प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना: Difference between revisions
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प्रभु को पहचानकर | प्रभु को पहचानकर [[हनुमान|हनुमान जी]] उनके चरण पकड़कर पृथ्वी पर गिर पड़े (उन्होंने साष्टांग दंडवत् प्रणाम किया)। ([[शिव|शिव जी]] कहते हैं-) हे पार्वती! वह सुख वर्णन नहीं किया जा सकता। शरीर पुलकित है, मुख से वचन नहीं निकलता। वे प्रभु के सुंदर वेष की रचना देख रहे हैं!॥3॥ | ||
Latest revision as of 10:47, 18 May 2016
प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | किष्किंधा काण्ड |
प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना। सो सुख उमा जाइ नहिं बरना॥ |
- भावार्थ
प्रभु को पहचानकर हनुमान जी उनके चरण पकड़कर पृथ्वी पर गिर पड़े (उन्होंने साष्टांग दंडवत् प्रणाम किया)। (शिव जी कहते हैं-) हे पार्वती! वह सुख वर्णन नहीं किया जा सकता। शरीर पुलकित है, मुख से वचन नहीं निकलता। वे प्रभु के सुंदर वेष की रचना देख रहे हैं!॥3॥
left|30px|link=नाथ बालि अरु मैं द्वौ भाइ|पीछे जाएँ | प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना | right|30px|link=अर्ध राति पुर द्वार पुकारा|आगे जाएँ |
चौपाई- चौपाई मात्रिक सम छन्द का एक भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख