आपदा प्रबंधन: Difference between revisions
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'''आपदा प्रबंधन''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Disaster Management'') आकस्मिक विपदाओं से निपटने के लिए संसाधनों का योजनाबद्ध उपयोग और इन विपदाओं से होने वाली हानि को न्यूनतम रखने की कुंजी है। आपदा प्रबंधन विकसित देशों की महत्वपूर्ण प्राथमिकता है और उसे पूरे वैज्ञानिक तरीके से उन्नत किया जा रहा है। किसी राष्ट्र को केवल उसकी आर्थिक समृद्धि या सामरिक शक्ति के आधार पर विकसित या विकासशील नहीं माना जा सकता। विकसित या विकासशील राष्ट्र होने के लिए ज़रूरी है आधारभूत सेवाओं जैसे स्वास्थ्य, परिवहन, संचार, शिक्षा आदि का भी विश्वस्तरीय होना। ये मानक हैं विकास के और इन्हीं मानकों में से एक है 'आपदा प्रबंधन'। | '''आपदा प्रबंधन''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Disaster Management'') आकस्मिक विपदाओं से निपटने के लिए संसाधनों का योजनाबद्ध उपयोग और इन विपदाओं से होने वाली हानि को न्यूनतम रखने की कुंजी है। आपदा प्रबंधन विकसित देशों की महत्वपूर्ण प्राथमिकता है और उसे पूरे वैज्ञानिक तरीके से उन्नत किया जा रहा है। किसी राष्ट्र को केवल उसकी आर्थिक समृद्धि या सामरिक शक्ति के आधार पर विकसित या विकासशील नहीं माना जा सकता। विकसित या विकासशील राष्ट्र होने के लिए ज़रूरी है आधारभूत सेवाओं जैसे स्वास्थ्य, परिवहन, संचार, शिक्षा आदि का भी विश्वस्तरीय होना। ये मानक हैं विकास के और इन्हीं मानकों में से एक है 'आपदा प्रबंधन'। | ||
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आपदा प्रबंधन (अंग्रेज़ी: Disaster Management) आकस्मिक विपदाओं से निपटने के लिए संसाधनों का योजनाबद्ध उपयोग और इन विपदाओं से होने वाली हानि को न्यूनतम रखने की कुंजी है। आपदा प्रबंधन विकसित देशों की महत्वपूर्ण प्राथमिकता है और उसे पूरे वैज्ञानिक तरीके से उन्नत किया जा रहा है। किसी राष्ट्र को केवल उसकी आर्थिक समृद्धि या सामरिक शक्ति के आधार पर विकसित या विकासशील नहीं माना जा सकता। विकसित या विकासशील राष्ट्र होने के लिए ज़रूरी है आधारभूत सेवाओं जैसे स्वास्थ्य, परिवहन, संचार, शिक्षा आदि का भी विश्वस्तरीय होना। ये मानक हैं विकास के और इन्हीं मानकों में से एक है 'आपदा प्रबंधन'।
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
आपदाओं के प्रकार
आपदाएं मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं - प्राकृतिक तथा मानव द्वारा उत्पन्न। प्राकृतिक आपदाएं जैसे- भूकंप, भूस्खलन, सूखा, बाढ़, सुनामी एवं चक्रवात आदि प्रकृति के कारण घटित होती हैं, जबकि मानवीय आपदाएं मनुष्य के कार्यों जैसे सड़क, रेल, हवाई तथा औद्योगिक दुर्घटनाओं के कारण आती हैं, भूकंप पृथ्वी के आतंरिक दबाव एवं उनके समायोजन के कारण आते हैं, भारत को, भूकंप की संभावनाओं के आधार पर पांच भूकंपीय जोनों में बांटा गया है। भूकंप की दृष्टि से अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्र सामान्यतः हिमालयी, उप-हिमालयी क्षेत्रों, कच्छ तथा अण्डमान एवं निकोबार द्वीपसमूह में स्थित हैं। भयंकर भूकंपों जैसे उत्तरकाशी (1991), लातूर (1993) तथा जबलपुर (1997) के अतिरिक्त साधारण तथा हल्के भूकंप भी बड़ी संख्या में देश के विभिन्न भागों में आए हैं। गुरुत्व, घर्षण, भूकंप, बरसात तथा मानव निर्मित कृत्यों से चट्टानों के खिसकने के कारण भूस्खलन होता है। सूखा, बारिश के कम मात्रा में होने के कारण पड़ता है। सूखा मुख्य रूप से तीन प्रकार का होता है - मौसम विज्ञान से संबंधित, जलविज्ञान से संबंधित तथा कृषि से संबंधित। देश में 16 प्रतिशत क्षेत्रफल सूखा प्रवृत्त है। बीसवीं शताब्दी में वर्ष 1941, 1951, 1979, 1982 तथा 1987 में भयंकर सूखा पड़ा था। देश का उत्तर-पश्चिमी भाग अत्यधिक सूखा-प्रवृत्त क्षेत्र है। कम समय में अधिक बारिश होने विशेष रूप से चिकनी मिट्टी, कम दबाव के क्षेत्र तथा निकास-बहाव के कम होने के कारण बाढ़ आती है। भारत दूसरा अत्यधिक बाढ़ प्रभावित देश है, जहां वर्षा ऋतु में यह आम बात है। प्रायः प्रत्येक वर्ष भयानक बाढ़ आती है जिसके कारण जान की क्षति, सम्पत्ति की क्षति, स्वास्थ्य समस्या तथा मनुष्यों की मृत्यु आदि जैसी घटनाएं घटित होती हैं। राष्ट्रीय बाढ़ आयोग रिपोर्ट (1980) में देश में 40 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्रफल को बाढ़ प्रवृत्त क्षेत्र निर्धारित किया गया है। देश में गंगा, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा, ताप्ती, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदी घाटी अत्यधिक बाढ़ प्रवृत्त क्षेत्र हैं। महासागरों में भूकंप आने के कारण समुद्री तूफान (सुनामी) आते हैं। चक्रवात समुद्रों में तापमान तथा दबाव में भिन्नता होने के कारण आते हैं। बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर में प्रतिवर्ष औसतन 5 से 6 उष्ण कटिबंधी चक्रवात आते हैं। बंगाल की खाड़ी में पूर्वी तट के समानांतर पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिल नाडु तथा अरब सागर राज्यों में पश्चिमी तट के समानांतर गुजरात एवं महाराष्ट्र चक्रवात तथा सुनामी की अत्यधिक संभावना वाले क्षेत्र हैं। जंगल की आग या दावानल बरसाती जंगलों या लम्बे पत्ती वाले पेड़ों के जंगल में लगती है। गर्म तथा शुष्क क्षेत्रों में शंकुवृक्ष (कोनिफेरस) तथा सदाबहार बडे़ पत्ते वाले वृक्षों के जंगलों में प्रायः जंगल की आग लगती है। जंगल की आग पर्यावरण, कृषि भूमि, पशुओं तथा कीड़ों के लिए खतरनाक होती है। मानवीय आपदाएं मनुष्य की गलतियों जैसे सड़क, रेल, हवाई एवं औद्योगिक दुर्घटनाओं के कारण आती हैं।[1]
आपदा की रोकथाम
आपदा प्रबंधन को मुख्यत: चार चरणों में बांटा जाता है। प्रथम चरण होता है आपदा की रोकथाम। इस सिलसिले में प्रयास होता है कि प्रत्याशित आपदा की पूर्व सूचना से क्षेत्र को जल्द से जल्द सचेत किया जाय जिससे जन हानि को कम से कम किया जा सके। दूसरा चरण होता है आपदाओं से निपटने की तैयारी। इस चरण में दुर्घटना घटते ही त्वरित सूचना सभी संबंधित विभागों तक पहुंचाई जाती है, आपातकालिक स्थिति में प्रतिक्रिया का समय कम से कम हो इसलिए आपदा से निपटने के साधनों का पर्याप्त भंडारण किया जाता है। तीसरा चरण होता है प्रभावित क्षेत्र में राहत सामग्री पहुंचाना, जैसे भोजन पानी, दवाइयां, कपड़े, कम्बल इत्यादि। अंतिम चरण होता है प्रभावित क्षेत्र का पुनर्निर्माण और विस्थापितों का पुनर्वास।
जापान की आपदा प्रबंधन प्रणाली
आपदा प्रबंधन की दिशा में जापान ने सर्वाधिक कार्य किया है। प्रत्येक वर्ष 1 सितम्बर को आपदा रोकथाम दिवस मनाया जाता है तथा 30 अगस्त से 5 सितम्बर तक पूरे देश में आपदा प्रबंधन सप्ताह मनाया जाता है जिसमे आपदा प्रबंधन मेला, संगोष्ठी, पोस्टर प्रतियोगिता आदि आयोजित किए जाते हैं ताकि आम जनता में आपदाओं से निपटने के लिए चेतना और ज्ञान का प्रसार किया जा सके। कई जापानी स्कूलों में पहले दिन ही भूकंप की स्थिति में बच्चों से भवन ख़ाली करने की ड्रिल कराई जाती है। जापान के प्रधानमंत्री स्वयं आपदा रोकथाम ड्रिल में शामिल होते हैं। जापान की भूकंप और सुनामी की चेतावनी देने वाली प्रणाली अत्याधुनिक है। सुनामी की गति, स्थिति, ऊंचाई आदि जानकारी कुछ ही क्षणों में रहवासियों को उपलब्ध करा दी जाती है ताकि सूनामी तट पर पहुंचने से पहले ही सारे रहवासी सुरक्षित स्थानों पर पहुंच सकें। जापान के कई तटों पर सुनामी रोधी भवन बनाए गए हैं ताकि लोग आपात स्थिति में उन भवनों में शरण ले सकें। भूकंप रोधी भवन बनाने का विज्ञान भी जापान में सबसे ज्यादा विकसित है। जापान की आपदा प्रबंधन प्रणाली बहुत ही सुपरिभाषित है। इस प्रणाली में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सरकारों की भूमिकाएँ और जिम्मेदारियां पूरी बारीकियों के साथ वर्णित हैं। आपदा के वक्त सरकारी हों या निजी सारे संगठन साथ जुट जाते हैं और इसे नेतृत्व मिलता है स्वयं प्रधानमंत्री कार्यालय से क्योंकि आपदा प्रबंधन का मुखिया प्रधानमंत्री होता है। बड़े समन्वय और तालमेल के साथ आपदा से निपटा जाता है। हर आपदा के बाद नीतियों की फिर से समीक्षा कर संशोधित किया जाता है और उनकी खामियों को दूर किया जाता है।[2]
आपदा प्रबंधन में शिक्षा एवं रोजगार
भारत विश्व का सातवां सबसे बड़ा देश है और यहां प्राकृतिक तथा मानवीय आपदाओं की अत्यधिक संभावना है। भारत का भू-भाग 135.79 मिलियन वर्ग किलोमीटर है जो विश्व का 2.4% है। जबकि इसकी जनसंख्या विश्व जनसंख्या की 16.7% है। हमारे देश की भू-वैज्ञानिक तथा भौगोलिक संरचना ऐसी है जो इसे आपदाओं की दृष्टि से अत्यधिक संवेदनशील बनाती है। देश के उत्तर तथा पूर्वोत्तर भाग में एक पर्वत श्रृंखला-हिमालय अत्यधिक भूकंप, भूस्खलन तथा हिमस्खलन जनित क्षेत्र है। उत्तरी भारत के भू-भाग में बाढ़ तथा सूखे का खतरा होता है। हमारा उत्तर-पश्चिमी भाग सूखे तथा बंजरता की संभावना वाला क्षेत्र है, जबकि हमारे तटीय क्षेत्रों में सुनामी तथा चक्रवात के खतरे होते हैं। दूसरे शब्दों में हमारा देश सभी प्रकार की आपदाओं अर्थात् भूकंप, सूखे, बाढ़, चक्रवात, सुनामी, भूस्खलन, हिमस्खलन, बंजरता, जंगल की आग तथा औद्योगिक वाहन (सड़क, रेल, वायु) दुर्घटनाओं की संभावनाओं वाला क्षेत्र है। विश्व में 90% आपदाएं विकासशील देशों में घटती हैं। भारत में, 70% क्षेत्र सूखा प्रवृत्त, 12% बाढ़ प्रवृत्त, 60% भूकंप प्रवृत्त तथा 8% चक्रवात प्रवृत्त हैं। प्रतिशतता के ये आंकड़े दर्शाते हैं कि हमें ऐसी प्रशिक्षित जनशक्ति की आवश्यकता है जो आपदा के समय सहायता कर सके और आपदा नियंत्रण की स्कीमों के नियोजन, निगरानी तथा प्रबंधन में मदद कर सके। आज के परिवर्तनशील प्रौद्योगिकी परिदृश्य के संदर्भ में, हमें उद्योग तथा सरकारी एवं निजी संगठनों के लिए प्रशिक्षित जनशक्ति की तत्काल आवश्यकता है।
आपदा प्रबंधन कार्मिकों की भूमिका
प्रशिक्षित जनशक्ति, आपदा से पहले, आपदा के दौरान तथा आपदा के बाद की स्थितियों से निपटने के लिए आवश्यक होती है। प्रशिक्षित जनशक्ति आपदा प्रभावित व्यक्तियों के शीघ्र पुनर्वास में सहायता करती है, उनकी मनोवैज्ञानिक स्थितियों को समझती है और आपदा के बाद उन स्थितियों को दूर करने तथा उन्हें बसाने में सहायता करती है। नियोजन तथा नीति-निर्माण में, बेहतर सुझाव देने के लिए प्रशिक्षित एवं अनुभवी जनशक्ति की अत्यधिक आवश्यकता होती है। देश में गृह मंत्रालय नोडल एजेंसी है जो आपदाओं पर निगरानी तथा प्रबंधन कार्य करती है। कृषि, रसायन, नागरिक उड्डयन, रेलवे, सड़क परिवहन, पर्यावरण एवं वन, स्वास्थ्य तथा परमाणु ऊर्जा जैसे अन्य मंत्रालय/विभाग अपने संबंधित क्षेत्रों/कार्यों के लिए जिम्मेदार हैं।
आपदा प्रबंधन में शिक्षा
आपदाओं के न्यूनीकरण, निगरानी तथा प्रबंधन के लिए प्रशिक्षित जनशक्ति होना प्रथम आवश्यकता है। अनेक विश्वविद्यालय तथा संस्थान आपदा प्रबंधन में प्रमाणपत्र, स्नातकोत्तर डिप्लोमा, मास्टर तथा अनुसंधान डिग्री कार्यक्रम चलाते हैं। प्रमाणपत्र तथा स्नातक पाठ्यक्रम के लिए 10+2 (इंटरमीडिएट) मूल आवश्यकता है और स्नातकोत्तर डिप्लोमा तथा मास्टर डिग्री के लिए 55% अंकों के साथ स्नातक डिग्री (बी.ए./बीएस.सी./बी.कॉम.) होना ज़रूरी है। पीएच.डी. डिग्री के लिए 55% अंकों की मास्टर डिग्री होना आवश्यक है। तथापि, प्रवेश-योग्यता प्रत्येक विश्वविद्यालय में अलग-अलग है। आपदा प्रबंधन पाठ्यक्रम सभी विषयों के छात्रों के लिए उपयुक्त हैं, किंतु सामाजिकी, सामाजिक कार्य, अर्थशास्त्र, लोक प्रशासन, मनोविज्ञान, भूगोल, भूविज्ञान, मौसम विज्ञान तथा कृषि के छात्रों के लिए अत्यंत उपयोगी है। इन विषयों के व्यक्ति अपने विशेष विषय के मूल ज्ञान का उपयोग आपदा प्रबंधन में कर सकते हैं।
प्रमुख विश्वविद्यालय एवं संस्थान
क्रमांक | विश्वविद्यालय / संस्थान | पाठ्यक्रम |
---|---|---|
1. | इंदिरा गांधी राष्ट्रीय खुला विश्वविद्यालय, नई दिल्ली |
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2. | सिक्किम मणिपाल स्वास्थ्य, चिकित्सा तथा प्रौद्योगिकी विज्ञान विश्वविद्यालय, गंगटोक | आपदा न्यूनीकरण में एमएस.सी। (दूरस्थ शिक्षा) |
3. | भारतीय पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण संस्थान, नई दिल्ली। | आपदा न्यूनीकरण में एमएस.सी। (दूरस्थ शिक्षा) |
4. | अन्नामलई विश्वविद्यालय, अन्नामलई नगर, तमिल नाडु | आपदा प्रबंधन में एम.ए। (दूरस्थ शिक्षा) |
5. | पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ | आपदा प्रबंधन में एम.ए. |
6. | वर्धवान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा | आपदा प्रबंधन में प्रमाणपत्र, आपदा प्रबंधन में स्नातकोत्तर डिप्लोमा |
7. | गुरू गोविंद सिंह इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय, दिल्ली |
|
8. | राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (एन.आई.डी.एम.), इन्द्रप्रस्थ एस्टेट, रिंग रोड, नई दिल्ली | कैम्पस में तथा ऑनलाइन अल्प-कालीन विशेषज्ञतापूर्ण प्रशिक्षण कार्यक्रम |
9. | मद्रास विश्वविद्यालय, चेन्नई |
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10. | ग्लोबल ओपन यूनिवर्सिटी, कोहिमा, नागालैंड |
|
11. | भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रूड़की |
|
12. | त्रिपुरा विश्वविद्यालय, सूर्यमणिनगर, त्रिपुरा |
|
13. | भारतीय रिमोट सेसिंग संस्थान, देहरादून |
|
14. | उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय, दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल | |
15. | सिविल रक्षा कॉलेज केन्द्र, नागपुर | अग्नि-शमन इंजीनियरी एवं सुरक्षा में डिग्री/पी.जी. डिप्लोमा. |
16. | पर्यावरण परिरक्षण प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद | |
17. | आपदा न्यूनीकरण संस्थान, अहमदाबाद | अनुसंधान एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम |
18. | आपदा प्रबंधन केन्द्र, पुणे | अनुसंधान एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम |
17. | एमिटी आपदा प्रबंधन संस्थान, नोएडा | आपदा प्रबंधन में एम.एससी. तथा पीएच.डी. |
19. | नालंदा मुक्त विश्वविद्यालय, पटना | |
20. | राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय, इलाहाबाद | |
21. | भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर |
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22. | टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान, मुंबई |
|
23. | आपदा प्रबंधन संस्थान, पर्यावरण परिसर, अरेरा कॉलोनी, भोपाल | आपदा प्रबंधन में प्रशिक्षण तथा अनुसंधान |
24. | राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान, राजेन्द्र नगर, हैदराबाद |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 आपदा प्रबंधन में शिक्षा एवं रोजगार (हिन्दी) इंडिया वाटर पोर्टल। अभिगमन तिथि: 27 अप्रॅल, 2015।
- ↑ कब सीखेंगे हम आपदा प्रबंधन की तकनीक (हिन्दी) वेब दुनिया। अभिगमन तिथि: 26 अप्रॅल, 2015।
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