नांदेड़: Difference between revisions
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नांदेड़ की प्रसिद्धि का विशेष कारण [[सिक्ख धर्म|सिक्खों]] के दसवें [[गुरु गोविन्द सिंह]] की समाधि है। कहते हैं कि गुरु गोविन्द सिंह ने नांदेड़ निवासी माधोदास बैरागी (बंदा बैरागी) की वीरता से सम्बन्धित यशोगान सुन रखे थे, अतः उनसे मिलने वे नंदेड़ आये। जहाँ गुरु गोविन्द सिंह ने अस्थायी डेरा लगाया था, वह आज भी संगत साहब गुरुद्वारा कहलाया है। गोदावरी के तट पर वह स्थान जहाँ गुरु की बंदा से भेंट हुई थी, बंदाघाट के नाम से प्रसिद्ध है। 1708 ई. में नांदेड़ में ही गुरु गोविन्द सिंह एक क्रूर पठान के हाथों घायल होकर कुछ समय पश्चात् स्वर्गवासी हो गए। उनकी चिता की भस्म पर एक समाधि बनायी गई थी, जो अब | नांदेड़ की प्रसिद्धि का विशेष कारण [[सिक्ख धर्म|सिक्खों]] के दसवें [[गुरु गोविन्द सिंह]] की समाधि है। कहते हैं कि गुरु गोविन्द सिंह ने नांदेड़ निवासी माधोदास बैरागी (बंदा बैरागी) की वीरता से सम्बन्धित यशोगान सुन रखे थे, अतः उनसे मिलने वे नंदेड़ आये। जहाँ गुरु गोविन्द सिंह ने अस्थायी डेरा लगाया था, वह आज भी संगत साहब गुरुद्वारा कहलाया है। गोदावरी के तट पर वह स्थान जहाँ गुरु की बंदा से भेंट हुई थी, बंदाघाट के नाम से प्रसिद्ध है। 1708 ई. में नांदेड़ में ही गुरु गोविन्द सिंह एक क्रूर पठान के हाथों घायल होकर कुछ समय पश्चात् स्वर्गवासी हो गए। उनकी चिता की भस्म पर एक समाधि बनायी गई थी, जो अब हुज़ूर साहब का गुरुद्वारा के नाम से सिक्खों का महत्त्वपूर्ण तीर्थ है। इस गुरुद्वारे के फर्श और स्तम्भों पर सुन्दर काम हुआ है। गुरुद्वारे के गुम्बद, छत और बीच के बरामदे पर सोने का काम है। | ||
नांदेड़ तीन मराठी संत कवियों का जन्म स्थल है-विष्णुपंत शेष और वामन पंडित। यह शहर [[संस्कृत]] अध्ययन केन्द्र के रूप में भी विख्यात रहा है। प्राथमिक रूप से नांदेड़ एक वाणिज्यिक केन्द्र है। आस-पास का क्षेत्र कृषि प्रधान है। | नांदेड़ तीन मराठी संत कवियों का जन्म स्थल है-विष्णुपंत शेष और वामन पंडित। यह शहर [[संस्कृत]] अध्ययन केन्द्र के रूप में भी विख्यात रहा है। प्राथमिक रूप से नांदेड़ एक वाणिज्यिक केन्द्र है। आस-पास का क्षेत्र कृषि प्रधान है। | ||
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Revision as of 13:57, 8 March 2011
नांदेड़ नगर पूर्व-मध्य महाराष्ट्र में गोदावरी तट पर स्थित है। पुराणों में नांदेड़ की गणना पवित्र धार्मिक स्थलों में की गई है। एक परम्परा के अनुसार इस स्थान का प्राचीन नाम नवनंद था, क्योंकि इस स्थान पर नौ ऋषियों ने तप किया था। इस नगर का सम्बन्ध चालुक्यों, काकतीय जैसे राजवंशों से रहा। बहमनी काल में नांदेड़ एक बड़ा व्यापारिक स्थल बन गया था, क्योंकि गोदावरी तट पर स्थित होने के कारण यह उत्तरी और दक्षिणी भारत के बीच नदियों द्वारा होने वाले व्यापार के मार्ग पर पड़ता था। बहमनी काल में नांदेड़ को कई मुस्लिम संतों ने अपना आवास बनाया था। मलिक अंबर और कुतुबशाही सुल्तानों की बनवाई हुई दो मस्जिदें यहाँ स्थित हैं।
प्रसिद्धि
नांदेड़ की प्रसिद्धि का विशेष कारण सिक्खों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह की समाधि है। कहते हैं कि गुरु गोविन्द सिंह ने नांदेड़ निवासी माधोदास बैरागी (बंदा बैरागी) की वीरता से सम्बन्धित यशोगान सुन रखे थे, अतः उनसे मिलने वे नंदेड़ आये। जहाँ गुरु गोविन्द सिंह ने अस्थायी डेरा लगाया था, वह आज भी संगत साहब गुरुद्वारा कहलाया है। गोदावरी के तट पर वह स्थान जहाँ गुरु की बंदा से भेंट हुई थी, बंदाघाट के नाम से प्रसिद्ध है। 1708 ई. में नांदेड़ में ही गुरु गोविन्द सिंह एक क्रूर पठान के हाथों घायल होकर कुछ समय पश्चात् स्वर्गवासी हो गए। उनकी चिता की भस्म पर एक समाधि बनायी गई थी, जो अब हुज़ूर साहब का गुरुद्वारा के नाम से सिक्खों का महत्त्वपूर्ण तीर्थ है। इस गुरुद्वारे के फर्श और स्तम्भों पर सुन्दर काम हुआ है। गुरुद्वारे के गुम्बद, छत और बीच के बरामदे पर सोने का काम है। नांदेड़ तीन मराठी संत कवियों का जन्म स्थल है-विष्णुपंत शेष और वामन पंडित। यह शहर संस्कृत अध्ययन केन्द्र के रूप में भी विख्यात रहा है। प्राथमिक रूप से नांदेड़ एक वाणिज्यिक केन्द्र है। आस-पास का क्षेत्र कृषि प्रधान है।
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