नील महीधर सिखर: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
m (Text replacement - "तेजी " to "तेज़ी")
 
Line 37: Line 37:
{{poemclose}}
{{poemclose}}
;भावार्थ-
;भावार्थ-
नील पर्वत के शिखर के समान विशाल (शरीर वाले) उस सूअर को देखकर राजा घोड़े को चाबुक लगाकर तेजी से चला और उसने सूअर को ललकारा कि अब तेरा बचाव नहीं हो सकता॥ 156॥
नील पर्वत के शिखर के समान विशाल (शरीर वाले) उस सूअर को देखकर राजा घोड़े को चाबुक लगाकर तेज़ीसे चला और उसने सूअर को ललकारा कि अब तेरा बचाव नहीं हो सकता॥ 156॥


{{लेख क्रम4| पिछला=कोल कराल दसन छबि गाई |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=आवत देखि अधिक रव बाजी}}
{{लेख क्रम4| पिछला=कोल कराल दसन छबि गाई |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=आवत देखि अधिक रव बाजी}}

Latest revision as of 08:19, 10 February 2021

नील महीधर सिखर
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
भाषा अवधी भाषा
शैली सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड बालकाण्ड
दोहा

नील महीधर सिखर सम देखि बिसाल बराहु।
चपरि चलेउ हय सुटुकि नृप हाँकि न होइ निबाहु॥ 156॥

भावार्थ-

नील पर्वत के शिखर के समान विशाल (शरीर वाले) उस सूअर को देखकर राजा घोड़े को चाबुक लगाकर तेज़ीसे चला और उसने सूअर को ललकारा कि अब तेरा बचाव नहीं हो सकता॥ 156॥


left|30px|link=कोल कराल दसन छबि गाई|पीछे जाएँ नील महीधर सिखर right|30px|link=आवत देखि अधिक रव बाजी|आगे जाएँ

दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख