मातु पिता गुरु स्वामि: Difference between revisions

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;चौपाई
;दोहा
बोले बचनु राम नय नागर। सील सनेह सरल सुख सागर॥
मातु पिता गुरु स्वामि सिख सिर धरि करहिं सुभायँ।
तात प्रेम बस जनि कदराहू। समुझि हृदयँ परिनाम उछाहू॥4॥</poem>
लहेउ लाभु तिन्ह जनम कर नतरु जनमु जग जायँ॥70॥</poem>
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;भावार्थ
;भावार्थ
तब नीति में निपुण और शील, स्नेह, सरलता और सुख के समुद्र श्री [[रामचन्द्र|रामचन्द्रजी]] वचन बोले- हे तात! परिणाम में होने वाले आनंद को हृदय में समझकर तुम प्रेमवश अधीर मत होओ॥4॥
जो लोग माता, पिता, गुरु और स्वामी की शिक्षा को स्वाभाविक ही सिर चढ़ाकर उसका पालन करते हैं, उन्होंने ही जन्म लेने का लाभ पाया है, नहीं तो जगत् में जन्म व्यर्थ ही है॥70॥


{{लेख क्रम4| पिछला= बोले बचनु राम नय नागर|मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला= मातु पिता गुरु स्वामि}}
{{लेख क्रम4| पिछला= बोले बचनु राम नय नागर|मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला= अस जियँ जानि सुनहु सिख भाई}}




 
'''दोहा''' - मात्रिक अर्द्धसम [[छंद]] है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
'''चौपाई'''- मात्रिक सम [[छन्द]] का भेद है। [[प्राकृत]] तथा [[अपभ्रंश]] के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। [[तुलसीदास|गोस्वामी तुलसीदास]] ने [[रामचरितमानस]] में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।





Latest revision as of 13:48, 30 June 2017

मातु पिता गुरु स्वामि
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड अयोध्या काण्ड
दोहा

मातु पिता गुरु स्वामि सिख सिर धरि करहिं सुभायँ।
लहेउ लाभु तिन्ह जनम कर नतरु जनमु जग जायँ॥70॥

भावार्थ

जो लोग माता, पिता, गुरु और स्वामी की शिक्षा को स्वाभाविक ही सिर चढ़ाकर उसका पालन करते हैं, उन्होंने ही जन्म लेने का लाभ पाया है, नहीं तो जगत् में जन्म व्यर्थ ही है॥70॥


left|30px|link=बोले बचनु राम नय नागर|पीछे जाएँ मातु पिता गुरु स्वामि right|30px|link=अस जियँ जानि सुनहु सिख भाई|आगे जाएँ


दोहा - मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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