जैन प्रीति संस्कार: Difference between revisions
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*'ओं कं ठं व्ह: प: असिआउसा गर्भार्भकं प्रमोदेन परिरक्षत स्वाहा' यह मन्त्र पढ़कर पति गन्धोदक से गर्भिणी के शरीर का सिंचन करें, स्त्री अपने उदर पर गन्धोदक लगा सकती है। | *'ओं कं ठं व्ह: प: असिआउसा गर्भार्भकं प्रमोदेन परिरक्षत स्वाहा' यह मन्त्र पढ़कर पति गन्धोदक से गर्भिणी के शरीर का सिंचन करें, स्त्री अपने उदर पर गन्धोदक लगा सकती है। | ||
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Revision as of 10:43, 2 June 2010
- यह संस्कार जैन धर्म के अंतर्गत आता है।
- प्रीति संस्कार गर्भाधान के तीसरे माह में किया जाता है।
- प्रथम ही गर्भिणी स्त्री को तैल, उबटन आदि लगाकर स्नानपूर्वक वस्त्र-आभूषणों से अलंकृत करें तथा शरीर पर चन्दन आदि का प्रयोग करें।
- इसके बाद प्रथम संस्कार की तरह हवन क्रिया करें।
- प्रतिष्ठाचार्य कलश के जल से दम्पति का सिंचन करें।
- पश्चात त्रैलोक्यनाथो भव, त्रैकाल्यज्ञानी भव, त्रिरत्नस्वामी भव, इन तीनों मन्त्रों को पढ़कर दम्पति पर पुष्प (पीले चावल छिड़के) शान्ति पाठ-विसर्जन पाठ पढ़कर थाली में भी ये पुष्प क्षेपण करें।
- 'ओं कं ठं व्ह: प: असिआउसा गर्भार्भकं प्रमोदेन परिरक्षत स्वाहा' यह मन्त्र पढ़कर पति गन्धोदक से गर्भिणी के शरीर का सिंचन करें, स्त्री अपने उदर पर गन्धोदक लगा सकती है।