शंकर (संगीतकार): Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - " खाली" to " ख़ाली") |
No edit summary |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 9: | Line 9: | ||
|मृत्यु=[[26 अप्रॅल]] [[1987]] (आयु 64 वर्ष) | |मृत्यु=[[26 अप्रॅल]] [[1987]] (आयु 64 वर्ष) | ||
|मृत्यु स्थान=[[मुम्बई]] | |मृत्यु स्थान=[[मुम्बई]] | ||
| | |अभिभावक=[[पिता]]- रामसिंह रघुवंशी | ||
|पति/पत्नी= | |पति/पत्नी= | ||
|संतान= | |संतान= | ||
|कर्म भूमि= | |कर्म भूमि=[[भारत]] | ||
|कर्म-क्षेत्र=संगीतकार | |कर्म-क्षेत्र=संगीतकार | ||
|मुख्य रचनाएँ=मेरी आंखों में बस गया कोई रे, जिया बेकरार है छाई बहार है, मुझे किसी से प्यार हो गया, हवा में उडता जाए मेरा लाल दुपट्टा मलमल का, अब मेरा कौन सहारा, बरसात में हमसे मिले तुम सजन, तुमसे मिले हम, बिछड गई मैं घायल हिरनी | |मुख्य रचनाएँ=मेरी आंखों में बस गया कोई रे, जिया बेकरार है छाई बहार है, मुझे किसी से प्यार हो गया, हवा में उडता जाए मेरा लाल दुपट्टा मलमल का, अब मेरा कौन सहारा, बरसात में हमसे मिले तुम सजन, तुमसे मिले हम, बिछड गई मैं घायल हिरनी आदि। | ||
|मुख्य फ़िल्में= | |मुख्य फ़िल्में= | ||
|विषय= | |विषय= | ||
Line 32: | Line 32: | ||
|अद्यतन= | |अद्यतन= | ||
}} | }} | ||
'''शंकर सिंह रघुवंशी''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Shankar Singh Raghuvanshi'', जन्म: [[15 अक्टूबर]] [[1922]] - मृत्यु: [[26 अप्रॅल]] [[1987]]) [[भारतीय सिनेमा]] के प्रसिद्ध संगीतकार थे। इन्होंने अपनी जोड़ी संगीतकार [[जयकिशन]] के साथ मिलकर बनाई और [[शंकर-जयकिशन]] नाम से प्रसिद्ध हुए। | '''शंकर सिंह रघुवंशी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Shankar Singh Raghuvanshi'', जन्म: [[15 अक्टूबर]] [[1922]] - मृत्यु: [[26 अप्रॅल]] [[1987]]) [[भारतीय सिनेमा]] के प्रसिद्ध संगीतकार थे। इन्होंने अपनी जोड़ी संगीतकार [[जयकिशन]] के साथ मिलकर बनाई और [[शंकर-जयकिशन]] नाम से प्रसिद्ध हुए। | ||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
[[15 अक्टूबर]] [[1922]] को जन्मे शंकर के पिता रामसिंह रघुवंशी मूलत: [[मध्य प्रदेश]] के थे और काम के सिलसिले में [[हैदराबाद]] में बस गये थे। शंकर को शुरु से ही कुश्ती का शौक़ था और उनका कसरती बदन बचपन के इसी शौक़ का परिणाम था। घर के पास के एक शिव मंदिर में [[पूजा]] अर्चना के दौरान [[तबला वादक]] का वादन भी बचपन में बहुत आकर्षित करता था। [[तबला]] बजाने की लगन दिनों दिन बढ़ती गयी। महफ़िलों में तबला बजाते हुए उस्ताद नसीर खान की निगाह उन पर पड़ी और शंकर उनके चेले हो गये। माली हालात ऐसे थे कि ट्यूशन भी करनी पड़ी। कहते हैं कि हैदराबाद में ही एक बार किसी गली से गुजरते हुए तबला सुनकर शंकर एक तवायफ़ के कोठे पर पहुँच गये और तबलावादक को ग़लत बजाने पर टोक दिया। बात बढ़ी तो शंकर ने इस सफ़ाई से बजाकर अपनी क़ाबिलियत का परिचय दिया कि वाह-वाही हो गयी। शंकर अपनी कला को और निखारने के लिए एक नाट्य मंडली में शामिल हो गये, जिसके संचालक मास्टर सत्यनारायण थे और हेमावती ने बम्बई जा कर पृथ्वी थियेटर्स में नौकरी कर ली, तो शंकर भी 75 रुपये प्रतिमाह पर पृथ्वी थियेटर्स में तबलावादक बन गये। पृथ्वी थियेटर्स के नाटकों में कुछ छोटी-मोटी भूमिकाएँ मिलने लगीं और वहीं शंकर ने सितार बजाना भी सीख लिया।<ref name="LH">{{cite web |url=http://www.livehindustan.com/news/entertainment/entertainmentnews/article1-story-28-28-71657.html |title=शंकर जयकिशन के संगीत का आज भी नहीं है मुकाबला |accessmonthday=24 जुलाई |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=लाइव हिंदुस्तान |language=हिंदी }}</ref> | [[15 अक्टूबर]] [[1922]] को जन्मे शंकर के [[पिता]] रामसिंह रघुवंशी मूलत: [[मध्य प्रदेश]] के थे और काम के सिलसिले में [[हैदराबाद]] में बस गये थे। शंकर को शुरु से ही [[कुश्ती]] का शौक़ था और उनका कसरती बदन बचपन के इसी शौक़ का परिणाम था। घर के पास के एक शिव मंदिर में [[पूजा]] अर्चना के दौरान [[तबला वादक]] का वादन भी बचपन में बहुत आकर्षित करता था। [[तबला]] बजाने की लगन दिनों दिन बढ़ती गयी। महफ़िलों में तबला बजाते हुए उस्ताद नसीर खान की निगाह उन पर पड़ी और शंकर उनके चेले हो गये। माली हालात ऐसे थे कि ट्यूशन भी करनी पड़ी। कहते हैं कि हैदराबाद में ही एक बार किसी गली से गुजरते हुए तबला सुनकर शंकर एक तवायफ़ के कोठे पर पहुँच गये और तबलावादक को ग़लत बजाने पर टोक दिया। बात बढ़ी तो शंकर ने इस सफ़ाई से बजाकर अपनी क़ाबिलियत का परिचय दिया कि वाह-वाही हो गयी। शंकर अपनी कला को और निखारने के लिए एक नाट्य मंडली में शामिल हो गये, जिसके संचालक मास्टर सत्यनारायण थे और हेमावती ने बम्बई जा कर पृथ्वी थियेटर्स में नौकरी कर ली, तो शंकर भी 75 रुपये प्रतिमाह पर पृथ्वी थियेटर्स में तबलावादक बन गये। पृथ्वी थियेटर्स के नाटकों में कुछ छोटी-मोटी भूमिकाएँ मिलने लगीं और वहीं शंकर ने सितार बजाना भी सीख लिया।<ref name="LH">{{cite web |url=http://www.livehindustan.com/news/entertainment/entertainmentnews/article1-story-28-28-71657.html |title=शंकर जयकिशन के संगीत का आज भी नहीं है मुकाबला |accessmonthday=24 जुलाई |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=लाइव हिंदुस्तान |language=हिंदी }}</ref> | ||
==जयकिशन से मुलाक़ात== | ==जयकिशन से मुलाक़ात== | ||
{{Main|शंकर जयकिशन}} | {{Main|शंकर जयकिशन}} | ||
शंकर जयकिशन की मुलाक़ात भी अजीब ढंग से हुई। ऑपेरा हाउस थियेटर के पास की व्यायामशाला में कसरत के लिए शंकर जाया करते थे और वहीं दत्ताराम से उनकी मुलाक़ात हुई। दत्ताराम शंकर से तबले और ढोलक की बारीकियाँ सीखने लगे, और एक दिन उन्हें फ़िल्मों में संगीत का काम दिलाने के लिए दादर में गुजराती फ़िल्मकार चंद्रवदन भट्ट के पास ले गये। वहीं जयकिशन भी फ़िल्मों में काम की तलाश में आये हुए थे। इंतज़ार के क्षणों में ही बातों में शंकर को पता चला कि जयकिशन हारमोनियम बजाते थे। उस समय सौभाग्य से पृथ्वी थियेटर में हारमोनियम मास्टर की जगह ख़ाली थी। शंकर ने प्रस्ताव रखा तो जयकिशन झट से मान गये और इस तरह पृथ्वी थियेटर्स के परचम तले शंकर और जयकिशन साथ-साथ काम करने लगे। 'पठान' में दोनों ने साथ-साथ अभिनय भी किया। काम के साथ-साथ दोस्ती भी प्रगाढ़ होती गयी। शंकर साथ-साथ हुस्नलाल भगतराम के लिए भी तबला बजाने का काम करते थे और दोनों भाइयों से भी संगीत की कई बारीकियाँ उन्होंने सीखीं। पृथ्वी थियेटर्स में ही काम करते करते शंकर और जयकिशन [[राजकपूर]] के भी क़रीबी हो गए। हालाँकि राज कपूर की पहली फ़िल्म के संगीतकार थे पृथ्वी थियेटर्स के वरिष्ठ संगीतकार राम गाँगुली और शंकर जयकिशन उनके सहायक थे, लेकिन बरसात के लिए संगीत की रिकार्डिंग के शुरुआती दौर में जब राजकपूर को पता चला कि बरसात के लिए बनायी एक धुन राम गाँगुली उसी समय बन रही एक दूसरी फ़िल्म के लिए प्रयुक्त कर रहे हैं तो वे आपा खो बैठे। शंकर जयकिशन की प्रतिभा के तो वो कायल थे ही और जब उन्होंने शंकर के द्वारा उनकी लिखी कम्पोज़िशन 'अम्बुआ का पेड़ है, वही मुडेर है, मेरे बालमा, अब काहे की देर है' की बनायी धुन सुनी तो उन्होंने राम गाँगुली की जगह शंकर जयकिशन को ही बरसात का संगीत सौंप दिया। यही धुन बाद में 'जिया बेकरार है, छायी बहार है' के रूप में 'बरसात' में आयी। फ़िल्म बरसात में उनकी जोड़ी ने जिया बेकरार है और बरसात में हमसे मिले तुम सजन जैसा सुपरहिट संगीत दिया। फ़िल्म की कामयाबी के बाद शंकर जयकिशन बतौर संगीतकार अपनी पहचान बनाने मे सफल हो गये। इसे महज एक संयोग ही कहा जायेगा कि फ़िल्म बरसात से ही गीतकार [[शैलेन्द्र]] और हसरत जयपुरी ने भी अपने सिने कैरियर की शुरूआत की थी। फ़िल्म बरसात की सफलता के बाद शंकर जयकिशन राजकपूर के चहेते संगीतकार बन गये। इसके बाद राजकपूर की फ़िल्मों के लिये शंकर जयकिशन ने बेमिसाल संगीत देकर उनकी फ़िल्मों को सफल बनाने मे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।<ref name="LH"/> | शंकर जयकिशन की मुलाक़ात भी अजीब ढंग से हुई। ऑपेरा हाउस थियेटर के पास की व्यायामशाला में कसरत के लिए शंकर जाया करते थे और वहीं दत्ताराम से उनकी मुलाक़ात हुई। दत्ताराम शंकर से तबले और ढोलक की बारीकियाँ सीखने लगे, और एक दिन उन्हें फ़िल्मों में संगीत का काम दिलाने के लिए दादर में गुजराती फ़िल्मकार चंद्रवदन भट्ट के पास ले गये। वहीं जयकिशन भी फ़िल्मों में काम की तलाश में आये हुए थे। इंतज़ार के क्षणों में ही बातों में शंकर को पता चला कि जयकिशन हारमोनियम बजाते थे। उस समय सौभाग्य से पृथ्वी थियेटर में हारमोनियम मास्टर की जगह ख़ाली थी। शंकर ने प्रस्ताव रखा तो जयकिशन झट से मान गये और इस तरह पृथ्वी थियेटर्स के परचम तले शंकर और जयकिशन साथ-साथ काम करने लगे। 'पठान' में दोनों ने साथ-साथ अभिनय भी किया। काम के साथ-साथ दोस्ती भी प्रगाढ़ होती गयी। शंकर साथ-साथ हुस्नलाल भगतराम के लिए भी तबला बजाने का काम करते थे और दोनों भाइयों से भी संगीत की कई बारीकियाँ उन्होंने सीखीं। | ||
पृथ्वी थियेटर्स में ही काम करते करते शंकर और जयकिशन [[राजकपूर]] के भी क़रीबी हो गए। हालाँकि राज कपूर की पहली फ़िल्म के संगीतकार थे पृथ्वी थियेटर्स के वरिष्ठ संगीतकार राम गाँगुली और शंकर जयकिशन उनके सहायक थे, लेकिन बरसात के लिए संगीत की रिकार्डिंग के शुरुआती दौर में जब राजकपूर को पता चला कि बरसात के लिए बनायी एक धुन राम गाँगुली उसी समय बन रही एक दूसरी फ़िल्म के लिए प्रयुक्त कर रहे हैं तो वे आपा खो बैठे। शंकर जयकिशन की प्रतिभा के तो वो कायल थे ही और जब उन्होंने शंकर के द्वारा उनकी लिखी कम्पोज़िशन 'अम्बुआ का पेड़ है, वही मुडेर है, मेरे बालमा, अब काहे की देर है' की बनायी धुन सुनी तो उन्होंने राम गाँगुली की जगह शंकर जयकिशन को ही बरसात का संगीत सौंप दिया। यही धुन बाद में 'जिया बेकरार है, छायी बहार है' के रूप में 'बरसात' में आयी। फ़िल्म बरसात में उनकी जोड़ी ने जिया बेकरार है और बरसात में हमसे मिले तुम सजन जैसा सुपरहिट संगीत दिया। फ़िल्म की कामयाबी के बाद शंकर जयकिशन बतौर संगीतकार अपनी पहचान बनाने मे सफल हो गये। इसे महज एक संयोग ही कहा जायेगा कि फ़िल्म बरसात से ही गीतकार [[शैलेन्द्र]] और हसरत जयपुरी ने भी अपने सिने कैरियर की शुरूआत की थी। फ़िल्म बरसात की सफलता के बाद शंकर जयकिशन राजकपूर के चहेते संगीतकार बन गये। इसके बाद राजकपूर की फ़िल्मों के लिये शंकर जयकिशन ने बेमिसाल संगीत देकर उनकी फ़िल्मों को सफल बनाने मे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।<ref name="LH"/> | |||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{संगीतकार}} | {{संगीतकार}} | ||
[[Category:संगीतकार]][[Category:चरित कोश]][[Category:सिनेमा]] | [[Category:संगीतकार]][[Category:चरित कोश]][[Category:सिनेमा]][[Category:संगीत कोश]][[Category:कला कोश]][[Category:सिनेमा कोश]] | ||
[[Category:संगीत कोश]][[Category:कला कोश]][[Category:सिनेमा कोश]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
Latest revision as of 05:28, 26 April 2018
शंकर (संगीतकार)
| |
पूरा नाम | शंकर सिंह रघुवंशी |
प्रसिद्ध नाम | शंकर |
जन्म | 15 अक्तूबर, 1922 |
जन्म भूमि | हैदराबाद |
मृत्यु | 26 अप्रॅल 1987 (आयु 64 वर्ष) |
मृत्यु स्थान | मुम्बई |
अभिभावक | पिता- रामसिंह रघुवंशी |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | संगीतकार |
मुख्य रचनाएँ | मेरी आंखों में बस गया कोई रे, जिया बेकरार है छाई बहार है, मुझे किसी से प्यार हो गया, हवा में उडता जाए मेरा लाल दुपट्टा मलमल का, अब मेरा कौन सहारा, बरसात में हमसे मिले तुम सजन, तुमसे मिले हम, बिछड गई मैं घायल हिरनी आदि। |
पुरस्कार-उपाधि | नौ बार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फ़िल्मफेयर पुरस्कार |
नागरिकता | भारतीय |
संबंधित लेख | जयकिशन |
अन्य जानकारी | शंकर और जयकिशन की जोड़ी ने लगभग 170 से भी ज्यादा फ़िल्मों में संगीत दिया। |
शंकर सिंह रघुवंशी (अंग्रेज़ी: Shankar Singh Raghuvanshi, जन्म: 15 अक्टूबर 1922 - मृत्यु: 26 अप्रॅल 1987) भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध संगीतकार थे। इन्होंने अपनी जोड़ी संगीतकार जयकिशन के साथ मिलकर बनाई और शंकर-जयकिशन नाम से प्रसिद्ध हुए।
जीवन परिचय
15 अक्टूबर 1922 को जन्मे शंकर के पिता रामसिंह रघुवंशी मूलत: मध्य प्रदेश के थे और काम के सिलसिले में हैदराबाद में बस गये थे। शंकर को शुरु से ही कुश्ती का शौक़ था और उनका कसरती बदन बचपन के इसी शौक़ का परिणाम था। घर के पास के एक शिव मंदिर में पूजा अर्चना के दौरान तबला वादक का वादन भी बचपन में बहुत आकर्षित करता था। तबला बजाने की लगन दिनों दिन बढ़ती गयी। महफ़िलों में तबला बजाते हुए उस्ताद नसीर खान की निगाह उन पर पड़ी और शंकर उनके चेले हो गये। माली हालात ऐसे थे कि ट्यूशन भी करनी पड़ी। कहते हैं कि हैदराबाद में ही एक बार किसी गली से गुजरते हुए तबला सुनकर शंकर एक तवायफ़ के कोठे पर पहुँच गये और तबलावादक को ग़लत बजाने पर टोक दिया। बात बढ़ी तो शंकर ने इस सफ़ाई से बजाकर अपनी क़ाबिलियत का परिचय दिया कि वाह-वाही हो गयी। शंकर अपनी कला को और निखारने के लिए एक नाट्य मंडली में शामिल हो गये, जिसके संचालक मास्टर सत्यनारायण थे और हेमावती ने बम्बई जा कर पृथ्वी थियेटर्स में नौकरी कर ली, तो शंकर भी 75 रुपये प्रतिमाह पर पृथ्वी थियेटर्स में तबलावादक बन गये। पृथ्वी थियेटर्स के नाटकों में कुछ छोटी-मोटी भूमिकाएँ मिलने लगीं और वहीं शंकर ने सितार बजाना भी सीख लिया।[1]
जयकिशन से मुलाक़ात
- REDIRECTसाँचा:मुख्य
शंकर जयकिशन की मुलाक़ात भी अजीब ढंग से हुई। ऑपेरा हाउस थियेटर के पास की व्यायामशाला में कसरत के लिए शंकर जाया करते थे और वहीं दत्ताराम से उनकी मुलाक़ात हुई। दत्ताराम शंकर से तबले और ढोलक की बारीकियाँ सीखने लगे, और एक दिन उन्हें फ़िल्मों में संगीत का काम दिलाने के लिए दादर में गुजराती फ़िल्मकार चंद्रवदन भट्ट के पास ले गये। वहीं जयकिशन भी फ़िल्मों में काम की तलाश में आये हुए थे। इंतज़ार के क्षणों में ही बातों में शंकर को पता चला कि जयकिशन हारमोनियम बजाते थे। उस समय सौभाग्य से पृथ्वी थियेटर में हारमोनियम मास्टर की जगह ख़ाली थी। शंकर ने प्रस्ताव रखा तो जयकिशन झट से मान गये और इस तरह पृथ्वी थियेटर्स के परचम तले शंकर और जयकिशन साथ-साथ काम करने लगे। 'पठान' में दोनों ने साथ-साथ अभिनय भी किया। काम के साथ-साथ दोस्ती भी प्रगाढ़ होती गयी। शंकर साथ-साथ हुस्नलाल भगतराम के लिए भी तबला बजाने का काम करते थे और दोनों भाइयों से भी संगीत की कई बारीकियाँ उन्होंने सीखीं।
पृथ्वी थियेटर्स में ही काम करते करते शंकर और जयकिशन राजकपूर के भी क़रीबी हो गए। हालाँकि राज कपूर की पहली फ़िल्म के संगीतकार थे पृथ्वी थियेटर्स के वरिष्ठ संगीतकार राम गाँगुली और शंकर जयकिशन उनके सहायक थे, लेकिन बरसात के लिए संगीत की रिकार्डिंग के शुरुआती दौर में जब राजकपूर को पता चला कि बरसात के लिए बनायी एक धुन राम गाँगुली उसी समय बन रही एक दूसरी फ़िल्म के लिए प्रयुक्त कर रहे हैं तो वे आपा खो बैठे। शंकर जयकिशन की प्रतिभा के तो वो कायल थे ही और जब उन्होंने शंकर के द्वारा उनकी लिखी कम्पोज़िशन 'अम्बुआ का पेड़ है, वही मुडेर है, मेरे बालमा, अब काहे की देर है' की बनायी धुन सुनी तो उन्होंने राम गाँगुली की जगह शंकर जयकिशन को ही बरसात का संगीत सौंप दिया। यही धुन बाद में 'जिया बेकरार है, छायी बहार है' के रूप में 'बरसात' में आयी। फ़िल्म बरसात में उनकी जोड़ी ने जिया बेकरार है और बरसात में हमसे मिले तुम सजन जैसा सुपरहिट संगीत दिया। फ़िल्म की कामयाबी के बाद शंकर जयकिशन बतौर संगीतकार अपनी पहचान बनाने मे सफल हो गये। इसे महज एक संयोग ही कहा जायेगा कि फ़िल्म बरसात से ही गीतकार शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी ने भी अपने सिने कैरियर की शुरूआत की थी। फ़िल्म बरसात की सफलता के बाद शंकर जयकिशन राजकपूर के चहेते संगीतकार बन गये। इसके बाद राजकपूर की फ़िल्मों के लिये शंकर जयकिशन ने बेमिसाल संगीत देकर उनकी फ़िल्मों को सफल बनाने मे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 शंकर जयकिशन के संगीत का आज भी नहीं है मुकाबला (हिंदी) लाइव हिंदुस्तान। अभिगमन तिथि: 24 जुलाई, 2013।
संबंधित लेख