वरुण देवता: Difference between revisions
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*वरुण देव लोक में सभी सितारों का मार्ग निर्धारित करते हैं। | *वरुण देव लोक में सभी सितारों का मार्ग निर्धारित करते हैं। | ||
*इन्हें असुर भी कहा जाता हैं। इनकी स्तुति लगभग 30 सूक्तियों में की गयी है। | *इन्हें असुर भी कहा जाता हैं।{{?}} इनकी स्तुति लगभग 30 सूक्तियों में की गयी है। | ||
*ऋग्वेद का 7 वाँ मण्डल वरुण देवता को समर्पित है। | *ऋग्वेद का 7 वाँ मण्डल वरुण देवता को समर्पित है। | ||
*दण्ड के रूप में लोगों को 'जलोदर रोग' से पीड़ित करते थे। | *दण्ड के रूप में लोगों को 'जलोदर रोग' से पीड़ित करते थे। |
Revision as of 10:19, 27 August 2011
चित्र:Disamb2.jpg वरुण | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- वरुण (बहुविकल्पी) |
- वरुण देवता देवताओं के देवता है।
- देवताओं के तीन वर्गो (पृथ्वी स्थान, वायु स्थान और आकाश स्थान) में वरुण का सर्वोच्च स्थान है।
- देवताओं में तीसरा स्थान 'वरुण' का माना जाता है, जिसे समुद्र का देवता, विश्व के नियामक और शासक सत्य का प्रतीक, ऋतु परिवर्तन एवं दिन-रात का कर्ता-धर्ता, आकाश, पृथ्वी एवं सूर्य का निर्माता के रूप में जाना जाता है।
- ईरान में इन्हें 'अहुरमज्द' तथा यूनान में 'यूरेनस' के नाम से जाना जाता है।
- वरुण देवता ऋतु के संरक्षक थे इसलिए इन्हें 'ऋतस्यगोप' भी कहा जाता था।
- वरुण के साथ मित्र का भी उल्लेख है इन दोनों को मिलाकर मित्र वरुण कहते हैं। ऋग्वेद के मित्र और वरुण के साथ आप का भी उल्लेख किया गया है।
- 'आप' का अर्थ जल होता है। ऋग्वेद के मित्र और वरुण का सहस्र स्तम्भों वाले भवन में निवास करने का उल्लेख मिलता है। मित्र के अतिरिक्त वरुण के साथ आप का भी उल्लेख मिलता है।
- ऋग्वेद में वरुण को वायु का सांस कहा गया है।
- वरुण देव लोक में सभी सितारों का मार्ग निर्धारित करते हैं।
- इन्हें असुर भी कहा जाता हैं।{संदर्भ ?} इनकी स्तुति लगभग 30 सूक्तियों में की गयी है।
- ऋग्वेद का 7 वाँ मण्डल वरुण देवता को समर्पित है।
- दण्ड के रूप में लोगों को 'जलोदर रोग' से पीड़ित करते थे।
- सर्वप्रथम समस्त सुरासुरों को जीत कर राजसूय-यज्ञ जलाधीश वरुण ने ही किया था।
- वरुण सम्पूर्ण सम्राटों के सम्राट हैं।
- वरुण पश्चिम दिशा के लोकपाल और जलों के अधिपति हैं।
- पश्चिम समुद्र-गर्भ में इनकी रत्नपुरी विभावरी है।
- वरुण का मुख्य अस्त्र पाश है।
- वरुण के पुत्र पुष्कर इनके दक्षिण भाग में सदा उपस्थित रहते हैं।
- अनावृष्टि के समय भगवान वरुण की उपासना प्राचीन काल से होती है। ये जलों के स्वामी, जल के निवासी हैं।
- श्रुतियों में वरुण की स्तुतियाँ हैं।
- कुछ आचार्यों के मत से केवल देवराज इन्द्र का पद कर्म के द्वारा प्राप्त होता है।
- वरुण, कुबेर, यम आदि लोकपाल कारक-कोटि के हैं।
- वरुण भगवान के ही स्वरूप हैं।
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