प्रयोग:लक्ष्मी3: Difference between revisions
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-लकड़ी से | -लकड़ी से | ||
{[[मोहनजोदड़ों]] कहाँ स्थिति है? | {[[मुअन जो दड़ो|मोहनजोदड़ों]] कहाँ स्थिति है? | ||
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-[[पंजाब]] | -[[पंजाब]] | ||
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-[[पंजाब]] | -[[पंजाब]] | ||
-[[मोहनजोदड़ो]] | -[[मोहनजोदड़ो]] | ||
-[[ | -सिंघ | ||
||[[चित्र:Harappa-seals.jpg|हड़प्पा मुहर, हड़प्पा|100px|right]] [[पाकिस्तान]] के [[पंजाब]] प्रान्त में स्थित 'माण्टगोमरी ज़िले' में [[रावी नदी]] के बायें तट पर यह पुरास्थल है। हड़प्पा में ध्वंशावशेषों के विषय में सबसे पहले जानकारी 1826 ई. में 'चार्ल्स मैन्सर्न' ने दी। 1856 ई. में 'ब्रण्टन बन्धुओं' ने हड़प्पा के पुरातात्विक महत्त्व को स्पष्ट किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हड़प्पा]] | |||
{[[हड़प्पा]] | {[[हड़प्पा]] के मिट्टी के बर्तनों पर सामान्यत: किस [[रंग]] का उपयोग हुआ था? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+[[लाल रंग]] | +[[लाल रंग]] | ||
-[[नीला रंग]] | -[[नीला रंग]] | ||
- | -पांडु रंग | ||
-[[गुलाबी रंग]] | -[[गुलाबी रंग]] | ||
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|type="()"} | |type="()"} | ||
-भट्टस्वामी | -भट्टस्वामी | ||
+ | +विष्णुगुप्त | ||
- | -राजशेखर | ||
- | -विशाखदत्त | ||
{चरक और नागार्जुन किसके दरबार की शोभा थे? | {चरक और [[नागार्जुन]] किसके दरबार की शोभा थे? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+[[कनिष्क]] | +[[कनिष्क]] | ||
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-[[समुद्रगुप्त]] | -[[समुद्रगुप्त]] | ||
{[[भारत]] में सर्वप्रथम स्वर्ण मुद्राएँ किसने चलाई? | {[[भारत]] में सर्वप्रथम [[सोना|स्वर्ण]] मुद्राएँ किसने चलाई? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[कुषाण]] | -[[कुषाण]] | ||
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-गुप्त | -गुप्त | ||
{'अमरकोश' के लेखक अमर सिंह किस शासक के दरबार से जुड़े थे? | {'[[अमरकोश]]' के लेखक अमर सिंह किस शासक के दरबार से जुड़े थे? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-समुद्रगुप्त | -[[समुद्रगुप्त]] | ||
-[[चन्द्रगुप्त प्रथम]] | -[[चन्द्रगुप्त प्रथम]] | ||
-[[स्कन्द गुप्त]] | -[[स्कन्द गुप्त]] | ||
+[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] | +[[चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य|चन्द्रगुप्त द्वितीय]] | ||
||[[चित्र:Chandragupta-Coins.JPG|चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की मुद्राए|100px|right]] शकारि समुद्रगुप्त के पुत्र एवं उज्जयनी के विख्यात विद्याप्रेमी सम्राट के रूप में ये प्रसिद्ध हैं। इनका वास्तविक नाम चन्द्रगुप्त है। अश्वमेध के अनंतर इन्होंने 'विक्रमादित्य' की उपाधि ग्रहण की थी। इतिहास में इनकी सभा के नौ रत्न उस समय के अपने विषय में पारंगत एवं मनीषी विद्वान थे। इनके नाम क्रमश: कालिदास, वररुचि, अमर सिंह, धंवंतरि, क्षपणक, वेतालभट्ट, वराहमिहिर, घटकर्पर, और शंकु थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] | |||
{[[कालिदास]] द्वारा रचित 'मालविकाग्निमित्र' नाटक का नायक था? | {[[कालिदास]] द्वारा रचित '[[मालविकाग्निमित्र]]' नाटक का नायक था? | ||
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-[[पुष्यमित्र शुंग]] | -[[पुष्यमित्र शुंग]] |
Revision as of 07:19, 27 May 2011
इतिहास
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