के. एच. आरा: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''कृष्णजी हवलाजी आरा''' (अंग्रेज़ी: ''Krishnaji Howlaji Ara'', जन्म- ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
No edit summary
 
(One intermediate revision by the same user not shown)
Line 1: Line 1:
'''कृष्णजी हवलाजी आरा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Krishnaji Howlaji Ara'', जन्म- [[16 अप्रॅल]], [[1913]]; मृत्यु- [[30 जून]], [[1985]]) [[भारत]] के प्रसिद्ध चित्रकार थे। जीवन की अनेक विषमताओं से जूझते हुए के. एच. आरा नें [[मुंबई]] के कलाकारों के बीच अपनी अच्छी पहचान बना ली थी। [[1950]] एवं [[1960]] के दशक में उन्होंने अभूतपूर्व ख्याति अर्जित की लेकिन बाद के वर्षों में उन्हे वह ख्याति प्राप्त नहीं हो सकी, जो इनके साथी कलाकरों, जैसे- सूजा, रज़ा और हुसैन को प्राप्त हुई। इसका एक बड़ा कारण यह भी था कि न तो के. एच. आरा ने अपने चित्रों को अधिक मूल्य पर बेचा और न ही बाजार की बदलती जरूरतों के हिसाब से अपने आप को बदला। उल्टे अपनी कला पर ध्यान देने के बजाय, उन कलाकारों पर ध्यान देना शुरू कर दिया जो मुंबई में किस्मत आज़माने के लिए अभी इधर-उधर धक्के खा रहे थे।
{{सूचना बक्सा कलाकार
|चित्र=Krishnaji-Howlaji-Ara.jpg
|चित्र का नाम=के. एच. आरा
|पूरा नाम=कृष्णजी हवलाजी आरा
|प्रसिद्ध नाम=
|अन्य नाम=
|जन्म=[[16 अप्रॅल]], [[1913]]
|जन्म भूमि=बोलारम, [[हैदराबाद]], [[आंध्र प्रदेश]]
|मृत्यु=[[30 जून]], [[1985]]
|मृत्यु स्थान=[[मुम्बई]], [[महाराष्ट्र]]
|अभिभावक=
|पति/पत्नी=
|संतान=
|कर्म भूमि=[[भारत]]
|कर्म-क्षेत्र=चित्रकारी
|मुख्य रचनाएँ=
|मुख्य फ़िल्में=
|विषय=
|शिक्षा=
|विद्यालय=
|पुरस्कार-उपाधि=
|प्रसिद्धि=भारतीय चित्रकार
|विशेष योगदान=
|नागरिकता=भारतीय
|संबंधित लेख=
|शीर्षक 1=
|पाठ 1=
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=[[1950]] एवं [[1960]] के दशक में के. एच. आरा ने अभूतपूर्व ख्याति अर्जित की, लेकिन बाद के वर्षों में उन्हें वह ख्याति प्राप्त नहीं हो सकी जो इनके साथी कलाकरों जैसे सूजा, रज़ा और हुसैन को प्राप्त हुई।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}'''कृष्णजी हवलाजी आरा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Krishnaji Howlaji Ara'', जन्म- [[16 अप्रॅल]], [[1913]]; मृत्यु- [[30 जून]], [[1985]]) [[भारत]] के प्रसिद्ध चित्रकार थे। जीवन की अनेक विषमताओं से जूझते हुए के. एच. आरा नें [[मुंबई]] के कलाकारों के बीच अपनी अच्छी पहचान बना ली थी। [[1950]] एवं [[1960]] के दशक में उन्होंने अभूतपूर्व ख्याति अर्जित की लेकिन बाद के वर्षों में उन्हे वह ख्याति प्राप्त नहीं हो सकी, जो इनके साथी कलाकरों, जैसे- सूजा, रज़ा और हुसैन को प्राप्त हुई। इसका एक बड़ा कारण यह भी था कि न तो के. एच. आरा ने अपने चित्रों को अधिक मूल्य पर बेचा और न ही बाजार की बदलती जरूरतों के हिसाब से अपने आप को बदला। उल्टे अपनी कला पर ध्यान देने के बजाय, उन कलाकारों पर ध्यान देना शुरू कर दिया जो मुंबई में किस्मत आज़माने के लिए अभी इधर-उधर धक्के खा रहे थे।
==परिचय==
==परिचय==
कृष्णजी हवलाजी आरा का जन्म 16 अप्रैल, 1913 में बोलारम ([[हैदराबाद]]), [[आंध्र प्रदेश]] में हुआ था। तीन वर्ष की आयु में उनकी [[माता]] का देहान्त हो गया, सात वर्ष की आयु में वे बम्बई आ गये और उन्होंने अपने जीवन की शुरूआत कार–क्लीनर के व्यवसाय से की। वे एक जापानी कंपनी में कार क्लीनर का काम करते थे। 'पर्ल हार्बर' पर आक्रमण की ऐतिहासिक घटना के बाद उनका जापानी मालिक घर को सेवक के भरोसे छोड़ कर लापता हो गया। संयोग से मिले हुए उस घर का वह सर्वेन्ट क्वार्टर जीवन पर्यन्त उनका कला–कक्ष (स्टूडियो) बना रहा।<ref name="pp">{{cite web |url=http://www.abhivyakti-hindi.org/kaladirgha/kalaakaar/ara.htm |title=कृष्णजी हौवालजी आरा|accessmonthday=07 अक्टूबर|accessyear=2021 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=abhivyakti-hindi.org |language=हिंदी}}</ref>
कृष्णजी हवलाजी आरा का जन्म 16 अप्रैल, 1913 में बोलारम ([[हैदराबाद]]), [[आंध्र प्रदेश]] में हुआ था। तीन वर्ष की आयु में उनकी [[माता]] का देहान्त हो गया, सात वर्ष की आयु में वे बम्बई आ गये और उन्होंने अपने जीवन की शुरूआत कार–क्लीनर के व्यवसाय से की। वे एक जापानी कंपनी में कार क्लीनर का काम करते थे। 'पर्ल हार्बर' पर आक्रमण की ऐतिहासिक घटना के बाद उनका जापानी मालिक घर को सेवक के भरोसे छोड़ कर लापता हो गया। संयोग से मिले हुए उस घर का वह सर्वेन्ट क्वार्टर जीवन पर्यन्त उनका कला–कक्ष (स्टूडियो) बना रहा।<ref name="pp">{{cite web |url=http://www.abhivyakti-hindi.org/kaladirgha/kalaakaar/ara.htm |title=कृष्णजी हौवालजी आरा|accessmonthday=07 अक्टूबर|accessyear=2021 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=abhivyakti-hindi.org |language=हिंदी}}</ref>
Line 26: Line 58:
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{चित्रकार}}
{{चित्रकार}}
[[Category:चित्रकार]][[Category:स्वतंत्रता सेनानी]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:कला कोश]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]]
[[Category:चित्रकार]][[Category:स्वतन्त्रता सेनानी]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:कला कोश]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Latest revision as of 10:02, 7 October 2021

के. एच. आरा
पूरा नाम कृष्णजी हवलाजी आरा
जन्म 16 अप्रॅल, 1913
जन्म भूमि बोलारम, हैदराबाद, आंध्र प्रदेश
मृत्यु 30 जून, 1985
मृत्यु स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र चित्रकारी
प्रसिद्धि भारतीय चित्रकार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी 1950 एवं 1960 के दशक में के. एच. आरा ने अभूतपूर्व ख्याति अर्जित की, लेकिन बाद के वर्षों में उन्हें वह ख्याति प्राप्त नहीं हो सकी जो इनके साथी कलाकरों जैसे सूजा, रज़ा और हुसैन को प्राप्त हुई।

कृष्णजी हवलाजी आरा (अंग्रेज़ी: Krishnaji Howlaji Ara, जन्म- 16 अप्रॅल, 1913; मृत्यु- 30 जून, 1985) भारत के प्रसिद्ध चित्रकार थे। जीवन की अनेक विषमताओं से जूझते हुए के. एच. आरा नें मुंबई के कलाकारों के बीच अपनी अच्छी पहचान बना ली थी। 1950 एवं 1960 के दशक में उन्होंने अभूतपूर्व ख्याति अर्जित की लेकिन बाद के वर्षों में उन्हे वह ख्याति प्राप्त नहीं हो सकी, जो इनके साथी कलाकरों, जैसे- सूजा, रज़ा और हुसैन को प्राप्त हुई। इसका एक बड़ा कारण यह भी था कि न तो के. एच. आरा ने अपने चित्रों को अधिक मूल्य पर बेचा और न ही बाजार की बदलती जरूरतों के हिसाब से अपने आप को बदला। उल्टे अपनी कला पर ध्यान देने के बजाय, उन कलाकारों पर ध्यान देना शुरू कर दिया जो मुंबई में किस्मत आज़माने के लिए अभी इधर-उधर धक्के खा रहे थे।

परिचय

कृष्णजी हवलाजी आरा का जन्म 16 अप्रैल, 1913 में बोलारम (हैदराबाद), आंध्र प्रदेश में हुआ था। तीन वर्ष की आयु में उनकी माता का देहान्त हो गया, सात वर्ष की आयु में वे बम्बई आ गये और उन्होंने अपने जीवन की शुरूआत कार–क्लीनर के व्यवसाय से की। वे एक जापानी कंपनी में कार क्लीनर का काम करते थे। 'पर्ल हार्बर' पर आक्रमण की ऐतिहासिक घटना के बाद उनका जापानी मालिक घर को सेवक के भरोसे छोड़ कर लापता हो गया। संयोग से मिले हुए उस घर का वह सर्वेन्ट क्वार्टर जीवन पर्यन्त उनका कला–कक्ष (स्टूडियो) बना रहा।[1]

के. एच. आरा स्व शिक्षित कलाकार थे और उनकी कला का विषय नग्नचित्र अचल चित्र और मानव आकृतियाँ रहे। टाइम्स आफ इंडिया के कला आलोचक रूडी वान लेडेन ने उनकी कला को समझा, सराहा और प्रोत्साहित किया। आरा की पहली एकल प्रदर्शनी 1942 में चेतना रेस्टोरेन्ट में हुयी। 1944 में उन्हें राज्यपाल का कला पुरस्कार मिला।

प्रोग्रेसिव आर्ट ग्रुप के संस्थापक सदस्य

के. एच. आरा प्रोग्रेसिव आर्ट ग्रुप के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और इस दल के सदस्यों के साथ उन्होंने कई कला प्रदर्शनियों में हिस्सा लिया। 1952 में उन्हें अपनी कलाकृति 'दो न्यायमूर्ति' के लिये बाम्बे आर्ट सोसायटी का स्वर्ण पदक मिला। वे बाम्बे आर्ट सोसायटी की कार्यकारिणी के सदस्य के पद पर रहे और ललित कला अकादमी के चुनावों व निर्णायक समिति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे।

कला यात्रा

के. एच. आरा की कला यात्रा प्रकृति के अध्ययन से प्रारंभ हुयी थी। उनके प्रारंभिक चित्रों में बम्बई के उपनगरीय वातावरण की छाप देखी जा सकती है। धीरे धीरे इसमें बंगाल शैली की छवि उभरी और 40 व 50 के दशक के अचल चित्रण में शाने और माटीस का प्रभाव भी परिलक्षित होता है। वे अपनी शैली में आधुनिक भी थे और अपनी तरह के परंपरावादी भी। उनका युग तैल चित्रों का युग था लेकिन उन्होंने जल रंगों और गोचा माध्यम को ही अधिकतर अपनाया। बाद में वे तैल चित्रण की और उन्मुख हुए।[1]

नमक सत्याग्रही

नमक सत्याग्रही के रूप में के. एच. आरा ने स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया और पाँच महीने की जेल भुगती थी। देशप्रेम की यह भावना बाद में एक विशेष कलाकृति की प्रेरणा बनी, जिसमें उन्होंने एक विशालकाय कैनवस पर स्वतंत्रता दिवस मनाती हुयी उल्लासपूर्ण भारतीय जनता का आकर्षक चित्रण किया।

ख्याति

1950 एवं 1960 के दशक में के. एच. आरा ने अभूतपूर्व ख्याति अर्जित की, लेकिन बाद के वर्षों में उन्हें वह ख्याति प्राप्त नहीं हो सकी जो इनके साथी कलाकरों जैसे सूजा, रज़ा और हुसैन को प्राप्त हुई। इसका एक बड़ा कारण यह भी था कि न तो इन्होंने अपने चित्रों को अधिक मूल्य पर बेचा और न ही बाजार की बदलती जरूरतों के हिसाब से अपने आप को बदला। उल्टे अपनी कला पर ध्यान देने के बजाय, उन कलाकारों पर ध्यान देना शुरू कर दिया जो मुंबई में किस्मत आज़माने के लिए अभी इधर-उधर धक्के खा रहे थे।[2]

संघर्षशील कलाकारों के साथी

के. एच. आरा का ध्यान बाजार से अधिक उन संघर्षशील कलाकारों की तरफ़ था जो प्रतिभावान होने के साथ-साथ अभावों से ग्रस्त थे अथवा अपनी प्रदर्शनी कर सकने की स्थिति में नहीं थे। ऐसे कलाकारों की मदद के लिए के. एच. आरा ने मुंबई के ‘आर्टिस्ट्स सेंटर’ में अपना समय देना आरंभ कर दिया। यह ‘आर्टिस्ट्स सेंटर’ रुड़ी वॉन लिडेन द्वारा स्थापित एक ‘आर्टिस्ट्स ऐड फंड सेंटर’ (1950) था जो बाद में ‘आर्टिस्ट्स ऐड सेंटर’ के नाम से विख्यात हुआ तथा जिसे वर्तमान में ‘आर्टिस्ट्स सेंटर’ के नाम से जाना जाता है। यहाँ ये जरूरतमन्द कलाकारों को चिन्हित करते और उनकी हर संभव मदद करते। धीरे-धीरे आरा ने अपने चित्रों का प्रदर्शन भी बहुत कम कर दिया, ये अपना अधिकांश समय यहीं व्यतीत किया करते। जरूरत पड़ती तो व्यक्तिगत तौर पर कलाकारों की आर्थिक मदद करते, बहुत बार अपनी जमा पूंजी में से भी कलाकारों की मदद करने से पीछे नहीं हटते थे।

सर्वहारा वर्ग से के. एच. आरा को विशेष लगाव था। जीवन की विषमतम परिस्थितियों से रूबरू होकर के. एच. आरा ने जाना था कि- लाचारी, मजबूरी और मुफ़लिसी किस कदर आदमी को तोड़ देती है। जब रंग भरने तक के पैसे न हो तो उम्दा कलाकारों के सपनों की तस्वीरें भी अक्सर बेरंग रह जाती हैं। बिल्कुल ऐसे, जैसे किसी दरिद्र को अपनी औलाद को, बिना खिलाए-पिलाए बहलाकर सुलाना पड़ता हो। इस दर्द को न आप महसूस कर सकते हैं और न मैं, यह दर्द सिर्फ़ वह महसूस कर सकता है जो इस परिस्थिति से गुज़रा हो। उन तस्वीरों से भी मुख़ातिब हो सकते हैं जिन्होने यह यातना झेली है बशर्ते आप उनकी ज़बान समझ पाएँ। के. एच. आरा यह ज़बान बखूबी समझते थे। अतः तस्वीर देखकर ही कई बार कलाकार की दयनीय स्थिति का अंदाजा लगा लेते थे, आखिर उन्होंने इस दौर की एक लंबी पारी खेली थी और इसी कारण वो ज़रूरतमन्द कलाकारों का सहारा बने।

अविवाहित

‘आर्टिस्ट्स सेंटर’ के सचिव पद पर रहते हुए के. एच. आरा ने यह कार्य पूरी निष्ठा से किया। किन्तु इस सेंटर की कुछ अपनी सीमाए थीं। अतः व्यक्तिगत रूप से भी इन्होंने ज़रूरतमन्द कलाकारों की हर संभव मदद की। अपना जीवन सेवा-भाव से व्यतीत करने वाले के. एच. आरा ने आजीवन विवाह नहीं किया जिसका एक कारण संभवतः यह भी था कि शायद विवाह उपरांत ये कलाकारों की इस तरह से मदद न कर पाते जैसा कि ये करना चाहते थे। समाज कल्याण एवं देशभक्ति की भावना उनमें कूट-कूट कर भरी थी। अपने अध्ययन काल में इन्होंने नमक सत्याग्रह में भाग भी लिया था जिसके लिए इन्हें पाँच महीने जेल में भी काटने पड़े थे। यही नहीं अक्टूबर-नवंबर 1962 में भारत और चीन के मध्य हुए युद्ध के बाद इन्होंने 1963 में ‘राष्ट्रीय रक्षा कोष’ की आर्थिक सहायता के लिए अपने चित्रों की एक एकल प्रदर्शनी बॉम्बे की ‘रूप आर्ट गैलरी’ में आयोजित की।[2]

मृत्यु

अपने बाद के दिनों में के. एच. आरा का अधिकतर समय आर्टिस्ट सेंटर में व्यतीत हुआ। 30 जून, 1985 को मुम्बई में उनका देहांत हुआ।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 कृष्णजी हौवालजी आरा (हिंदी) abhivyakti-hindi.org। अभिगमन तिथि: 07 अक्टूबर, 2021।
  2. 2.0 2.1 दूसरों की व्यथा समझने वाला चित्रकार (हिंदी) readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com। अभिगमन तिथि: 07 अक्टूबर, 2021।

संबंधित लेख