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शुंग वंश [[भारत]] का एक शासकीय वंश था जिसने मौर्य राजवंश के बाद उत्तर [[भारत]] में 187 ई.पू. से 75 ई.पू. तक 112 वर्षों तक शासन किया। [[मौर्य साम्राज्य]] के पतन के उपरान्त इसके मध्य भाग में सत्ता [[शुंग वंश]] के हाथ में आ गई। इस वंश की उत्पत्ति के बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं है। शुंग [[उज्जैन]] प्रदेश के थे, जहाँ इनके पूर्वज मौर्यों की सेवा में थे। शुंगवंशीय पुष्यमित्र अन्तिम मौर्य सम्राट [[बृहद्रथ]] का सेनापति था। उसने अपने स्वामी की हत्या करके सत्ता प्राप्त की थी। इस नवोदित राज्य में मध्य गंगा की घाटी एवं [[चम्बल नदी]] तक का प्रदेश सम्मिलित था। [[पाटलिपुत्र]], [[अयोध्या]], [[विदिशा]] आदि इसके महत्वपूर्ण नगर थे। [[दिव्यावदान]] एवं तारनाथ के अनुसार जलंधर और साकल नगर भी इसमें सम्मिलित थे। [[पुष्यमित्र शुंग]] को [[यवन]] आक्रमणों का भी सामना करना पड़ा।  
शुंग वंश [[भारत]] का एक शासकीय वंश था जिसने मौर्य राजवंश के बाद उत्तर [[भारत]] में 187 ई.पू. से 75 ई.पू. तक 112 वर्षों तक शासन किया। [[मौर्य साम्राज्य]] के पतन के उपरान्त इसके मध्य भाग में सत्ता [[शुंग वंश]] के हाथ में आ गई। इस वंश की उत्पत्ति के बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं है। शुंग [[उज्जैन]] प्रदेश के थे, जहाँ इनके पूर्वज मौर्यों की सेवा में थे। शुंगवंशीय पुष्यमित्र अन्तिम मौर्य सम्राट [[बृहद्रथ मौर्य|बृहद्रथ]] का सेनापति था। उसने अपने स्वामी की हत्या करके सत्ता प्राप्त की थी। इस नवोदित राज्य में मध्य गंगा की घाटी एवं [[चम्बल नदी]] तक का प्रदेश सम्मिलित था। [[पाटलिपुत्र]], [[अयोध्या]], [[विदिशा]] आदि इसके महत्त्वपूर्ण नगर थे। [[दिव्यावदान]] एवं तारनाथ के अनुसार जलंधर और साकल नगर भी इसमें सम्मिलित थे। [[पुष्यमित्र शुंग]] को [[यवन]] आक्रमणों का भी सामना करना पड़ा।  


समकालीन [[पतंजलि]] के महाभाष्य से हमें दो बातों का पता चलता है -
समकालीन [[पतंजलि]] के महाभाष्य से हमें दो बातों का पता चलता है -
#[[पतंजलि]] ने स्वयं [[पुष्यमित्र शुंग]] के लिए [[अश्वमेघ यज्ञ]] कराए।
#[[पतंजलि]] ने स्वयं [[पुष्यमित्र शुंग]] के लिए [[अश्वमेध यज्ञ]] कराए।
#उस समय एक आक्रमण में यवनों ने [[चित्तौड़]] के निकट माध्यमिका नगरी और [[अवध]] में [[साकेत]] का घेरा डाला, किन्तु पुष्यमित्र ने उन्हें पराजित किया।  
#उस समय एक आक्रमण में यवनों ने [[चित्तौड़]] के निकट माध्यमिका नगरी और [[अवध]] में [[साकेत]] का घेरा डाला, किन्तु पुष्यमित्र ने उन्हें पराजित किया।  
*[[गार्गी संहिता]] के युग पुराण में भी लिखा है कि दुष्ट पराक्रमी यवनों ने [[साकेत]], [[पंचाल]] और [[मथुरा]] को जीत लिया।  
*[[गार्गी संहिता]] के युग पुराण में भी लिखा है कि दुष्ट पराक्रमी यवनों ने [[साकेत]], [[पंचाल]] और [[मथुरा]] को जीत लिया।  
*[[कालिदास]] के '[[मालविकाग्निमित्रम्|मालविकाग्निमित्र]]' नाटक में उल्लेख आया है कि [[यवन]] आक्रमण के दौरान एक युद्ध [[सिंधु नदी]] के तट पर हुआ और पुष्यमित्र के पोते और [[अग्निमित्र]] के पुत्र [[वसुमित्र]] ने इस युद्ध में विजय प्राप्त की।  
*[[कालिदास]] के '[[मालविकाग्निमित्रम्|मालविकाग्निमित्र]]' नाटक में उल्लेख आया है कि [[यवन]] आक्रमण के दौरान एक युद्ध [[सिंधु नदी]] के तट पर हुआ और पुष्यमित्र के पोते और [[अग्निमित्र]] के पुत्र [[वसुमित्र]] ने इस युद्ध में विजय प्राप्त की।  
*इतिहासकार [[सिंधु नदी]] की पहचान के सवाल पर एकमत नहीं हैं - इसे राजपूताना की काली सिंधु (जो [[चम्बल नदी|चम्बल]] की सहायक नदी है), दोआब की सिंधु (जो [[यमुना नदी|यमुना]] की सहायक नदी है) या [[पंजाब]] की सिंधु आदि कहा गया है, किन्तु इस नदी को पंजाब की ही सिंधु माना जाना चाहिए, क्योंकि मालविकाग्निमित्र के अनुसार [[विदिशा]] में यह नदी बहुत दूर थी। शायद इस युद्ध का कारण यवनों द्वारा अश्वमेध के घोड़े को पकड़ लिया जाना था। इसमें यवनों को पराजित करके पुष्यमित्र ने यवनों को मगध में प्रविष्ट नहीं होने दिया। अशोक के समय से निषिद्ध यज्ञादि क्रियाएँ, जिनमें पशुबलि दी जाती थी, अब पुष्यमित्र के समय में पुनर्जीवित हो उठी।
*इतिहासकार [[सिंधु नदी]] की पहचान के सवाल पर एकमत नहीं हैं - इसे राजपूताना की काली सिंधु (जो [[चम्बल नदी|चम्बल]] की सहायक नदी है), [[दोआब]] की सिंधु (जो [[यमुना नदी|यमुना]] की सहायक नदी है) या [[पंजाब]] की सिंधु आदि कहा गया है, किन्तु इस नदी को पंजाब की ही सिंधु माना जाना चाहिए, क्योंकि मालविकाग्निमित्र के अनुसार [[विदिशा]] में यह नदी बहुत दूर थी। शायद इस युद्ध का कारण यवनों द्वारा अश्वमेध के घोड़े को पकड़ लिया जाना था। इसमें यवनों को पराजित करके पुष्यमित्र ने यवनों को मगध में प्रविष्ट नहीं होने दिया। अशोक के समय से निषिद्ध यज्ञादि क्रियाएँ, जिनमें पशुबलि दी जाती थी, अब पुष्यमित्र के समय में पुनर्जीवित हो उठी।
*बौद्ध रचनाएँ पुष्यमित्र के प्रति उदार नहीं हैं। वे उसे [[बौद्ध धर्म]] का उत्पीड़क बताती हैं और उनमें ऐसा वर्णन है कि पुष्यमित्र ने बौद्ध विहारों का विनाश करवाया और बौद्ध भिक्षुओं की हत्या करवाई। सम्भव है कुछ बौद्धों ने पुष्यमित्र का विरोध किया हो और राजनीतिक कारणों से पुष्यमित्र ने उनके साथ सख्ती का वर्णन किया हो। यद्यपि शुंगवंशीय राजा ब्राह्मण धर्म के अनुयायी थे, फिर भी उनके राज्य में भरहुत स्तूप का निर्माण और साँची स्तूप की वेदिकाएँ (रेलिंग) बनवाई गईं।
*बौद्ध रचनाएँ पुष्यमित्र के प्रति उदार नहीं हैं। वे उसे [[बौद्ध धर्म]] का उत्पीड़क बताती हैं और उनमें ऐसा वर्णन है कि पुष्यमित्र ने बौद्ध विहारों का विनाश करवाया और बौद्ध भिक्षुओं की हत्या करवाई। सम्भव है कुछ बौद्धों ने पुष्यमित्र का विरोध किया हो और राजनीतिक कारणों से पुष्यमित्र ने उनके साथ सख्ती का वर्णन किया हो। यद्यपि शुंगवंशीय राजा ब्राह्मण धर्म के अनुयायी थे, फिर भी उनके राज्य में भरहुत स्तूप का निर्माण और साँची स्तूप की वेदिकाएँ (रेलिंग) बनवाई गईं।
*पुष्यमित्र शुंग ने लगभग 36 वर्ष तक राज्य किया। उसके बाद उसके उत्तराधिकारियों ने ईसा पूरृव 75 तक राज्य किया। किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि शुंगों का राज्य संकुचित होकर मगध की सीमाओं तक ही रह गया। उनके उत्तराधिकारियों ([[काण्व वंश|काण्व]]) भी ब्राह्मण वंश के थे।
*पुष्यमित्र शुंग ने लगभग 36 वर्ष तक राज्य किया। उसके बाद उसके उत्तराधिकारियों ने ईसा पूरृव 75 तक राज्य किया। किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि शुंगों का राज्य संकुचित होकर मगध की सीमाओं तक ही रह गया। उनके उत्तराधिकारियों ([[काण्व वंश|काण्व]]) भी ब्राह्मण वंश के थे।
   
   
==शुंग वंश के शासक==
==शुंग वंश के शासक==
[[मौर्य वंश]] का अंतिम शासक वृहद्रय था। वृहद्रय को उसके ब्राह्मण सेनापति [[पुष्यमित्र शुंग]] ने ई. पूर्व 185 में मार दिया और इस प्रकार मौर्य वंश का अंत हो गया। पुष्यमित्र ने [[अश्वमेध यज्ञ]] किया था। पुष्यमित्र ने सिंहासन पर बैठकर [[मगध]] पर शुंग वंश के शासन का आरम्भ किया। शुंग वंश का शासन सम्भवतः ई. पू0 185 ई. से पू0 100 तक दृढ़ बना रहा। पुष्यमित्र इस वंश का प्रथम शासक था, उसके पश्चात उसका पुत्र अग्निमित्र, उसका पुत्र वसुमित्र राजा बना। वसुमित्र के पश्चात जो शुंग सम्राट् हुए, उसमें कौत्सीपुत्र भागमद्र, भद्रघोष, भागवत और देवभूति के नाम उल्लेखनीय है। शुंग वंश का अंतिम सम्राट देवहूति था, उसके साथ ही शुंग साम्राज्य समाप्त हो गया था। शुग-वंश के शासक [[वैदिक धर्म]] के मानने वाले थे। इनके समय में भागवत धर्म की विशेष उन्नति हुई। शुंग वंश के शासकों की सूची इस प्रकार है -
[[मौर्य वंश]] का अंतिम शासक वृहद्रय था। वृहद्रय को उसके ब्राह्मण सेनापति [[पुष्यमित्र शुंग]] ने ई. पूर्व 185 में मार दिया और इस प्रकार मौर्य वंश का अंत हो गया। पुष्यमित्र ने [[अश्वमेध यज्ञ]] किया था। पुष्यमित्र ने सिंहासन पर बैठकर [[मगध]] पर शुंग वंश के शासन का आरम्भ किया। शुंग वंश का शासन सम्भवतः ई. पू. 185 ई. से पू. 100 तक दृढ़ बना रहा। पुष्यमित्र इस वंश का प्रथम शासक था, उसके पश्चात् उसका पुत्र अग्निमित्र, उसका पुत्र वसुमित्र राजा बना। वसुमित्र के पश्चात् जो शुंग सम्राट् हुए, उसमें कौत्सीपुत्र भागमद्र, भद्रघोष, भागवत और [[देवभूति]] के नाम उल्लेखनीय है। शुंग वंश का अंतिम सम्राट देवहूति था, उसके साथ ही शुंग साम्राज्य समाप्त हो गया था। शुग-वंश के शासक [[वैदिक धर्म]] के मानने वाले थे। इनके समय में भागवत धर्म की विशेष उन्नति हुई। शुंग वंश के शासकों की सूची इस प्रकार है -


*[[पुष्यमित्र शुंग]] (185 - 149 BCE)
*[[पुष्यमित्र शुंग]] (185 - 149 ई.पू.)
*[[अग्निमित्र]] (149 - 141 BCE)
*[[अग्निमित्र]] (149 - 141 ई.पू.)
*वसुज्येष्ठ (141 - 131 BCE)
*वसुज्येष्ठ (141 - 131 ई.पू.)
*वसुमित्र (131 - 124 BCE)
*वसुमित्र (131 - 124 ई.पू.)
*अन्ध्रक (124 - 122 BCE)
*अन्ध्रक (124 - 122 ई.पू.)
*पुलिन्दक (122 - 119 BCE)
*पुलिन्दक (122 - 119 ई.पू.)
*घोष शुङ्ग  
*घोष शुङ्ग  
*वज्रमित्र
*वज्रमित्र
*भगभद्र
*भगभद्र
*देवभूति (83 - 73 BCE)
*[[देवभूति]] (83 - 73 ई.पू.)


==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
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Latest revision as of 07:33, 7 November 2017

शुंग कालीन मृण्मूर्ति
Shunga Terracottas|thumb|250px
शुंग वंश भारत का एक शासकीय वंश था जिसने मौर्य राजवंश के बाद उत्तर भारत में 187 ई.पू. से 75 ई.पू. तक 112 वर्षों तक शासन किया। मौर्य साम्राज्य के पतन के उपरान्त इसके मध्य भाग में सत्ता शुंग वंश के हाथ में आ गई। इस वंश की उत्पत्ति के बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं है। शुंग उज्जैन प्रदेश के थे, जहाँ इनके पूर्वज मौर्यों की सेवा में थे। शुंगवंशीय पुष्यमित्र अन्तिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ का सेनापति था। उसने अपने स्वामी की हत्या करके सत्ता प्राप्त की थी। इस नवोदित राज्य में मध्य गंगा की घाटी एवं चम्बल नदी तक का प्रदेश सम्मिलित था। पाटलिपुत्र, अयोध्या, विदिशा आदि इसके महत्त्वपूर्ण नगर थे। दिव्यावदान एवं तारनाथ के अनुसार जलंधर और साकल नगर भी इसमें सम्मिलित थे। पुष्यमित्र शुंग को यवन आक्रमणों का भी सामना करना पड़ा।

समकालीन पतंजलि के महाभाष्य से हमें दो बातों का पता चलता है -

  1. पतंजलि ने स्वयं पुष्यमित्र शुंग के लिए अश्वमेध यज्ञ कराए।
  2. उस समय एक आक्रमण में यवनों ने चित्तौड़ के निकट माध्यमिका नगरी और अवध में साकेत का घेरा डाला, किन्तु पुष्यमित्र ने उन्हें पराजित किया।
  • गार्गी संहिता के युग पुराण में भी लिखा है कि दुष्ट पराक्रमी यवनों ने साकेत, पंचाल और मथुरा को जीत लिया।
  • कालिदास के 'मालविकाग्निमित्र' नाटक में उल्लेख आया है कि यवन आक्रमण के दौरान एक युद्ध सिंधु नदी के तट पर हुआ और पुष्यमित्र के पोते और अग्निमित्र के पुत्र वसुमित्र ने इस युद्ध में विजय प्राप्त की।
  • इतिहासकार सिंधु नदी की पहचान के सवाल पर एकमत नहीं हैं - इसे राजपूताना की काली सिंधु (जो चम्बल की सहायक नदी है), दोआब की सिंधु (जो यमुना की सहायक नदी है) या पंजाब की सिंधु आदि कहा गया है, किन्तु इस नदी को पंजाब की ही सिंधु माना जाना चाहिए, क्योंकि मालविकाग्निमित्र के अनुसार विदिशा में यह नदी बहुत दूर थी। शायद इस युद्ध का कारण यवनों द्वारा अश्वमेध के घोड़े को पकड़ लिया जाना था। इसमें यवनों को पराजित करके पुष्यमित्र ने यवनों को मगध में प्रविष्ट नहीं होने दिया। अशोक के समय से निषिद्ध यज्ञादि क्रियाएँ, जिनमें पशुबलि दी जाती थी, अब पुष्यमित्र के समय में पुनर्जीवित हो उठी।
  • बौद्ध रचनाएँ पुष्यमित्र के प्रति उदार नहीं हैं। वे उसे बौद्ध धर्म का उत्पीड़क बताती हैं और उनमें ऐसा वर्णन है कि पुष्यमित्र ने बौद्ध विहारों का विनाश करवाया और बौद्ध भिक्षुओं की हत्या करवाई। सम्भव है कुछ बौद्धों ने पुष्यमित्र का विरोध किया हो और राजनीतिक कारणों से पुष्यमित्र ने उनके साथ सख्ती का वर्णन किया हो। यद्यपि शुंगवंशीय राजा ब्राह्मण धर्म के अनुयायी थे, फिर भी उनके राज्य में भरहुत स्तूप का निर्माण और साँची स्तूप की वेदिकाएँ (रेलिंग) बनवाई गईं।
  • पुष्यमित्र शुंग ने लगभग 36 वर्ष तक राज्य किया। उसके बाद उसके उत्तराधिकारियों ने ईसा पूरृव 75 तक राज्य किया। किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि शुंगों का राज्य संकुचित होकर मगध की सीमाओं तक ही रह गया। उनके उत्तराधिकारियों (काण्व) भी ब्राह्मण वंश के थे।

शुंग वंश के शासक

मौर्य वंश का अंतिम शासक वृहद्रय था। वृहद्रय को उसके ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने ई. पूर्व 185 में मार दिया और इस प्रकार मौर्य वंश का अंत हो गया। पुष्यमित्र ने अश्वमेध यज्ञ किया था। पुष्यमित्र ने सिंहासन पर बैठकर मगध पर शुंग वंश के शासन का आरम्भ किया। शुंग वंश का शासन सम्भवतः ई. पू. 185 ई. से पू. 100 तक दृढ़ बना रहा। पुष्यमित्र इस वंश का प्रथम शासक था, उसके पश्चात् उसका पुत्र अग्निमित्र, उसका पुत्र वसुमित्र राजा बना। वसुमित्र के पश्चात् जो शुंग सम्राट् हुए, उसमें कौत्सीपुत्र भागमद्र, भद्रघोष, भागवत और देवभूति के नाम उल्लेखनीय है। शुंग वंश का अंतिम सम्राट देवहूति था, उसके साथ ही शुंग साम्राज्य समाप्त हो गया था। शुग-वंश के शासक वैदिक धर्म के मानने वाले थे। इनके समय में भागवत धर्म की विशेष उन्नति हुई। शुंग वंश के शासकों की सूची इस प्रकार है -

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