46, 30 June 2017

कुंभकरन अस बंधु मम
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक 'रामचरितमानस'
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि।
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली दोहा, चौपाई और सोरठा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड लंकाकाण्ड
दोहा

कुंभकरन अस बंधु मम सुत प्रसिद्ध सक्रारि।
मोर पराक्रम नहिं सुनेहि जितेऊँ चराचर झारि॥ 27॥

भावार्थ

(वह बोला - अरे मूर्ख!) कुंभकर्ण-जैसा मेरा भाई है, इंद्र का शत्रु सुप्रसिद्ध मेघनाद मेरा पुत्र है! और मेरा पराक्रम तो तूने सुना ही नहीं कि मैंने संपूर्ण जड़-चेतन जगत् को जीत लिया है!॥ 27॥



left|30px|link=तब कि चलिहि अस गाल तुम्हारा|पीछे जाएँ कुंभकरन अस बंधु मम right|30px|link=सठ साखामृग जोरि सहाई|आगे जाएँ


दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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