आयुध सर्ब समर्पि कै प्रभु: Difference between revisions
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Latest revision as of 14:18, 24 July 2016
रामचरितमानस प्रथम सोपान (बालकाण्ड) : विश्वामित्र की यज्ञ रक्षा
आयुध सर्ब समर्पि कै प्रभु
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
आयुध सर्ब समर्पि कै प्रभु निज आश्रम आनि। |
- भावार्थ-
सब अस्त्र-शस्त्र समर्पण करके मुनि प्रभु राम को अपने आश्रम में ले आए और उन्हें परम हितू जानकर भक्तिपूर्वक कंद, मूल और फल का भोजन कराया॥ 209॥
left|30px|link=तब रिषि निज नाथहि जियँ चीन्ही|पीछे जाएँ | आयुध सर्ब समर्पि कै प्रभु | right|30px|link=प्रात कहा मुनि सन रघुराई|आगे जाएँ |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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