साँची: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
mNo edit summary
Line 31: Line 31:
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{बौद्ध दर्शन2}}{{बौद्ध दर्शन}}
{{बौद्ध दर्शन2}}{{बौद्ध दर्शन}}
 
{{मध्य प्रदेश के पर्यटन स्थल}}
[[Category:ऐतिहासिक_स्थल]][[Category:बौद्ध_धार्मिक_स्थल]][[Category:धार्मिक_स्थल_कोश]][[Category:विश्‍व विरासत स्‍थल]]
[[Category:ऐतिहासिक_स्थल]][[Category:बौद्ध_धार्मिक_स्थल]][[Category:धार्मिक_स्थल_कोश]][[Category:विश्‍व विरासत स्‍थल]]
[[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]]
[[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]]
[[Category:मध्य प्रदेश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Revision as of 04:20, 19 January 2011

[[चित्र:Buddha-Stupas.jpg|thumb|250px|बुद्ध स्तूप, साँची
Buddha Stupa, Sanchi]] भारत में मध्य प्रदेश के रायसेन ज़िले में स्थित एक छोटा सा गांव है। यह भोपाल से 46 कि.मी. पूर्वोत्तर में, तथा बेसनगर और विदिशा से 10 कि.मी. की दूरी पर मध्य-प्रदेश के मध्य भाग में है। यहाँ बौद्ध स्मारक हैं, जो कि तीसरी शताब्दी ई.पू. से बारहवीं शताब्दी के बीच के हैं। यह रायसेन ज़िले की एक नगर पंचायत है। यहीं यह स्तूप स्थित है। इस स्तूप को घेरे हुए कई तोरण भी हैं। यह प्रेम, शांति, विश्वास और साहस का प्रतीक है। साँची का स्तूप, सम्राट अशोक महान ने तीसरी शती, ई.पू. में बनवाया था। इसका केन्द्र, एक सामान्य अर्ध्दगोलाकार, ईंट निर्मित ढांचा था, जो कि बुद्ध के कुछ अवशेषों पर बना था। इसके शिखर पर एक छत्र था, जो कि स्मारक को दिये गये सम्मान का प्रतीक था।

यह प्रसिद्ध स्थान, जहां अशोक द्वारा निर्मित एक महान स्तूप, शुंगों के शासनकाल में निर्मित इस स्तूप के भव्य तोरणद्वार तथा उन पर की गई जगत् प्रसिद्ध मूर्तिकारी भारत के प्राचीन वास्तु तथा मूर्तिकला के सर्वोत्तम उदाहरणों में हैं, बौद्ध की प्रसिद्ध ऐश्वर्यशालिनी नगरी विदिशा (भीलसा) के निकट स्थित है। जान पड़ता है कि बौद्धकाल में साँची , महानगरी विदिशा की उपनगरी तथा विहार-स्थली थी। सर जोन मार्शल के मत में [1] कालिदास ने नीचगिरि नाम से जिस स्थान का वर्णन मेघदूत में विदिशा के निकट किया है, वह साँची की पहाड़ी ही है। [[चित्र:Sanchi-Stupa.jpg|thumb|250px|left|साँची स्तूप
Sanchi Stupa]] कहा जाता है कि अशोक ने अपनी प्रिय पत्नी देवी के कहने पर ही साँची में यह सुंदर स्तूप बनवाया था। देवी, विदिशा के एक श्रेष्ठी की पुत्री थी और अशोक ने उस समय उससे विवाह किया था जब वह अपने पिता के राज्यकाल में विदिशा का कुमारामात्य था।

यह स्तूप एक ऊंची पहाड़ी पर निर्मित है। इसके चारों ओर सुंदर परिक्रमापथ है। बालु-प्रस्तर के बने चार तोरण स्तूप के चतुर्दिक् स्थित हैं जिन के लंबे-लंबे पट्टकों पर बुद्ध के जीवन से संबंधित, विशेषत: जातकों में वर्णित कथाओं का मूर्तिकारी के रूप में अद्भुत अंकन किया गया है। इस मूर्तिकारी में प्राचीन भारतीय जीवन के सभी रूपों का दिग्दर्शन किया गया है। मनुष्यों के अतिरिक्त पशु-पक्षी तथा पेड़-पौधों के जीवंत चित्र इस कला की मुख्य विशेषता हैं। सरलता, सामान्य, और सौंदर्य की उद्भभावना ही साँची की मूर्तिकला की प्रेरणात्मक शक्ति है। इस मूर्तिकारी में गौतम बुद्ध की मूर्ति नहीं पाई जाती क्योंकि उस समय तक (शुंग काल, द्वितीय शती ई.पू.) बुद्ध को देवता के रूप में मूर्ति बनाकर नहीं पूजा जाता थां कनिष्क के काल में महायान धर्म के उदय होने के साथ ही बौद्ध धर्म में गौतम बुद्ध की मूर्ति का प्रवेश हुआ। साँची में बुद्ध की उपस्थिति का आभास उनके कुछ विशिष्ट प्रतीकों द्वारा किया गया है, जैसे उनके गृहपरित्याग का चित्रण अश्वारोही से रहित, केवल दौड़ते हुए घोड़े के द्वारा, जिस पर एक छत्र स्थापित है, किया गया है। [[चित्र:Sanchi-Stupa-Sanchi.jpg|thumb|250px|बुद्ध स्तूप, साँची
Buddha Stupa, Sanchi]] इसी प्रकार बुद्ध की बोधि का आभास पीपल के वृक्ष के नीचे ख़ाली वज्रासन द्वारा दिया गया है। पशु-पक्षियों के चित्रण में साँची का एक मूर्तिचित्र अतीव मनोहर है। इसमें जानवरों के एक चिकित्सालय का चित्रण है जहां एक तोते की विकृत आँख का एक वानर मनोरंजक ढंग से परीक्षण कर रहा है। तपस्वी बुद्ध को एक वानर द्वारा दिए गए पायस का चित्रण भी अद्भुत रूप से किया गया है। एक कटोरे में खीर लिए हुए एक वानर का अश्वत्थ वृक्ष के नीचे वज्रासन के निकट धीरे-धीरे आने तथा ख़ाली कटोरा लेकर लौट जाने का अंकन है जिसमें वास्तविकता का भाव दिखाने के लिए उसी वानर की लगातार कई प्रतिमाएं चित्रित हैं। साँची की मूर्तिकला दक्षिण भारत की अमरावती की मूर्तिकला की भांति ही पूर्व बौद्ध कालीन भारत के सामन्य तथा सरल जीवन की मनोहर झांकी प्रस्तुत करती है। साँची के इस स्तूप में से उत्खनन द्वारा सारिपुत्र तथा मोग्गलायन नामक भिक्षुओं के अस्थिअवशेष प्राप्त हुए थे जो अब स्थानीय संग्रहालय में सुरक्षित हैं। साँची में अशोक के समय का एक दूसरा छोटा स्तूप भी है। इसमें तोरण-द्वार नहीं है। अशोक का एक प्रस्तर-स्तंभ जिस पर मौर्य सम्राट् का शिलालेख उत्कीर्ण है यहाँ के महत्त्वपूर्ण स्मारकों में से है। यह स्तंभ भग्नावस्था में प्राप्त हुआ था।

साँची से मिलने वाले कई अभिलेखों में इस स्थान को काकनादबोट नाम से अभिहित किया गया है। इनमें से प्रमुख 131 गुप्त संवत (450-51) ई. का है जो कुमारगुप्त प्रथम के शासनकाल से संबंधित है। इसमें बौद्ध उपासक सनसिद्ध की पत्नी उपासिका हरिस्वामिनी द्वारा काकनादबोट में स्थित आर्यसंघ के नाम कुछ धन के दान में दिए जाने का उल्लेख है। एक अन्य लेख एक स्तंभ पर उत्कीर्ण है जिसका संबंध गोसुरसिंहबल के पुत्र विहारस्वामिन से है। यह भी गुप्तकालीन है।

वीथिका


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ए गाइड टु साँची

बाहरी कडियाँ

संबंधित लेख

Template:बौद्ध दर्शन2Template:बौद्ध दर्शन