उठे लखनु निसि बिगत: Difference between revisions

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रात बीतने पर, मुर्गे का शब्द कानों से सुनकर लक्ष्मण उठे। जगत के स्वामी सुजान राम भी गुरु से पहले ही जाग गए॥ 226॥
रात बीतने पर, मुर्गे का शब्द कानों से सुनकर लक्ष्मण उठे। जगत् के स्वामी सुजान राम भी गुरु से पहले ही जाग गए॥ 226॥


{{लेख क्रम4| पिछला=चापत चरन लखनु उर लाएँ |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=सकल सौच करि जाइ नहाए}}
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Latest revision as of 13:48, 30 June 2017

उठे लखनु निसि बिगत
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
भाषा अवधी भाषा
शैली सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड बालकाण्ड
दोहा

उठे लखनु निसि बिगत सुनि अरुनसिखा धुनि कान।
गुर तें पहिलेहिं जगतपति जागे रामु सुजान॥ 226॥

भावार्थ-

रात बीतने पर, मुर्गे का शब्द कानों से सुनकर लक्ष्मण उठे। जगत् के स्वामी सुजान राम भी गुरु से पहले ही जाग गए॥ 226॥


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दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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