ख़रबूज़: Difference between revisions
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Revision as of 11:25, 5 February 2011
ख़रबूज़ एवं खीरा वर्गीय ग्रीष्म ऋतु की मुख्य फ़सल समझी जाती है। वह अपने स्वाद एवं मिठास के कारण अधिक लोकप्रिय है। गर्मी के इस मौसम में अपने शरीर में पानी की कमी को दूर करने के लिए ख़रबूज़ का सेवन एक बेहतर विकल्प है। ख़रबूज़ पूरे भारत में गर्मी का सबसे लोकप्रिय फल हैं। यह फल न केवल आपकी प्यास बुझाता हैं, बल्कि शरीर में पानी की उचित मात्रा को भी हमेशा बनाए रखते हैं। पोषण की दृष्टि से ख़रबूज़ में खनिज लवण और विटामिन भले ही कम मात्रा में पाए जाते हैं, लेकिन इन फलों का 95 प्रतिशत से अधिक भाग पानी का होता है। यह फल ताजगी प्रदान करने वाला फल है। ख़रबूज़ से तरह-तरह के शरबत, जूस, जेली व जैम तैयार किए जाते हैं। सलाद, आइसक्रीम और मिल्क शेक में भी इन्हें मिलाकर खाया जाता है।
ख़रबूज़ एव तरबूज़ फल राजस्थान के मैदानी भागों तथा नदियों के घाटों में इसकी खेती सगमतापूर्वक की जा सकती है। जहाँ सामान्यत: कोई अन्य फ़सल नहीं होती। ख़रबूज़ की संस्कृत ग्रन्थों में मधुपाका कहकर सराहना की गई है। कस्तूरी जैसी महक और स्वाद के कारण इसे यह नाम दिया गया है। ख़रबूज़े के बाहरी छिलके में जाल सा बना होने के कारण यह तरबूज़ से भिन्न है। इसका छिलका मुलायम और पीले,नारंगी, क्रीम अथवा हरे रंग का होता है। इसका गूदा प्राय: नारंगी रंग का होता है। ख़रबूज़ के बीज भी खाए जाते हैं। इसके बीज बहुत स्वादिष्ट होते हैं। अक्सर मिठाइयों में बादाम और पिस्ते के स्थान पर ख़रबूज़ के छिलके उतार कर उसके बीज का उपयोग किया जाता है। ख़रबूज़ का उपयोग एक्जिमा जैसी बीमारी के लिए बहुत लाभकारी है। इसके बीज में प्रोटीन और तेल काफ़ी मात्रा में होती है।
उत्पत्ति
ख़रबूज़ जन्म स्थान परसिया तथा इससे लगे क्षेत्र, जिसमें भारत भी माना जाता है। अन्य खीरा वर्गीय फ़सलों की अपेक्षा इसका आहार तथा मूल्य अधिक नहीं होता। रंगीन गूदे वाली जातियों में अपेक्षाकृत विटामिन अधिक पाया जाता है। ख़रबूज़ के बीजों को अधिक शक्ति दायक माना जाता है।
जलवायु
ख़रबूज़ को गर्म एवं शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। फल पकते समय विशेष रूप से तेज धूप गर्म हवा (लू) फलों में मिठास के लिए आवश्यक समझी जाती है वातावरण नम होने के कारण इसमें रोग अधिक लग जाते है, फलों का विकास अवरूद्ध हो जाता है तथा फलों में कीट-पतंगों का आक्रमण बढ़ जाता है।
भूमि
ख़रबूज़ की सफलतम कृषि के लिए हल्की उपजाऊ दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है, जिसका जल निकास अच्छा हो। यह मुख्य रूप नदियों के कछार की मिट्टी में वह मिट्टी जिसमें वर्षा ऋतु में बाढ़ का पानी भर जाता है। और बिना सींचे इसमें फ़सलें पैदा की जाती है, साथ-साथ इसको बलुई, दोमट सिल्ट, दोमट मिट्टियों में भी उगाया जा सकता है। इसकी खेती के लिए मिट्टी की PH5-6.5.5 होनी चाहिये।
जातियाँ
विदेशी जातियाँ
पी. एम. आर. 45, जुकुम्बा कैम्पों।
देशी जातियाँ
स्थानीय प्रजातियाँ -लखनऊ सफेदा हरी धारी फैजावादी, इलाहाबादी कजरा, अमृत, पुरी कुताबा, टोंक, शरदा, बागपत, कोताना।
उन्नतशील जातियाँ
पूसा शरबती, हरा मधु, दुर्गापुरी मधु, ख़रबूज़ 445, अकी राजहंस, आर्का जाति, पंजाब सुनहरी सलैक्सन-1 इण्डो अमेरिकन हाइब्रिड सीड कम्पनी द्वारा 'स्वर्ण' शंकर जाति निकाली गई है।
बीज बोना
ख़रबूज़ कछारी भूमि में बोने के लिये रेत को पानी के तल तक खोदते हैं और उसमें खाद मिलाकर फिर से भर देते हैं, तथा उनमें बीजों को बो देते हैं। अन्य प्रकार की मिट्टियों में प्रत्येक दो पंक्तियों के पश्चात 60 सेटीमीटर. चौड़ी सिंचाई की नाली बनाई जाती है, इस प्रकार से दो पंक्तियों के मध्य का स्थान 2 से 2.5 मीटर रहता है। इन पंक्तियों में उचित दूरी पर गड्डे बनाकर गोबर की खाद, सुपर फॉस्फेट तथा पोटेशियम क्लोराइड मिलाकर भरते हैं।
खाद एवं उर्वरक
प्रति हैक्टर 80 किलोग्राम. नत्रजन, 50 किलोग्राम. फॉस्फोरस 50 किलोग्राम. तथा पोटाश की आवश्यकता होती है। बलुई दोमट मिट्टी में 250 कुंतल गोबर की खाद प्रति हैक्टर दी जाती है तथा शेष नत्रजन की मात्रा बढ़वार एवं फूल के समय देते हैं।
अंतरण एवं बीज दर
ख़रबूज़ का 3 से 3.5 किलोग्राम. बीज एक हैक्टर क्षेत्र के लिए पर्याप्त समझा जाता है। प्रति गड्डा 3-4 बीज नमी की मात्रा के अनुसार 1 से 1.5 सेटीमीटर. गहराई पर बोये जाते हैं। पंक्ति की दूरी 2 से 2.5 मीटर तथा पंक्ति में पौधे की दूरी 1 मीटर रखी जाती है। अगेती फ़सल के लिए 15*10 सेटीमीटर. आकार वाली पोलीथीन की थैलियों में नीचे से काटकर स्थाई स्थानों पर पौधों को रोक दिया जाता है। नदियों के कछारों में इसकी बोवाई दिसम्बर के अंतिम सप्ताह में कर देते हैं। साधारण रूप से इसकी बोवाई फरवरी माह में करते है।
सिंचाई
नदियों की कछारी भूमि में पानी की आवश्यकता नहीं होती है। खेतीं में बोई गई फ़सल एवं उसकी सिंचाई करना बहुत आवश्यक होता है। प्रारम्भ में लताओं के बढ़ने के समय पानी की अधिक आवश्यकता होती है। फलों के विकसित होने के बाद सिंचाई बन्द कर देते हैं। गर्मियों में दोमट भूमि में सिंचाई का अंतर 10-15 दिन रखा जाता है।
निकाई-गुड़ाई
ख़रबूज़ की बेलें भली-भांति फैलने से पहले 2-3 निकाई-गुड़ाई अधिक गहरी नहीं करनी चाहिये।
फलों की तोड़ाई
ख़रबूज़ के फलों की तोड़ाई बहुत सी बातों जैसे जाति, तापक्रम तथा बाज़ार की दूरी पर निर्भर करती है। ख़रबूज़े के रंग व सुगन्ध को देखकर व सूँधकर उसके पकने का सही अन्दाज लगाया जा सकता है। जब फल व बेल के डंठल के मध्य गोंद सा आ जाता है। तथा फल में डंठल के पास दरारें पड़ने लगती हैं, तो फल पक जाते हैं जिन्हें तोड़ लेना चाहिये। साधारणत: बीज बोने के बाद 85-100 दिन में फल पककर तैयार हो जाते हैं।
उपज
ख़रबूज़ की उपज बहुत सी बातों पर निर्भर करती है। फिर भी इसकी औसत पैदावर 150-200 कुंतल प्रति हैक्टर होती है।
बीज उत्पादन
ख़रबूज़ का सही बीज बाज़ार में उपलब्ध होना एक समस्या होती है क्योंकि इसकी बहुत सी जातियाँ पास-पास खेतों में लगी होती हैं तथा परसेचन द्वारा एक जाति का परागण दूसरी जाति से हो जाता है। बीज की अच्छी किस्म लेने के लिए फल को चख कर देखना चाहिये तथा बीजों को अधिक मीठें फलों से इकठ्ठा कर लेना चाहिये। तत्पश्चात इन बीजों को अलग से खेतों में बोना चाहिये। यह ध्यान रहे कि कम से कम 3-4 किलोमीटर. की परधि में इसकी अन्य जाति न लगाई गई हो। फिर से मीठें फलों से बीज इकठ्ठा कर लिया जाता है। एक वर्ष के चुनाव के बाद भी सभी ख़रबूज़ मीठें प्राप्त नहीं हो पाते हैं। इस प्रकार का चुनाव अगले कुछ वर्षों तक करते रहना चाहिये, जब तक कि अधिक मात्रा में उच्च कोटि के बीज प्राप्त नहीं हो जाते।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
कृषि