एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी: Difference between revisions
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सुब्बुलक्ष्मी की लोकप्रियता उनके गायन के कारण तो है ही, परन्तु उन्होंने जो भक्ति संगीत भारत और सम्पूर्ण विश्व को दिया है, उसके कारण विशेष रूप से उन्हें स्मरण किया जाता है। जब वह [[गांधी जी]] के प्रिय भजन ‘वैष्णव जन तो तेणे कहिए, जो पीर पराई जाने रे’ गातीं, तो एक विशेष प्रकार का जादू-सा श्रोताओं पर छा जाता है। उन्होंने [[मीरा]] के अनेक भजन भी गाए हैं। उन्होंने मीरा नामक तमिल फ़िल्म में भी काम किया। जब इस फ़िल्म का हिन्दी रूपान्तर पेश किया गया, तो सुब्बुलक्ष्मी को हिन्दी जगत में विशेष रूप जाना जाने लगा। वे इसके कारण सम्पूर्ण देश में प्रसिद्ध हो गईं। सुब्बुलक्ष्मी ने जब संयुक्त राष्ट्र की असेम्बली में अपना गायन पेश किया था, तो प्रसिद्ध पत्र ‘न्यूयार्क टाइम्स’ ने लिखा था कि, वे अपने संगीत के द्वारा पश्चिम के श्रोताओं से जो सम्पर्क स्थापित करती हैं, उसके लिए यह आवश्यक नहीं कि श्रोता उनके शब्दों का अर्थ समझें। इसके लिए उनके कंठ से निकला हुआ मधुर स्वर पश्चिमी श्रोताओं के लिए सबसे सरल और | सुब्बुलक्ष्मी की लोकप्रियता उनके गायन के कारण तो है ही, परन्तु उन्होंने जो भक्ति संगीत भारत और सम्पूर्ण विश्व को दिया है, उसके कारण विशेष रूप से उन्हें स्मरण किया जाता है। जब वह [[गांधी जी]] के प्रिय भजन ‘वैष्णव जन तो तेणे कहिए, जो पीर पराई जाने रे’ गातीं, तो एक विशेष प्रकार का जादू-सा श्रोताओं पर छा जाता है। उन्होंने [[मीरा]] के अनेक भजन भी गाए हैं। उन्होंने मीरा नामक तमिल फ़िल्म में भी काम किया। जब इस फ़िल्म का हिन्दी रूपान्तर पेश किया गया, तो सुब्बुलक्ष्मी को हिन्दी जगत में विशेष रूप जाना जाने लगा। वे इसके कारण सम्पूर्ण देश में प्रसिद्ध हो गईं। सुब्बुलक्ष्मी ने जब संयुक्त राष्ट्र की असेम्बली में अपना गायन पेश किया था, तो प्रसिद्ध पत्र ‘न्यूयार्क टाइम्स’ ने लिखा था कि, वे अपने संगीत के द्वारा पश्चिम के श्रोताओं से जो सम्पर्क स्थापित करती हैं, उसके लिए यह आवश्यक नहीं कि श्रोता उनके शब्दों का अर्थ समझें। इसके लिए उनके कंठ से निकला हुआ मधुर स्वर पश्चिमी श्रोताओं के लिए सबसे सरल और महत्त्वपूर्ण माध्यम है।<ref name="चरित कोश"/> | ||
*सुब्बुलक्ष्मी के बारे में कहा जाता है कि जो लोग उनकी भाषा नहीं समक्षते थे, वे भी उनकी गायकी सुनते थे। उनकी आवाज को परमात्मा की अभिव्यक्ति कहा जाता था और लोग प्रसन्नचित होकर उनका गायन सुनते थे। उनके प्रशंसकों की फेहरिस्त में [[महात्मा गांधी]] और [[जवाहरलाल नेहरू]] सरीखे कई प्रख्यात लोग थे। उनके बारे में गांधी जी का कहना था, वह किसी और का गायन सुनने की बजाय सुब्बुलक्ष्मी की आवाज सुनना पसंद करेंगे।<ref name="LH"/> | *सुब्बुलक्ष्मी के बारे में कहा जाता है कि जो लोग उनकी भाषा नहीं समक्षते थे, वे भी उनकी गायकी सुनते थे। उनकी आवाज को परमात्मा की अभिव्यक्ति कहा जाता था और लोग प्रसन्नचित होकर उनका गायन सुनते थे। उनके प्रशंसकों की फेहरिस्त में [[महात्मा गांधी]] और [[जवाहरलाल नेहरू]] सरीखे कई प्रख्यात लोग थे। उनके बारे में गांधी जी का कहना था, वह किसी और का गायन सुनने की बजाय सुब्बुलक्ष्मी की आवाज सुनना पसंद करेंगे।<ref name="LH"/> | ||
==पति का मार्गदर्शन== | ==पति का मार्गदर्शन== |
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thumb|एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी|250px पूरा नाम मदुरै षण्मुखवडिवु सुब्बुलक्ष्मी (जन्म- 16 सितंबर, 1916 मद्रास – मृत्यु- 11 दिसंबर, 2004 चेन्नई) को कर्नाटक संगीत का पर्याय माना जाता है और भारत की वह ऐसी पहली गायिका थीं जिन्हें सर्वोच्च नागरिक अलंकरण भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उनके गाये हुए गाने, खासकर भजन आज भी लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हैं। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें संगीत की रानी बताया तो वहीं स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने उन्हें तपस्विनी कहा।
आरंभिक जीवन
जन्म
एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी देवदासी परिवार में उत्पन्न हुईं। सुब्बुलक्ष्मी का जन्म 1916 में हुआ था। 17 वर्ष की आयु में उन्होंने चेन्नई संगीत अकादमी में एक श्रेष्ठ गायिका के रूप में अपना नाम दर्ज करा लिया था। प्रारम्भ से ही उनके मन में अपने संगीत के सम्बन्ध में यह भावना थी कि, उनके संगीत को सुनकर मुरझाए हुए चेहरों पर परमानन्द की झलक दिखाई दे।[1]
पहला एलबम
सुब्बुलक्ष्मी बचपन में ही कर्नाटक संगीत से जुड़ गयी थीं और उनका पहला एलबम महज दस साल की उम्र में निकला था। प्रसिद्ध संगीताचार्य सेम्मनगुडी श्रीनिवास अय्यर से संगीत की शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्होंने पंडित नारायण राव से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली। सुब्बुलक्ष्मी ने पहली बार सार्वजनिक तौर पर अपने गायन का प्रदर्शन एक समारोह के दौरान किया। इसके बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए मद्रास संगीत अकादमी चली गयी, जहाँ सिर्फ 17 साल की उम्र में भव्य कार्यक्रम आयोजित किये। उन्होंने कन्नड़ के अलावा तमिल, मलयालम, तेलुगू, हिंदी, संस्कृत, बंगाली और गुजराती में भी गीत गाए। उन्होंने 1945 में 'भक्त मीरा' नामक फिल्म में बेहतरीन भूमिका अदा की। उन्होंने मीरा भजन को अपने सुरों में पिरोया, जो आज तक लोगों द्वारा सुने जाते हैं।[2]
विवाह
सन 1936 में वह स्वतंत्रता सेनानी सदाशिवम से मिलीं और 1940 में उनकी जीवन संगिनी बन गयीं। सदाशिवम के अपनी पहली पत्नी से चार बच्चों थे जिन्हें सुब्बुलक्ष्मी ने अपनी संतान की तरह पाला।[2]
लोकप्रियता
सुब्बुलक्ष्मी की लोकप्रियता उनके गायन के कारण तो है ही, परन्तु उन्होंने जो भक्ति संगीत भारत और सम्पूर्ण विश्व को दिया है, उसके कारण विशेष रूप से उन्हें स्मरण किया जाता है। जब वह गांधी जी के प्रिय भजन ‘वैष्णव जन तो तेणे कहिए, जो पीर पराई जाने रे’ गातीं, तो एक विशेष प्रकार का जादू-सा श्रोताओं पर छा जाता है। उन्होंने मीरा के अनेक भजन भी गाए हैं। उन्होंने मीरा नामक तमिल फ़िल्म में भी काम किया। जब इस फ़िल्म का हिन्दी रूपान्तर पेश किया गया, तो सुब्बुलक्ष्मी को हिन्दी जगत में विशेष रूप जाना जाने लगा। वे इसके कारण सम्पूर्ण देश में प्रसिद्ध हो गईं। सुब्बुलक्ष्मी ने जब संयुक्त राष्ट्र की असेम्बली में अपना गायन पेश किया था, तो प्रसिद्ध पत्र ‘न्यूयार्क टाइम्स’ ने लिखा था कि, वे अपने संगीत के द्वारा पश्चिम के श्रोताओं से जो सम्पर्क स्थापित करती हैं, उसके लिए यह आवश्यक नहीं कि श्रोता उनके शब्दों का अर्थ समझें। इसके लिए उनके कंठ से निकला हुआ मधुर स्वर पश्चिमी श्रोताओं के लिए सबसे सरल और महत्त्वपूर्ण माध्यम है।[1]
- सुब्बुलक्ष्मी के बारे में कहा जाता है कि जो लोग उनकी भाषा नहीं समक्षते थे, वे भी उनकी गायकी सुनते थे। उनकी आवाज को परमात्मा की अभिव्यक्ति कहा जाता था और लोग प्रसन्नचित होकर उनका गायन सुनते थे। उनके प्रशंसकों की फेहरिस्त में महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू सरीखे कई प्रख्यात लोग थे। उनके बारे में गांधी जी का कहना था, वह किसी और का गायन सुनने की बजाय सुब्बुलक्ष्मी की आवाज सुनना पसंद करेंगे।[2]
पति का मार्गदर्शन
thumb|एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी|250px सुब्बुलक्ष्मी का मार्गदर्शन करने और विश्व की एक सर्वोत्तम गायिका बनाने में उनके पति का मार्गदर्शन रहा है। उन्होंने स्वयं इस बात को स्वीकार किया है कि यदि मुझे अपने पति से मार्गदर्शन और सहायता नहीं मिली होती, तो मैं इस मुकाम तक नहीं पहुँच पाती। बीसवीं शताब्दी की महान भक्ति गायिका होने के बावजूद वे सदैव नम्र बनी रहीं और संगीत में अपनी ख्याति के लिए अपने पति सदाशिवम् का आभार मानती रहीं। सदाशिवम् की विशेषता यह थी कि, गांधीवादी और स्वतंत्रता सेनानी होने के बावजूद जब से उन्होंने सुब्बुलक्ष्मी का हाथ थामा, ऐसा कोई प्रयत्न शेष नहीं छोड़ा, जिससे सुब्बुलक्ष्मी की ख्याति दिनों-दिन बढ़ती न रहे। उन्होंने सुब्बुलक्ष्मी की गायन सभाओं का इस प्रकार आयोजन किया कि, वे सफलताओं की सीढ़ियाँ चढ़ती ही गईं। इन्हीं के प्रयत्नों के कारण सुब्बुलक्ष्मी को ‘नायटिंगेल ऑफ़ इंडिया’ कहा गया, जबकि इससे पहले यह खिताब केवल सरोजिनी नायडू को ही प्राप्त था। रामधुन और भक्ति संगीत को गाने की प्रेरणा भी उन्हें सदाशिवम् से ही मिली थी।[1]
सम्मान और पुरस्कार
भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किए जाने के अतिरिक्त उन्हें मद्रास संगीत अकादमी ने संगीत कलानिधि की उपाधि से अंलकृत किया था। यह सम्मान प्राप्त करने वाली वह प्रथम महिला थीं। 1974 में उन्हें ‘रेमन मेगसेसे’ पुरस्कार प्राप्त हुआ और 1990 में राष्ट्रीय एकता के लिए उन्हें इंदिरा गांधी अवार्ड दिया गया।[1]
- 1954 में पद्म भूषण
- 1956 में संगीत नाटक अकादमी सम्मान
- 1974 में रैमन मैग्सेसे सम्मान
- 1975 में पद्म विभूषण
- 1988 में कैलाश सम्मान
- 1998 में भारत रत्न समेत कई सम्मानों से नवाजा गया। इसके अतिरिक्त कई विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानद उपाधि से सम्मानित किया।[2]
निधन
88 साल की उम्र में महान गायिका एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी 11 दिसंबर, 2004 को दुनिया को अलविदा कह गयीं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- सुब्बुलक्ष्मी के गीत और भजन
- सुस्वरलक्ष्मी का आठवां सुर
- एम्.एस.सुब्बुलक्ष्मी के स्वर मे मीरा की वेदना
- ठाकुर तुम शरण नहीं आयो (यू-ट्यूब विडियो)
- बसो मेरे नैनन में नंदलाल (यू-ट्यूब विडियो)
- A tribute to M.S.Subbulakshmi (अंग्रेज़ी)
- Smt M.S. Home Page (अंग्रेज़ी)