एकनाथ: Difference between revisions
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ऐसी मान्यता है कि मूल नक्षत्र में पैदा होने के कारण [[तुलसीदास]] की भाँति ये भी बचपन में ही अपने [[माता]]-[[पिता]] को खो चुके थे। [[दादा]] ने इनका पालन-पोषण किया था। [[भक्ति]] का भाव-उदय इनके अन्दर बचपन में हो गया था। बहुधा ये बाहर से किसी पत्थर को उठा लाते और [[देवता]] कहकर उसके सामने [[सन्त|सन्तों]] के चरित्र और [[पुराण|पुराणों]] का पाठ करते। बारह वर्ष की उम्र में इन्होंने [[देवगढ़]] के सन्त | ऐसी मान्यता है कि मूल नक्षत्र में पैदा होने के कारण [[तुलसीदास]] की भाँति ये भी बचपन में ही अपने [[माता]]-[[पिता]] को खो चुके थे। [[दादा]] ने इनका पालन-पोषण किया था। [[भक्ति]] का भाव-उदय इनके अन्दर बचपन में हो गया था। बहुधा ये बाहर से किसी पत्थर को उठा लाते और [[देवता]] कहकर उसके सामने [[सन्त|सन्तों]] के चरित्र और [[पुराण|पुराणों]] का पाठ करते। बारह वर्ष की उम्र में इन्होंने [[देवगढ़]] के सन्त जनार्दन से दीक्षा ली और छह वर्ष तक गुरु के पास रहकर अध्ययन करते रहे। फिर तीर्थाटन के लिए निकले। | ||
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[[काशी]] में रहकर इन्होंने [[हिन्दी भाषा]] सीखी। अपनी तीर्थयात्रा से लौटने के पश्चात गुरु की आज्ञा से गृहस्थाश्रम में प्रवेश किया। | [[काशी]] में रहकर इन्होंने [[हिन्दी भाषा]] सीखी। अपनी तीर्थयात्रा से लौटने के पश्चात गुरु की आज्ञा से गृहस्थाश्रम में प्रवेश किया। नामदेव और [[तुकाराम]] की भाँति एकनाथ ने भी गृहस्थाश्रम को कभी आध्यात्मिक मार्ग की बाधा नहीं समझा। उनमें प्रवृत्ति और निवृत्ति मार्ग का अपूर्व समन्वय था। इन्होंने अपने समय में छुआछूत दूर करने का यत्न किया। एकनाथ अपने जीवन का केवल एक ही उद्देश्य मानते थे कि सभी के अन्दर सर्व-समन्वय की भावना विकसित हो। इस प्रकार उन्होंने समाज में से जातिवाद तथा छुआछूत को दूर करने का भरसक प्रयास किया। | ||
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एकनाथ उच्चकोटि के कवि भी थे। इन्होंने अनेक ग्रन्थों की रचना की है, जिनमें प्रमुख हैं-‘चतु: श्लोकी भागवत’, ‘भावार्थ रामायण’, ‘रुक्मिणी स्वयंवर’, ‘पौराणिक आख्यान’, ‘संत चरित्र’ और ‘आनन्द लहरी’ आदि। एकनाथ ने ‘ज्ञानेश्वरी’ की भिन्न-भिन्न प्रतियों के आधार पर इस [[ग्रन्थ]] का प्रमाणिक रूप भी निर्धारित किया। इन्होंने [[भागवत पुराण]] का मराठी भाषा में अनुवाद किया, जिसके कुछ भाग [[पंढरपुर]] के मन्दिर में संकीर्तन के समय गाये जाते हैं। इन्होंने 'हरिपद' नामक छब्बीस अंभंगों का एक संग्रह भी रचा। | एकनाथ उच्चकोटि के कवि भी थे। इन्होंने अनेक ग्रन्थों की रचना की है, जिनमें प्रमुख हैं-‘चतु: श्लोकी भागवत’, ‘भावार्थ रामायण’, ‘रुक्मिणी स्वयंवर’, ‘पौराणिक आख्यान’, ‘संत चरित्र’ और ‘आनन्द लहरी’ आदि। एकनाथ ने ‘ज्ञानेश्वरी’ की भिन्न-भिन्न प्रतियों के आधार पर इस [[ग्रन्थ]] का प्रमाणिक रूप भी निर्धारित किया। इन्होंने [[भागवत पुराण]] का मराठी भाषा में अनुवाद किया, जिसके कुछ भाग [[पंढरपुर]] के मन्दिर में संकीर्तन के समय गाये जाते हैं। इन्होंने 'हरिपद' नामक छब्बीस अंभंगों का एक संग्रह भी रचा। | ||
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Revision as of 12:54, 18 November 2011
एकनाथ महाराष्ट्र के प्रसिद्ध सन्तों में बहुत ख्याति प्राप्त हैं। महाराष्ट्रीय भक्तों में नामदेव के पश्चात दूसरा नाम एकनाथ का ही आता है। इनका जन्म पैठण में हुआ था। 1533 ई. से 1599 ई. के बीच इनका समय माना जाता है। ये वर्ण से ब्राह्मण जाति के थे। इन्होंने जातिप्रथा के विरुद्ध आवाज़ उठाई तथा अनुपम साहस के कारण कष्ट भी सहे। इनकी प्रसिद्धि भागवत पुराण के मराठी कविता में अनुवाद के कारण हुई। दार्शनिक दृष्टि से ये अद्धैतवादी थे।
मान्यता
ऐसी मान्यता है कि मूल नक्षत्र में पैदा होने के कारण तुलसीदास की भाँति ये भी बचपन में ही अपने माता-पिता को खो चुके थे। दादा ने इनका पालन-पोषण किया था। भक्ति का भाव-उदय इनके अन्दर बचपन में हो गया था। बहुधा ये बाहर से किसी पत्थर को उठा लाते और देवता कहकर उसके सामने सन्तों के चरित्र और पुराणों का पाठ करते। बारह वर्ष की उम्र में इन्होंने देवगढ़ के सन्त जनार्दन से दीक्षा ली और छह वर्ष तक गुरु के पास रहकर अध्ययन करते रहे। फिर तीर्थाटन के लिए निकले।
सामाजिक सुधार
काशी में रहकर इन्होंने हिन्दी भाषा सीखी। अपनी तीर्थयात्रा से लौटने के पश्चात गुरु की आज्ञा से गृहस्थाश्रम में प्रवेश किया। नामदेव और तुकाराम की भाँति एकनाथ ने भी गृहस्थाश्रम को कभी आध्यात्मिक मार्ग की बाधा नहीं समझा। उनमें प्रवृत्ति और निवृत्ति मार्ग का अपूर्व समन्वय था। इन्होंने अपने समय में छुआछूत दूर करने का यत्न किया। एकनाथ अपने जीवन का केवल एक ही उद्देश्य मानते थे कि सभी के अन्दर सर्व-समन्वय की भावना विकसित हो। इस प्रकार उन्होंने समाज में से जातिवाद तथा छुआछूत को दूर करने का भरसक प्रयास किया।
रचनाएँ
एकनाथ उच्चकोटि के कवि भी थे। इन्होंने अनेक ग्रन्थों की रचना की है, जिनमें प्रमुख हैं-‘चतु: श्लोकी भागवत’, ‘भावार्थ रामायण’, ‘रुक्मिणी स्वयंवर’, ‘पौराणिक आख्यान’, ‘संत चरित्र’ और ‘आनन्द लहरी’ आदि। एकनाथ ने ‘ज्ञानेश्वरी’ की भिन्न-भिन्न प्रतियों के आधार पर इस ग्रन्थ का प्रमाणिक रूप भी निर्धारित किया। इन्होंने भागवत पुराण का मराठी भाषा में अनुवाद किया, जिसके कुछ भाग पंढरपुर के मन्दिर में संकीर्तन के समय गाये जाते हैं। इन्होंने 'हरिपद' नामक छब्बीस अंभंगों का एक संग्रह भी रचा।
जीवन का अन्त
ऐसा माना जाता है कि एकनाथ ने गोदावरी के जल में समाधि लेकर अपना जीवनांत किया था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख