मातु पितहि जनि सोचबस: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
m (Text replacement - "करनेवाला" to "करने वाला")
 
Line 37: Line 37:
{{poemclose}}
{{poemclose}}
;भावार्थ-
;भावार्थ-
अरे राजा के बालक! तू अपने माता-पिता को सोच के वश न कर। मेरा फरसा बड़ा भयानक है, यह गर्भों के बच्चों का भी नाश करनेवाला है॥ 272॥
अरे राजा के बालक! तू अपने माता-पिता को सोच के वश न कर। मेरा फरसा बड़ा भयानक है, यह गर्भों के बच्चों का भी नाश करने वाला है॥ 272॥


{{लेख क्रम4| पिछला=भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=बिहसि लखनु बोले मृदु बानी}}
{{लेख क्रम4| पिछला=भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=बिहसि लखनु बोले मृदु बानी}}

Latest revision as of 13:52, 6 September 2017

मातु पितहि जनि सोचबस
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
भाषा अवधी भाषा
शैली सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड बालकाण्ड
दोहा

मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर॥ 272॥

भावार्थ-

अरे राजा के बालक! तू अपने माता-पिता को सोच के वश न कर। मेरा फरसा बड़ा भयानक है, यह गर्भों के बच्चों का भी नाश करने वाला है॥ 272॥


left|30px|link=भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही|पीछे जाएँ मातु पितहि जनि सोचबस right|30px|link=बिहसि लखनु बोले मृदु बानी|आगे जाएँ

दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख