निसिचर हीन करउँ महि: Difference between revisions

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<h4 style="text-align:center;">रामचरितमानस तृतीय सोपान (अरण्य काण्ड) : राक्षस वध की प्रतिज्ञा करना, सुतीक्ष्ण जी का प्रेम, अगस्त्य मिलन, अगस्त्य संवाद</h4>
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रामचरितमानस तृतीय सोपान (अरण्य काण्ड) : राक्षस वध की प्रतिज्ञा करना, सुतीक्ष्ण जी का प्रेम, अगस्त्य मिलन, अगस्त्य संवाद

निसिचर हीन करउँ महि
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली चौपाई और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड अरण्यकाण्ड
दोहा

निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।
सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥

भावार्थ

श्री रामजी ने भुजा उठाकर प्रण किया कि मैं पृथ्वी को राक्षसों से रहित कर दूँगा। फिर समस्त मुनियों के आश्रमों में जा-जाकर उनको (दर्शन एवं सम्भाषण का) सुख दिया॥9॥



left|30px|link=जानतहूँ पूछिअ कस स्वामी|पीछे जाएँ निसिचर हीन करउँ महि right|30px|link=मुनि अगस्ति कर सिष्य सुजाना|आगे जाएँ


दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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