रामचरित राकेस कर: Difference between revisions
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Latest revision as of 11:24, 1 August 2017
रामचरित राकेस कर
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
रामचरित राकेस कर सरिस सुखद सब काहु। |
- भावार्थ-
रामचरित्र पूर्णिमा के चंद्रमा की किरणों के समान सभी को सुख देने वाले हैं, परंतु सज्जनरूपी कुमुदिनी और चकोर के चित्त के लिए तो विशेष हितकारी और महान् लाभदायक हैं॥ 32(ख)॥
left|30px|link=कुपथ कुतरक कुचालि|पीछे जाएँ | रामचरित राकेस कर | right|30px|link=कीन्हि प्रस्न जेहि भाँति भवानी|आगे जाएँ |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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