लछिमन गए बनहिं जब: Difference between revisions
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Latest revision as of 08:23, 24 May 2016
लछिमन गए बनहिं जब
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अरण्यकाण्ड |
लछिमन गए बनहिं जब लेन मूल फल कंद। |
- भावार्थ
लक्ष्मण जब कंद-मूल-फल लेने के लिए वन में गए, तब (अकेले में) कृपा और सुख के समूह राम हँसकर जानकी से बोले - ॥ 23॥
left|30px|link=चला अकेल जान चढ़ि तहवाँ|पीछे जाएँ | लछिमन गए बनहिं जब | right|30px|link=सुनहु प्रिया ब्रत रुचिर सुसीला|आगे जाएँ |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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